राजनीतिनामा

पीओके की नहीं पीके की भविष्यवाणी

आजकल भारत में दो ही चीजें ज्यादा चर्चित हैं । एक पीओके और दूसरे पी के। दोनों का रिश्ता भारत से और भारतीय जनता पार्टी से। भारत की जनता से इन दोनों का कोई लेना-देना नहीं है । पीओके यानी पाक अधिकृत कश्मीर और पीके अर्थात प्रशांत किशोर। इन दोनों के बिना २०२४ के आम चुनाव में भाजपा की दाल गलती नजर नहीं आती। भारत का विपक्ष तो दाल गलाना और खाना दोनों भूल चुका है। जो दाल पकता है उसी में काला खोजा जाता है। आज हमें भी पीओके और पीके में दाल में काला नजर आने लगा है ।पीओके यानि पाक अधिकृत कश्मीर एक पुराना जख्म है। इतना पुराना की आज की पीढी को इसके बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं ,लेकिन भाजपा की सरकार देशवासियों को ‘ चन्दा मामा दूर के ‘ की तर्ज पर पीओके के किस्से सुनाती है ,ख्वाब दिखाती है। इस बार चूंकि पांचवा चरण बीतने के बावजूद कोई पुलवामा नहीं हुआ इसलिए सारा जोर पीओके के ऊपर है। सरकार ने जितनी आसानी से जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटा दी ,उतनी ही आसानी से वो पीओके को भारत में दोबारा शामिल करने की बात कर रही है। पीओके को वापस लेना सचमुच बड़ी बात है। और ये बड़ी बात केवल बड़े -बड़े लोग या बेवड़े लोग कर सकते हैं। कम से कम सामान्य आदमी तो ऐसी बातें न सोच सकता है और न कर सकता।पीओके का किस्सा बहुत लंबा है ,उतना ही लंबा जितना की आज के नेताओं की जबान । चौड़ी छाती और लम्बी जबान वाले लोग बिरले ही होते हैं। पीओके के बारे में ज्यादा जानना हो तो इतिहास में जाना पडेगा। फिर गांधी ,नेहरू को कोसना पडेगा। लेकिन अभी ये सब करने की फुरसत किसे है ? सब चार सौ पार करने में लगे है। पीओके मिले या न मिले लेकिन चार सौ पार करना देश की सेहत के लिए बहुत जरूरी है। भारत की जनता इस लक्ष्य को हासिल करने में मदद करे या न करे लेकिन पीके यानि प्रशांत किशोर जरूर भविष्य वाणियां कारणें में आगे हैं।
                                  पीके यानि प्रशांत किशोर एक भटकती आत्मा है। आपातकाल के बाद जन्में प्रशांत किशोर पेशे से राजनीति के रणनीतिकार ह। भविष्यवक्ता है लेकिन अपने ही भविष्य के बारे में नहीं जानते। 1977 में बिहार की धरती पार जन्मने प्रशांत किशोर की रणनीत्ति के फलस्वरूप माननीय नरेंद्र दामोदरदास मोदी देश के प्रधानमंत्री बन पाए ऐसी धारण है। पीके को 2014 के लोक सभा चुनाव,2015 में बिहार विधान सभा चुनाव2017 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव और 2019 के आंध्र प्रदेश विधान सभा चुनाव के बाद 2021 में पश्चिम बंगाल चुनाव में तृण मोल कांग्रेस की बड़ी जीत ने प्रशांत कुमार की दूकान तो जमाई लेकिन किसी राजनीतिक दल ने उन्हें जब राजनीति में हिस्सेदार नहीं बनाया तो बेचारे ने अपनी भटकती आत्मा को ढांढस बढ़ाने के लिए ‘ जन सुराज ‘ नाम का एक राजनितिक दल बना लिया।हमेशा अशांत रहने वाले प्रशांत किशोर ने कहा,है कि “मुझे लगता है कि मोदी सरकार की तीसरी पारी की धमाकेदार शुरुआत करेगी। केंद्र के पास शक्ति और संसाधन दोनों का और भी ज्यादा कंसंट्रेशन होगा । प्रशांत किशोर ने एक चैनल से से बातचीत में इस बात की भी भविष्यवाणी की है कि आखिर तीसरी बार में बीजेपी को कितनी सीटें मिलने की उम्मीद है. उन्होंने बीजेपी के लिए 300 सीटों का अनुमान लगाया है. उन्होंने कहा कि 2019 के चुनाव बीजेपी ने 303 सीटें कहां से हासिल कीं? 303 में 250 सीटें उत्तर और पश्चिम क्षेत्र से आई। प्रशांत किशोर ने कहा, “पूर्व और दक्षिण में बीजेपी के पास लोकसभा में लगभग 50 सीटें हैं, इसलिए माना जाता है कि पूर्व और दक्षिण में बीजेपी की सीट हिस्सेदारी बढ़ रही है. यहां 15-20 सीटें बढ़ने की उम्मीद है, जबकि उत्तर और पश्चिम में कोई खास नुकसान नहीं हो रहा है.“पीओके भारत को दोबारा मिले या न मिले लेकिन प्रशांत किशोर को इस बार कम से कम पद्मभूषण पुरस्कार तो मिलना ही चाहिए। उनके पास तीसरा नेत्र है जो सबसे अलग देखता है और जनता को दिखने कि कोशिश करता है। बेहतर हो कि भाजपा जब तीसरी बार सत्ता में आये तब प्रशांत किशोर शोर करने के बजाय चुपचाप अपनी टटपुँजिया पार्टी को भाजपा में या उनकेअपने हठबंधन में शामिल कर ले ।हकीकत ये है कि इस देश को न पीओके की जरूरत है और न पीके की । इस देश को जरूरत है साम्प्रदायिकता ,महंगाई,बेरोजगारी और अहंकार से मुक्ति की।देश की ईवीएम मशीनों में झाँकने का हुनर इस सस्य देश में सिर्फ दो लोगों के पास है । एक हैं केंद्रीय गृहमंत्री श्री अमित शाह और दूसरे प्रशनत किशोर उर्फ़ पीके। इन दोनों के मुंह में भरने के लिए भाजपा को घी और शक़्कर का इंतजाम अभी से कर लेना चाहिए ,क्योंकि पीके झूठ थोड़े ही बोलते हैं।
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