लोकतंत्र-मंत्र

हम गण हैं , तुम तंत्र हमारे

तंत्र,मंत्र और चमत्कार के साथ गणतंत्र दिवस के 74 साल हमारे लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं हैं। उपलब्धि इसलिए है क्योंकि हम जिस तंत्र में जी रहे हैं,सांस ले रहे हैं वो आज भी विसंगतियों से भरा है।इस तंत्र में चुनी हुई सरकार के अलावा खरीदी हुई,बेची गई, अपहृत की गई सरकारों के अलावा उन सरकारों के लिए भी जगह है जो भगवान के नाम पर चलती हैं। गणतंत्र दिवस संविधान के प्रति हमारे समर्पण और निष्ठा को प्रदर्शित करने के लिए मनाया जाता है और संविधान भौतिक रूप से सिर्फ शपथग्रहण समारोह में काम आता है।शेष दिनों में संविधान का इस्तेमाल उसकी धज्जियां उड़ाने के काम आता है।हम तरह-तरह से संविधान की धज्जियां उड़ाते हैं। जिसने संविधान की धज्जियां नहीं उठाई वो सच्चा भारतीय हो ही नहीं सकता। संविधान तमाम छोटे -बड़े विधि विधानों का अभिभावक हैं। लेकिन दुर्भाग्य है कि हम सबसे छोटे कानून पर भी अमल नहीं करते। सरकार, अदालत कोई इन पर अमल नहीं करा पाता। सार्वजनिक स्थलों पर थूकना, पेशाब करना, गंदगी फैलाना और शोर मचाना तक हमारे कानून नहीं रोक सकते तो आप बड़े अपराधों की रोकथाम की कल्पना कैसे करते हैं। यकीन मानिए कि 74 साल के संविधान को मैं भी बीते 54 साल से पूजता आ रहा हूं, लेकिन इसके मानमर्दन को रोकने के लिए मेरे पास कोई औजार नहीं है। यहां तक कि संविधान के तहत बनाए गए संस्थान भी हमारे किसी काम के नहीं हैं।हम इंग्लैंड की तरह अपने प्रधानमंत्री को कार चलाते समय सीटबेल्ट न लगाने पर जुर्माना नहीं लगा सकते।हम अमेरिका की तरह अपने वर्तमान राष्ट्रपति के घर केंद्रीय जांच एजेंसी का छापा नहीं मार सकते, क्योंकि हमारा संविधान हाथी के दांत की तरह है। संविधान और गणतंत्र हमारे लिए शोभा की चीज है।हम राजपथ पर परेड निकाल कर खुश हो लेते हैं।हम तब भी खुश होते थे जब गांधी, नेहरू के अनुयाइयों की सरकार थी और आज भी जबकि देश में गांधी -नेहरू के विरोधियों की सरकार है।
                           दरअसल संविधान सरकारों का मोहताज होकर रह गया है क्योंकि उसे अवाम का समर्थन नहीं मिला।अवाम का समर्थन अब छीना,झपटा जा सकता है।छीना, झपटा जा रहा है। मैंने दुनिया के सबसे मजबूत देश अमेरिका और सबसे कमजोर देश कंबोडिया, और पड़ोस के नेपाल को भी देखा है।इन देशों के संविधान हमारे देश के संविधान के मुकाबले बहुत कमजोर हैं लेकिन इन देशों का अवाम भारत के अवाम के मुकाबले अपने संविधान और विधि,विधान का ज्यादा सम्मान करते हैं। कानून, संविधान और तंत्र का सम्मान करने के लिए अमीर-गरीब, साक्षर और निरक्षर होना कोई मायने नहीं रखता। इसके लिए राष्ट्र के प्रति समर्पण जरूरी है। मुझे लगता है कि वह दिन भारत में शायद ही कभी आएगा जब जाति, धर्म ,अमीर,गरीब के आधार पर भेदभाव बंद होगा। हम आज भी इन सभी में उलझे हुए हैं। ये उलझन नैसर्गिक नहीं है। हमें यानि आवाम को जानबूझकर उलझाया जा रहा है। इसके लिए बाकायदा तंत्र का दुरुपयोग भी अब आम बात है। हमारे यहां संविधान ने भेदभाव खत्म करने के बजाय बढाए हैं। वीआईपी संस्कृति और जातिवाद ही नहीं धर्म भी हमारे मौजूदा तंत्र की फजीहत की सबसे बड़ी वजह हैं।हम इन्हें ठीक नहीं करना चाहते। चूंकि मैं जानता हूं इसलिए ये मानता हूं कि आप भी ये जानते होंगे कि बीते 74 साल में हमने 105 संशोधन किए हैं, लेकिन अब तक अपने संविधान को मजबूत नहीं बना पाए हैं।हमारा संविधान लचीला नहीं लचर संविधान है।एक लचर संविधान से हम ज्यादा बेहतर परिणाम की अपेक्षा नहीं कर सकते।हमारा संविधान हमारे हितों की जितनी सेवा कर सकता है,कर रहा है।हम अपने आपको बदले बिना ‘ अच्छे दिनों की अपेक्षा नहीं कर सकते। ये देश के लोकतंत्र का दुर्भाग्य है या सौभाग्य कि भारत में छह सौ साल पहले लिखी गई राम चरित मानस हो या गुरुवाणी या कोई और धर्म ग्रंथ तो पूजा जाता है किन्तु संविधान के प्रति किसी के मन में कोई आस्था या सम्मान नहीं है। हमारे यहां घर-घर में धर्म ग्रंथ मिल सकते हैं लेकिन संविधान की प्रति नहीं मिलेगी, क्योंकि आमजन के लिए संविधान एक फालतू की चीज है। मुझे पता है कि आपमें से बहुत से लोग इस कड़वे सच को स्वीकार नहीं कर सकते। करना भी नहीं चाहिए क्योंकि ये एक मुश्किल काम है। सच्चाई स्वीकार करने के लिए इच्छाशक्ति चाहिए जो हर एक के पास नहीं होती। भारतीय लोकतंत्र उस दिन का इंतजार कर रहा है जब हर भारतीय अपने नागरिक दायित्वों को अपने धर्म से ऊपर उठकर निभाना शुरू कर देगा।जिस दिन ऐसा होगा वो ही भारत में गणतंत्र की स्थापना का सही दिन होगा।आप सभी को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं।

व्यक्तिगत विचार-आलेख-

श्री राकेश अचल जी  जी ,वरिष्ठ पत्रकार  एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश  । 

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