खेत-खलिहान

सूरजमल की जानलेवा ‘ एयर स्ट्राइक ‘

आप सूरज को देवता मानिए या केवल एक ग्रह ,लेकिन उसके कोप से बचने के लिए अपने आपको तैयार रखिये। सूरज यानी सूरजमल आजकल केवल भारत में ही नहीं वरन पूरी दुनिया में ‘ एयर स्ट्राइक ‘ करने पर आमादा हैं और इस एयर स्ट्राइक की चपेट में आ रहे हैं वे तमाम लोग जो न अपने लिए ऐसी खरीद सकते हैं न कूलर। देश की एक बड़ी आबादी के पास पंखा तक खरीदने की हैसियत नहीं है। देश-दुनिया के हर कोने से सूरजमल के प्रकोप की खौफनाक खबरें आ रहीं हैं ,लेकिन हम हैं कि जागने के लिए तैयार नहीं है।धरती से 14 , 96 लाख किलो मीटर दूर स्थित सूर्य पहली बार नहीं तप रहा । वो तो हमेशा से आग उगलता है लेकिन धरती पर रहने वाले हम लोग सूरजमल के ताप से अपने आपको बचा लेते थे ,क्योंकि हमारे पास घने जंगल थे। सूरजमल की ताप्त किरणे इन जंगलों में सीना तानकर खड़े विशालकाय वृक्षों की सघन छाया के सामने हथियार डाल देती थीं ,लेकिन अब हमारे पास सूरजमल के कोप से बचने का प्राकृतिक छाता नहीं रहा । यदि है भी तो बेहद बुरी दशा में, जो हमें न आग उगलती सूरज की किरणों से बचा सकता है और न इंद्र के प्रकोप से।हम लोग राजनीति के बारे में जानते हैं,धर्म के बारे में जानते हैं। लेकिन सूरजमल के बारे में नहीं जानते। हम में से बहुत से लोग सूरजमल को सुबह-सवेरे उठकर जल अर्पित करते हैं ताकि उसकी आत्मा तृप्त रहे ,लेकिन ऐसा हो नहीं रहा ।भारत में तो अनेक सूर्य मंदिर हैं जिनमें नित्य सूर्य को पूजा जाता है ,उनकी आरती उतारी जाती है ,लेकिन सूरजमल दिनों-दिन आक्रामक हो रहे हैं। वे न धर्म देख रहे हैं और न जाति । उन्हें तो बस शिकार करना है । मक्का-मदीना में सूरजमल के प्रकोप से 500 से अधिक लोगों की जान चली गयी । हमारे देश के अनेक हिस्सों से सूरज कीगर्मी के सामने हथियार डालने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। अकेले दिल्ली में एक सप्ताह में 178 लोग गर्मी से अपनी जान गवां चुके हैं। हमारा तमाम ज्ञान-विज्ञान सूरजमल के प्रकोप से अवाम को बचा नहीं पा रहा । हमारे पास अब कोई आसरा नहीं बचा है।
                            आपको बता दूँ कि सूरज यानि सूरजमल सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है। सूरजमल का व्यास लगभग 14 लाख हज़ार किलोमीटर है अर्थात हमारी पृथ्वी से 113 गुना तक बड़ा है। अब तक की खोज बताती है कि ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से मात्र 15 फीसदी अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, 30 फीसदी पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है।सूरजमल। सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में 8 मिनट से कुछ घड़ी ज्यादा का समय लगता है इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है।कल्पना कीजिये की यदि प्रकाश और ऊष्मा कि आने की ये रफ्तार ज़रा और बढ़ जाये तो क्या होगा।?ध्यान देने योग्य बात ये है कि सूरजमल आज सबसे अधिक स्थिर अवस्था में अपने जीवन के करीबन आधे रास्ते पर है। इसमें कई अरब वर्षों से नाटकीय रूप से कोई बदलाव नहीं हुआ है, और आगामी कई वर्षों तक यूँ ही अपरिवर्तित बना रहेगा। हालांकि, एक स्थिर हाइड्रोजन-दहन काल के पहले का और बाद का तारा बिलकुल अलग होता है।जबकि हमने अपनी धरती को बुरी तरह से न सिर्फ तबाह कर दिया है बल्कि उसे पूरी तरह से बदल डाला है । हमने उसके जंगल काट दिए है। हमने उसकी कोख को खंगाल दिया है । हमारी धरती सूरजमल के सामने एक बीमार ग्रह बनकर रह गयी है ,लेकिन हमें इसकी चिंता नहीं है। हम सूरजमल के ताप का मुकाबला करने के लिए नए जांगल लगाने और पुराने जंगलों का संरक्षण करने कि बजाय हर दिन एयर कंडीशनर ,कॉलर,और पंखों का उत्पादन बढ़ते जा रहे हैं जो हमने घर के भीतर तो कृत्रिम शीतलता प्रदान करते हैं लेकिन बाहर पहले से तप रही धरती को और तपा रहे हैं। यानि हम उस कालिदास की तरह हैं जो जिस डाल पर बैठा है उसे ही काट रहा है।
मक्का में गर्मी से मरने वालों कि शव सड़कों पर पड़े देखकर मन विचलित ही नहीं हुआ बल्कि आत्मा काँप गयी । आप कल्पना कीजिये जब मनुष्यों का ये हाल है तो उन पशु -पक्षियों की क्या दशा होगी जो न अपना मकान बनाते हैं और उनके पास एसी,कूलर या पंखे होते हैं। वे सूरजमल कि ताप का मुकबला सीधे करते है। हम मनुष्यों ने तो उनके हिस्से की छांव भी छीन ली है। हम स्वार्थी लोग हैं। आप कल्पना कर सकते हैं कि भारत जैसे विशाल देश में जहां आज भी 85 करोड़ लोग मात्र 5 किलो अन्न कि ऊपर अपना गुजर कर रहे हैं वे गर्मी से बचने कि लिए कैसे संघर्ष करते होंगे ? इस आधी आबादी कि पास जब दो जून की रोटी नहीं जुगाड़ सकती तब गर्मी से बचने कि लिए एसी,कूलर और पंखे तो छोड़िये छाते तक लेना उनके लिए कल्पनातीत है।
रीतिकाल कि प्रमुख कवियों में से एक सेनापति ने सूरजमल के ताप और प्रकोप को लेकर सैकड़ों साल पहले जो कुछ लिखा वैसा ही आज भी हो रहा है । सेनापति लिखते हैं –
‘बृष को तरनि तेज, सहसौ किरन करि,
ज्वालन के जाल बिकराल बरसत हैं।
तपति धरनि, जग जरत झरनि, सीरी
छाँह कौं पकरि, पंथी-पंछी बिरमत हैं॥
‘सेनापति नैक, दुपहरी के ढरत, होत
घमका बिषम, ज्यौं न पात खरकत हैं।
मेरे जान पौनों, सीरी ठौर कौं पकरि कौनौं,
घरी एक बैठि, कँ घामै बितवत हैं।’
कहने का असहय ये है कि ये जो सूर्यकोप है ये कम होने का नहीं है । हमें ही अपने आपको बदलना होगा । हमें घरों में एसी ,कूलर और पंखे लटकाने कि बजाय अपने आसपास नए पौधे रोपने होंगे और पुराने सैकड़ों वर्ष पुराने विटपों को जान की कीमत पर कटने से ,गिरने से बचना होगा। हमें अपना लालच छोड़ना होगा ,यदि ऐसा न हुआ तो जो आज मक्का में हुआ है वो दुनिया के हर उस हिस्से में होगा जहां धरती को नग्न किया जा चुका है या किया जा रहा है उसकी हरीतिमा छीनकर। ये काम कोई सरकार ,कोई क़ानून नहीं कर सकत। ये काम आपको ,हमको ही करना पड़ेगा। ईश्वर भी हमारी मदद कि लिए नहीं आने वाले।
@ राकेश अचल

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