देश

राजनीति की नहीं रेल की बात भी कीजिये

भारत में आजकल अनुशासन के बजाय दुःशासन पर्व चल रहा है। अनुशासन पर्व आज की पीढ़ी के लिए एक अनजान शब्द है लेकिन जो छठवें -सातवें दशक में जन्मी पीढ़ी है उसे पता है कि अनुशासन पर्व किस चिड़िया का नाम था ? अनुशासन पर्व हालाँकि देश पर थोपे गए ‘ आपातकाल ‘ का एक नारा था लेकिन इस नारे के फलस्वरूप पूरा देश पटरी पर थ। रेल से लेकर सरकारी दफ्तर तक। आज देश में ‘ आपातकाल ‘ नहीं है शायद यही वजह है की देश बेपटरी हो रहा है और एक -एक दिन में देश की एक-दो,दस नहीं बल्कि 400 रेलों को रद्द किया जा रहा है। अनुशासन पर्व में पहली बार रेलें घड़ी की सुई का कांटा मिलाकर चलती थींदरअसल रेलों के बेपटरी होने की वजह मौसम के अलावा कुप्रबंधन भी है लेकिन कोई इस बारे में बात नहीं करना चाहता ,क्योंकि सब राजनीति में उलझे है। सत्तापक्ष तो 365 दिन चुनाव प्रबंधन में उलझा रहता है और विपक्ष अपना वजूद बचने की तैयारी में। बचा-खुचा समय राम जी की स्तुति में निकल रहा है । देश की फ़िक्र किसी को नहीं है। देश की फ़िक्र करना आजकल अपराध है । आजकल केवल और केवल कुर्सी की फ़िक्र करने की छूट है।भारतीय रेल गनीमत है कि आज की सरकार की उपलब्धियों में शामिल नहीं है ये आजादी के बाद और 2014 के पहले कि सरकारों की उपलब्धि है ।इसके विकास में सबसे बड़ा योगदान कांग्रेस कि सरकारों का है। भारतीय रेल एक लाख किलोमीटर से कहीं ज्यादा लम्बी पटरियों पर दौड़ते हुए हर दिन कोई ढाई करोड़ लोगों को आवागमन की सुविधा मुहैया करने वाली एक सार्वजनिक परिवहन प्रणाली ह। यानि हमारी रेलें प्रति दिन जीतनीई सवारियां ढोती है उतनी तो ऑस्ट्रेलिया की आबादी भी नहीं है। दुर्भाग्य से एक दशक पहले तक जो रेल आम भारतीय की रेल थी वो अब धीरे-धीरे आम आदमी के लिए अलभ्य होती जा रही है । एक दशक में रेलवे को आधुनिक बनाने की तमाम कोशिशों में एक कोशिश इसके निजीकरण की थी किन्तु इस मोर्चे पर सर्कार कामयाब नहीं हो पायी । सरकार चीन की तर्ज पर बुलट ट्रेने भी नहीं चला पायी किन्तु उसके स्थान पर वन्दे भारत रेलें चलीं जो समय पर नहीं चल प् रहीं। ये वंदे भारत रेलें महंगी हैं सो अलग ,लेकिन इस मुद्दे पर कोई बोलने वाला नहीं। आंदोलन करने वाला नहीं।रेलवे की आधिकारिक जानकारी के मुताबिक 26 जनवरी को जिस दिन देश भारतीय गणतंत्र दिवस की हीरक जनयन्ति मना रहा था उस दिन भारतीय रेलवे ने 372 ट्रेनों को रद्द कर दिया कर दिया है. अगले दिन भी रेलवे ने 304 ट्रेनें रद्द की थी. रद्द होने वाली रेलों में पैसेंजर, मेल और एक्सप्रेस गाड़ियां शामिल हैं. दुर्गियाना एक्सप्रेस, लिच्छवी एक्सप्रेस, हमसफर एक्सप्रेस और झारखंड एक्सप्रेस सहित लंबी दूरी तक करने वाली कई रेलें ही नहीं दिल्ली से राजधानियों के बीएच चलने वाली वनदे भारत रेलें भी इसमें शामिल हैं । कड़ाके की ठंड में ट्रेनों के रद्द होने से यात्रियों की परेशानियां बढ़ गई हैं लेकिन देश की सत्ता बिहार और झारखण्ड को हिलाने में लगी है। देश में इतनी बड़ी संख्या में रेलें रद्द होने का ये नया इतिहास है।
                                                रेलें रद्द होने से रेलवे को कुल कितना नुकसान हो रहा है इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा हमारे पास नहीं है। लेकिन ये आंकड़े जरूर हैं कि एक ही मंडल में प्रतिदिन 20 हजार से ज्यादा टिकट केंसिल कराये जा रहे हैं और किराया वापस किया जा रहा है।देश में रेल के देश दर्जन से ज्यादा मंडल हैं। ये नुकसान करोड़ों में है लेकिन किसी को कोई फ़िक्र नहीं। वर्ष 2016 से रेलवे का अपना बजट भी सरकार ने पेश करना बंद कर दिया है। अब आपको पता ही नहीं चल पाता की रेलवे कि सेहत कैसी है ? आप एक दशक पहले जितने किराये में एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन तक पैसेंजर रेल से जा सकते थे अब उतना पैसा तो प्लेटफार्म टिकिट का है। रेलवे की पार्किंग हवाई अड्डे की पार्किंग की तरह महंगी हो चुकी है। रेलवे स्टेशन निजी कंपनियों को ठेके पर दे दिए गए हैं। किराया,टिकिट आरक्षण और निरस्तीकरण तक महंगा कर दिया गया है। अनारक्षित रेलों और दूसरी रेलों में अनारक्षित कोच की संख्या में लगातार कमी की जा रही है ,और इसका खमियाजा भुगत रहा है वो आम आदमी जो रामभक्त है।इस समय रेलों को रद्द किये जाने की एक वजह मौसम और दूसरी वजह अयोध्या है। सरकार ने रामभक्तों को रामलला के दर्शन करने के लिए तमाम रेलों का मुंह अयोध्या की और मोड़ दिया है। अयोध्या के लिए विशेष रेलें चलाई जा रहीं हैं ,लेकिन इसके लिए दूसरी रेलों का संचालन रद्द किया जा रहा है। आपको बता दूँ कि भारतीय रेलवे में 12147 इंजिन , 74003 यात्री डिब्बे और 289185 मालवहक डिब्बे हैं भारत में 8702 यात्री ट्रेनों के साथ प्रतिदिन कुल 13523 ट्रेनें चलती हैं। भारतीय रेलवे में 300 रेलवे यार्ड, 2300 माल ढुलाई और 700 वर्कशाप हैं। कीर्तिमान की दृष्टि से देखें तो भारतीय रेल दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेलवे सेवा है। 12.27 लाख कर्मचारियों के साथ, भारतीय रेलवे दुनिया की आठवीं सबसे बड़ी व्यावसायिक इकाई है। लेकिन भारत सरकार ने इसकी ऐसी-तैसी कर रखी है।देश की मौजूदा सरकार ने हालाँकि हर साल रेल बजट में इजाफा किया है किन्तु प्रबंधन के लिहाज से उसे कामयाबी नहीं मिल रही है ।पिछली बार सरकार ने सवा लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का बजट रेलवे के लिए जारी किया था, इस बार अगर इसमें 25 फीसदी का इजाफा हो जाता है तो ये सरकार के रेलवे की सूरत बदलने के प्रयासों के मुताबिक ही होगा. इसका सीधा सा अर्थ है कि ये रेलवे बजट इस साल करीब 3 लाख करोड़ रुपये के आवंटन के स्तर तक जा सकता है। केंद्र सरकार ने वर्ष 2018-19 में ₹55,088 करोड़ रुपये ,वर्ष 2019-20 में ₹69,967 करोड़ रुपये ,वर्ष 2020-21 में ₹70,250 करोड़ रुपये और वर्ष 2021-22 में ₹1.17 लाख करोड़ रुपये रेलवे को आवंटित किये थे। इसके बावजूद भारतीय रेल आम आदमी कि पहुँच से लगातार दूर हो रही है। आने वाले दिनों में भारतीय रेलों की सूरत क्या होगी,कोई नहीं जानता क्योंकि भर्ती रेल विमर्श से बहुत दूर जा चुकी है।संयोग से मुझे चीन की रेलों में यात्रा करने का अवसर मिला है ,इसके आधार पर मै कह सकता हूं कि हम रेल सुविधाओं और रेल सेवाओं के मामले में चीन से कोसों दूर हैं भले ही हमने चंद्रयान और सूरज को जान्ने के लिए यान छोड़ लिए हैं। हमारी रेलें सुरक्षा,सफाई,खानपान समयबद्धता के मामले में चीन की रेलों से कोसों पीछे हैं। हमारे यहां जिस गति से रेल सेवाओं का उन्ननयन हो रहा है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि हम नौ दिन चले अढ़ाई कोस की कहावत को चरितार्थ कर रहे है। और ये सब तब है जब कि रेल की हरी झंडी हमारे भाग्य विधाताओं के हाथ में है।
@ राकेश अचल

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