बीते महीने से देश में तीन चुनावों की चर्चा और सस्पेंस का दौर 8 दिसम्बर को खत्म हुआ और इसी के साथ आने वाले साल में जिन राज्यों में चुनाव होने है वहां इन चुनावों परिणामों के साथ ही सस्पेंश और अधिक बढ गया है भाजपा और कांग्रेस दोनो के लिये ही जाड़ों में आये ये परिणाम आधी धूप और आघी छांव के समान ही है जहां गुजरात में 27 साल के शासन के बाद भी एंटी इंकम्बेंसी जैसे शब्दों को प्रधानमंत्री मोदी के पसीने ने बहा कर रख दिया तो हिंमाचल में वही मेहनत और पसीने का कोई मोल न लग सका। हां यह जरूर है कि प्रधानमंत्री मोदी यदि इस बारीकी से हिंमाचल पर नजर रखकर मेहनत न करते तो हिमांचल में भाजपा की वही हालत होती जो गुजरात में कांग्रेस की हुयी है लेकिन मोदी राहुल गाँधी नहीं है। खैर प्रधानमंत्री ने हिमांचल में बागियों को खुद फ़ोन कर मानाने , डबल इंजन की सरकार जैसा हर प्रयास किया लेकिन इसके बाद भी हिमांचल की जनता ने अपनी परंपरा को निभाया और लोकतंत्र की रोटी को पलटना जारी रखा । तो गुजरात में जो हुआ है उसे समझना इतना आसान नहीं है गुजरात की एकमुश्त जीत की कहानी आने वाले दिनों में कई किश्तों में सामने आती रहेगी ।
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बहरहाल इन दो राज्यों के चुनाव परिणाम के साथ ही आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन ने उसे राष्टीय पार्टी का दर्जा दिला दिया है और यदि गुजरात और पंजाब जैंसी पूर्व जमावट आप मध्यप्रदेश, राजस्थान में करती है तो वह परिणामों को बहुत हद तक प्रभावित कर सकेगी। लेकिन मध्यप्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ में प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस इन परिणामों से उत्साहित भी है और आशंकित भी। राजस्थान मे कांग्रेस पार्टी की आपसी खींचतान सरकार बदलने की परंपरा को बल देती है , छत्तीसगढ में कांग्रेस की स्थिति मजबूत है और बीते चार सालों में भाजपा को कोई भी स्थानीय नेतृत्व सरकार से टक्कर लेता हुआ नही है । लेकिन मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार गिरने के बाद से ही भाजपा के समीकरण बिगड़े हुए है जहां सिंधिया की सहायता से चलती हुई सरकार में सामंजस्य की कमी है। तो कमलनाथ और दिग्यविजय की जोड़ी आने वाले चुनावो की तैयारी हर स्तर पर कर रहे है। मध्यप्रदेश की राजनैतिक परिस्थितियों में, गुजरात के परिणाम 18 सालों की सत्ता की एंटी इनकमबेंसी के मुददे पर मरहम लगाते हुए है और प्रधानमंत्री मोदी के नाम के कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर सत्ता सुख के छाँव का आनद लेने की कल्पना भी लिये हुए है तो हिंमाचल में जनता का स्थानीय मुददों पर जोर देते हुए वोट डालकर सरकार को उखाड़ फेकना माथे पर पसीना लाने वाला है। प्रदेश में उज्जैन में हुए भव्य महाकाल लोक निर्माण के साथ ही यह तय हो गया था कि अगला चुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के नेतृत्व में लड़ा जायेगा उसके साथ ही अन्य दावेदारों के बयानों और अंदाजों में हालाकि नरमी है लेकिन यह शिकायत का लहजा भी लिये हुए है। सरकार और मंत्रीमंडल पूरी तरह से खेमे में बटे हुए है और आने वाले समय में मंत्रिमंडल में फेरबदल के साथ ही यह मुददा और अधिक गरमाने वाला है लंबे अरसे बाद हुए त्रिस्तरीय पंचायती और निकाय चुनावों में कांग्रेस ने सत्ताधारी भाजपा को पूरी तरह टक्कर दी है और राष्ट्रीय स्तर पर आम आदमी पार्टी की बढती हुई साख दोनो ही दलों के नाराज और बागी नेताओं के लिये एक बड़ी थाह लिये हुए है ।
मध्यप्रदेश में हाल इनसे हैं की चुनाव से एक साल पहले ही भाजपा और कांग्रेस पूरी ताकत के साथ मुकाबले के लिए तैयार है तो इन चुनाव में ओबीसी महासभा ,जयस जैसे संगठन बड़े स्तर पर अपना राजनैतिक महत्त्व साबित करना कहते है सो आने वाले चुनावों में भाजपा के लिये मध्यप्रदेश में होने वाले चुनाव सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण होने वाले है इतना तो तय है, अब देखना होगा कि जनता गुजरात की तरह भाजपा को पिछले चुनावों से ज्यादा शक्तिशाली बनाकर पूरा सर्मथन देती है या कांग्रेस को सर्मथन देने में हुई चूक की भरपाई कर कमलनाथ को एक और मौका देती है।
अभिषेक तिवारी
संपादक – भारतभवः
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