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मानवीयता से ही समानता और आजादी…

भोपाल। हम सब आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं 75 वर्ष देश को आजाद हुए हो गए हैं इन वर्षों में देश ने बहुत तरक्की की है लेकिन अभी भी अमानवीयता असमानता और जकड़न से मुक्ति पाने का आह्वान होता रहता है और राजनीति के माध्यम से इसको पाने की कल्पना की जाती है लेकिन यह सब अध्यात्म से ही संभव हो सकेगा मानवीयता आएगी तो समानता भी आएगी और असली आजादी का भी एहसास होगा ।

दरअसल इस समय पूरा देश तिरंगा मय है हर घर तिरंगा अभियान चल रहा है कौन चला रहा है और क्यों चला रहा है इस पर कहीं-कहीं बहस भी चल रही है लेकिन तिरंगा सबको प्यारा है और तिरंगे की आन बान शान के लिए सब कुछ कुर्बान करने को तैयार भी हैं क्योंकि आजादी देश को हजारों लाखों कुर्बानियां के बाद मिली कितने युवा फांसी के फंदे पर हंसते-हंसते झूल गए और कितने सीने पर गोली खाकर जय हिंद का नारा लगाते हुए चले गए क्योंकि उन सब का एक ही सपना था देश आजाद हो देश तरक्की करें और देश में अमन चैन शांति का वातावरण बने यह सब कुछ इन 75 वर्षों में बहुत कुछ हासिल भी हो चुका है लेकिन इसके बावजूद समाज में जिस तरह से अमानवीय घटनाएं हो रही हैं संबंधों में विश्वास घट रहा है युवा नशे की गिरफ्त में हो रहा है धर्म और जाति के नाम पर असमानता बन रही है ऐसे में यक्ष प्रश्न यही उठता है की राजनीति के भरोसे मानवीयता समानता और आजादी का एहसास क्या पूरी तरह से हो पाएगा ?  तब एक और रास्ता दिखाई देता है वह है अध्यात्म का जिस पर चलकर समाज समानता के रास्ते पर खड़ा हो सकता है क्योंकि सभी धर्मों का अध्यात्म मानवता की राह दिखाता है और यही राह है जो अंदर और बाहर के आजादी का आनंद दे सकती है जिस तरह से समाज में तनाव बढ़ा हुआ है आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं उस समाज में सबसे ज्यादा जरूरत आत्म चिंतन आत्मज्ञान और आत्म आनंद की अनुभूति की है क्योंकि जब तक हमें अध्यात्म का ज्ञान नहीं होगा तब तक हम भौतिक सुख-सुविधाओं में आनंद को ढूंढते रहेंगे और इनको पाने के लिए गुलामी जैसी जिंदगी भी जीने के लिए मजबूर हो जाएंगे जबकि स्पष्ट कहा गया है पराधीन सपनेहु सुख नाही हम कितने पराधीन हो गए हैं सुबह से लेकर देर रात तक अनुभव करेंगे तो पता चलेगा यदि 1 मिनट को बिजली गुल हो जाए तो हम बेचैन हो जाते हैं नेट चला जाए मोबाइल ना चले तो कितने लोग झुजला जाते हैं और भी ऐसे अनेकों सुविधाओं के गिरफ्त में हम आ चुके हैं जिनके ना मिलने पर बेचैन हो जाते हैं।

बहरहाल यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर बहुत लंबी चर्चा हो सकती है तर्क वितर्क हो सकते हैं लेकिन फिलहाल हम उत्सव मनाए कि हम आजाद हुए भारत में अमृत महोत्सव मना रहे हैं और इसी उत्सव के साथ यदि छोटे छोटे से संकल्प भी लेते चलेंगे तो आजादी का आनंद कई गुना हो जाएगा और इसके लिए ना हमें अंग्रेजों से लड़ना है और ना फांसी के फंदे पर झूल ना है ना सीने में गोली खाना है केवल समाज सुधार कि दिशा में कुछ छोटा सा योगदान ही देना है जो घर बैठे अपने काम करते हुए भी हम दे सकते हैं और हम सुधरेंगे जग सुधरेगा की तर्ज पर देश के नव निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं मसलन हम सब नशे के खिलाफ संकल्प लें क्योंकि नशा समाज को बर्बाद कर रहा है नशे के कारण अपराध बढ़ रहे हैं दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं और जिसके कारण तनाव बढ़ रहा है इसी तरह पेड़ पौधे लगाने का संकल्प लें जिससे कि आने वाली पीढ़ी को शुद्ध ऑक्सीजन और शुद्ध पीने का पानी मिल सके पानी की एक एक बूंद बचाने का भी संकल्प लें क्योंकि तेजी से दुनिया में जलस्तर कम हो रहा है आपस में जातिवाद की बातें ना करके मानवता की बात करें जिससे समाज संगठित होगा हर समाज में अच्छे और बुरे दोनों तरह के व्यक्ति हो सकते हैं इसलिए जब मानवता की बात करेंगे तब स्वाभाविक रूप से समाज के अच्छे व्यक्ति स्वयं ही आगे आ जाएंगे हम आडंबर और अहंकार को बढ़ावा देना छोड़ दें ईमानदारी और सहजता को महत्त्व देना शुरू कर दें धीरे धीरे छोटे-छोटे प्रयासों से समाज में आमूलचूल परिवर्तन आएगा और ना केवल हम आजादी का उत्सव मना पाएंगे वरन आने वाली पीढ़ी के लिए एक ऐसा समाज देकर जाएंगे जहां मानवीयता होगी समानता होगी और सब अपने आप को आजाद महसूस करेंगे और हमारे पूर्वजों ने जिस उद्देश्य के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी अपनी कुर्बानियां भी उनका उद्देश्य भी सफल होगा और हमारा देश ना केवल मजबूत होगा वरन विश्व गुरु बनेने का सपना भी साकार होगा

 

देवदत्त दुबे, भोपाल, मध्यप्रदेश 

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