नए मध्यप्रदेश में डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा शिक्षा मंत्री बने और बाद में सन 1967 में द्वारका प्रसाद मिश्र ने उन्हें उद्योग मंत्री बनाया कालांतर में भी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी बने क्योंकि डॉक्टर शर्मा उच्च शिक्षित तथा अंग्रेजी बहुत बढ़िया बोलते थे इसलिए कई हिंदी बोलने वाले नेता उनसे खार खाते थे एक बार शिक्षा मंत्री के रूप में विधानसभा में अंग्रेजी में उत्तर देने के कारण विधायकों ने आपत्ति कर दी कि उन्हें सदन में हिंदी में ही बोलना चाहिए अध्यक्ष के निर्देश पर उन्हें अपनी भाषा बदलनी पड़ी पर शर्मा भी हटके पक्के थे उसके बाद उन्होंने जो कहा वह कुछ इस तरह था – “हम अपने स्टूडेंट को स्पेशलाइज्ड एजुकेशन इम्पार्ट करना चाहते हैं उनके सब्जेक्ट को फुली अंडरस्टैंड किए बिना एक्सप्लेन कैसे किया जा सकता है”
शंकर दयाल शर्मा शिक्षा मंत्री थे उन्होंने बच्चों की हिंदी की पाठ्यपुस्तक में धर्मनिरपेक्षता लाने की नियत से कुछ परिवर्तन किए । उन दिनों हिंदी वर्णमाला में ग- गणेश का पढ़ाया जाता था शर्मा ने आते ही उसको ग- गणेश के बजाय ग – गधे का पढ़वाना शुरू कर दिया । शंकर दयाल शर्मा भोपाल राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे इसलिए वहां किसी हिंदू देवी देवता का पाठ्यक्रम में होना उचित नहीं माना जाता था इसलिए भोपाल राज्य में ग – गधे का ही पढ़ाया जाता था जबकि जाता था, जबकि मध्यप्रदेश में ग – गणेश पद्य जाता था ।
भोपाल राजधानी कैसे बना
पहले विधानसभा अध्यक्ष कुंजीलाल दुबे जब नागपुर राजधानी छोड़कर भोपाल आने लगे तो उन्होंने यह पंक्तियां लिखी – “भजन करो या बंदगी अब न गलेगी दाल ,उनसे खुश गोपाल जी जिनसे खुश भोपाल ”
1 नवंबर 1956 को राज्यों के पुनर्गठन के बाद जब नया प्रदेश बना तब राजधानी को लेकर काफी जद्दोजहद हुई जहां ग्वालियर और इंदौर मध्य भारत के बड़े नगर थे वहीं रायपुर रविशंकर शुक्ल के कारण महत्वपूर्ण हो गया था इन सब के नीचे जबलपुर का दावा भी सर्वोपरि था। मध्य प्रदेश के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग ने अपनी सिफारिशों में भी जबलपुर का नाम राजधानी के लिए प्रस्तावित किया था कहा जाता है कि सेठ गोविंद दास जबलपुर को राजधानी बनाने के लिए सबसे ज्यादा पहल की थी उन्होंने में सफलता प्राप्त कर ली थी जबलपुर को राजधानी बनाया जाना चाहिए उन्हीं दिनों विनोबा भावे ने जबलपुर को सांत्वना स्वरूप संस्कारधानी की उपमा भी दी थी।
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