मध्यप्रदेश विधानसभा के बजट सत्र में कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी के कथित असंसदीय व्यवहार को लेकर शेष सत्र के लिए उनके निलंबन के बाद जो कुछ हुआ वो विधानसभा के इतिहास के लिए एक दुखद घटना है. जीतू पटवारी के निलंबन का मामला दरियादिली से सुलझाने के बजाय संसदीय कार्यमंत्री से लेकर विधानसभा अध्यक्ष खुद उस्मने बुरी तरह उलझ गए .विधानसभा में मर्यादित आचरण पहली शर्त है किन्तु अनेक अवसरों पर प्रतिपक्ष आपा खो बैठता है और उसका आचरण अमार्यादित हो जाता है .प्रतिउत्तर में सत्ता पक्ष के सदस्य भी कुछ ऐसा ही कर बैठते हैं,लेकिन विधानसभा अध्यक्ष का हस्तक्षेप हमेशा ऐसी अप्रिय स्थितियों को टाल देता है दुर्भाग्य से अब सदन में पहले की तरह के धीर -गंभीर सदस्यों का अभाव है. विधानसभा अध्यक्ष से लेकर मंत्री तक तुनकमिजाज हैं ,इसलिए सदन में आये दिन अप्रिय दृश्य उपस्थित होते रहते हैं .कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी के आचरण को लेकर विधानसभा अध्यक्ष की कार्रवाई पर मै कुछ नहीं कहना चाहता,ये उनका विशेषाधिकार है.वे जो चाहें करें.मेरा कहना तो ये है की यदि पटवारी को निलंबित कर भी दिया गया था तो भी सदन के प्रमुख को सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेता के साथ बैठकर मामले को सुलझा लेना चाहिए था. अतीत में ऐसा होता रहा है. विधानसभा अध्यक्ष सदन के अभिभावक होते हैं. वे सजा भी दे सकते हैं और उसे माफ़ भी कर सकते हैं और करते ही हैं ,लेकिन ऐसा पहली बार हुआ की सब एक सुर में बोल रहे हैं .सदन में यदि जीतू पटवारी ने असंसदीय हरकत की तो संसदीय कार्य मंत्री ने कौन सी मर्यादित हरकत की ? उनके तो स्वर में ही दम्भ झलकता है. उनकी तो देह की भाषा ही दर्प से भारी हुई है .सदन के भीतर भी और सदन के बाहर भी,ऐसे में सदन कैसे चल सकता है ? दुर्भाग्य ये है कि दोनों पक्षों ने मामला सुलझाने और सदन का सौहार्द बनाये रखने में दिलचस्पी लेने के बजाय इसे नाक का सवाल बना लिया .अब नौबत सदन के अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तक आ पहुंचा है.
प्रदेश में सरकार के खिलाफ तो अविश्वास प्रस्ताव आता ही रहता है किन्तु यदि सदन के अध्यक्ष के खिलाफ इस प्रावधान का इस्तेमाल किया जाता है तो ये दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है. सभापति को कभी किसी राजनीतिक दल का संरक्षक नहीं बनना चाहिए .इस पद पर पहुँच कर अक्सर लोग दल निरपेक्ष हो जाते हैं .वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष ऐसा करने में कामयाब क्यों नहीं हुए ,ये हैरत की बात है.मध्य्प्रदेश विधानसभा के 14 अध्यक्षों में से मुझे 10 का कार्यकाल देखने,समझने का अवसर मिला .प्रदेश में एक से बढ़कर एक विद्वान विधानसभा अध्यक्ष हुए, गिरीश गौतम भी उसी परम्परा में हैं किन्तु वे पटवारी प्रकरण में उलझ गए. प्रदेश में भाजपा के नेवालकर,बृजमोहन मिश्रा,ईश्वरदास रोहाणी,और सीताशरण शर्मा भी विधानसभा के अध्यक्ष रहे किन्तु उनके कार्यकाल में भी ऐसी स्थितियां नहीं बनीं.बनी भीं तो उन्हें हिकमत अमली से टाल दिया गया .सभाध्यक्ष और सदन के सत्तापक्ष और विपक्ष के नेता चाहते तो पटवारी प्रकरण सौहार्द से सुलझ सकता था .सुलझ जाता तो बेहतर होता .चुनावी साल में ये कड़वाहट अच्छी नहीं लगती .आपको याद दिला दूँ कि कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी को कथित रूप से ‘झूठा बयान’ देने पर मध्य प्रदेश विधानसभा के बजट सत्र की शेष अवधि के लिए बृहस्पतिवार को निलंबित कर दिया गया। उनसे विधानसभा अध्यक्ष ने अपनी टिप्पणी पर माफी मांगने के लिए कहा था जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया।पटवारी ने राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए दावा किया था कि मध्य प्रदेश सरकार ने गुजरात के जामनगर के एक निजी चिड़ियाघर को छह बाघ, पांच शेर, घड़ियाल, दो लोमड़ी दिये और बदले में कुछ छिपकली, तोते जैसे पक्षी आदि मिले।पटवारी के इस बयान का सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्यों ने कड़ा विरोध किया और प्रदेश के संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने मांग की कि पटवारी अपने बयान की एक प्रति सदन के पटल पर रखें।जीतू पटवारी का निलंबन अब राजनीतिक मुद्दा बन गया है .नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह का आरोप है कि सरकार के दबाब में विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने जीतू पटवारी का सत्र से निलंबन किया गया है. गोविंद सिंह के मुताबिक जीतू के निलंबन का फैसला पूरी तरह से असंवैधानिक है.कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ कहते हैं कि कांग्रेस के सम्मानित विधायक श्री जीतू पटवारी को बजट सत्र से निलंबित करना अलोकतांत्रिक कदम है। विधानसभा अध्यक्ष को निलंबन पर पुनर्विचार करना चाहिए। एक तरफा निलंबन की कार्रवाई विधानसभा की उच्च परंपराओं के अनुकूल नहीं।सदस्यों के अमर्यादित आचरण की ये कोई पहली घटना नहीं है. विधानसभाओं से लेकर संसद के दोनों सदनों में ऐसे अप्रिय दृश्य देखे गए हैं. राजयसभा में भी और लोकसभा में भी. सदस्यों का निलंबन भी हुआ ,लेकिन हर बार सौहार्द से मामले सुलझाए गए .अच्छा होता कि जीतू पटवारी का मामला भी बातचित्त और दरियादिली से सुलझा लिया जाता ।
व्यक्तिगत विचार आलेख
श्री राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश ।
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