प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव के परिणाम दोनों ही दलों को सतर्क और सावधान किए हुए हैं। कोई किसी से पीछे नहीं रहना चाहता चाहे आरोप प्रत्यारोप लगाने की बात हो चाहे संगठन को दुरुस्त करने का मसला हो और चाहे बूथ की मजबूती की बात हो मोर्चे पर रणनीतिकार सक्रिय हो गए हैं। दरअसल, प्रदेश में विधानसभा के आम चुनाव के लिए कुछ ही महीने शेष बचे हैं उसमें भी 6 महीने पहले आचार संहिता का असर दिखाई देने लगता है। यही कारण है कि दोनों ही प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस अपना माहौल बनाने के लिए भारी मशक्कत करने में अभी से जुट गए हैं। व्यक्तिगत स्तर पर विधानसभा क्षेत्रों को विधायक और मंत्री साधने में जुट गए हैं। सत्तारूढ़ दल भाजपा जहां गुजरात जैसी जीत की बातें कर रही है गुजरात का फार्मूला प्रदेश में लागू करना आसान नहीं है लेकिन नए तरीके से हर हाल में चुनाव जीतने के लिए कोशिश है। इसके लिए एक तरफ जहां अनुभवी नेताओं को महत्व दिया जा रहा है। वहीं नया नेतृत्व उभारने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं। जोश और होश के समन्वय से पार्टी चुनावी रण फतह करने की रणनीति पर काम कर रही है। केंद्र सरकार से योजनाएं स्वीकृत कराकर माहोल विपक्षी दल कांग्रेस 2018 से भी ज्यादा 2023 के चुनाव के लिए गंभीर बनी हुई है।
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पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने ना तो मध्य प्रदेश छोड़ा और ना ही सरकार बनाने की उम्मीद वे लगातार प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं और इसके लिए संगठन में कसावट और बूथ स्तर पर जमावट कर रहे हैं। भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में माहोल बनाने में भी पार्टी ने कोई कसर नहीं छोड़ी और अब घर घर पार्टी को जोड़ने का अभियान चलाया जा रहा है। संगठन में व्यापक स्तर पर फेरबदल किया गया है लेकिन अभी भी पार्टी को एकजुटता की जरूरत है। जिस तरह से नेताओं की एकला चलो की चाल दिखाई दे रही है उससे कार्यकर्ताओं और आमजन पर कांग्रेश की दमदार छवि नहीं बन पा कार्यकर्ता सक्रिय भी होगे। बनाया जा रहा है प्रधानमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्रियों के लगातार दौरे देश में हो रहे हैं। मेगा शो भी लगातार माहौल को बनाने में सहयोग कर रहे हैं लेकिन टिकट वितरण पार्टी की सबसे बड़ी कसौटी होगी। यदि तेरा मेरा या किसी भी प्रकार की शर्तों की बजाए केवल जीतने वाले को टिकट देने शर्त पर ही पार्टी सत्ता में आ सकती है क्योंकि कुल मिलाकर चुनावी वर्ष में दोनों ही प्रमुख दल अपना-अपना माहोल बनाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। एक तरफ जहां अपनी जीती हुई सीटों को बचाने की कोशिश हो रही है। वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल के दिग्गज नेताओं को घेरने के लिए भी रणनीति बनाई जा रही है। भाजपा जहां विकास यात्रा के माध्यम से प्रदेश में सकारात्मक माहोल बनाने के लिए जमकर तैयारियां कर रही है। वहीं कांग्रेस “घर-घर जोड़ो अभियान” की सफलता के लिए कसरत कर रही है। दोनों ही दलों के रणनीतिकारों की कोशिश है कि प्रदेश में ऐसा माहौल बन जाए कि 2023 में उनकी पार्टी की सरकार बन रही है जिससे न्यूट्रल मतदाताओं का झुकाव उनके दल की तरफ हो जाए इससे पार्टी में अनुशासन भी बढ़ेगा और कारकर्ता सक्रीय भी होंगे ।
व्यक्तिगत विचार-आलेख-
श्री देवदत्त दुबे जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश ।
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