पाकिस्तान के गठन के बाद केंद्रीय सरकार की नजर में नवाब हमीदुल्लाह खान की गतिविधियां संदेह से परे नहीं थी दिल्ली की सरकार देश के हृदय स्थल में पाकिस्तानी गतिविधियों का कोई केंद्र सक्रिय नहीं देखना चाहती थी सरदार पटेल ने ऐसी परिस्थिति में भोपाल पर पूरी नजर रखने के लिए इसे राजधानी बनाने का फैसला कर लिया नवाब की गतिविधियां और उनके इरादे कितने खतरनाक थे यह केवल एक घटना से ही सिद्ध हो जाता है नवाब ने सन 1948 में बैंक ऑफ भोपाल की एक शाखा कराची में खोल दी तथा भोपाल का सारा धन वहां ले गए यहां बैंक ऑफ भोपाल का दिवाला निकल गया इसमें भोपाल के हजारों नागरिकों की जमा पूंजी डूब गई।
नवाब हैदराबाद के निजाम के साथ मिलकर भारत सरकार का विरोध कर रहे थे नवाब पूरे हिंदुस्तान के बीचो बीच रहकर पाकिस्तान से संबंध चाहते थे वह मोहम्मद अली जिन्ना के मित्र होने के साथ-साथ जवाहरलाल नेहरू के भी दोस्त थे देश की स्वतंत्रता के कुछ महीने पहले जिस तरह त्रावणकोर के राजा ने भारत संघ में मिलने में आनाकानी की थी उसी तरह नवाब के भोपाल के नवाब भी भारत विरोधी थे। भोपाल नवाब सन 1944 से चेंबर ऑफ प्रिंसेस नरेश मंडल के चांसलर थे और कांग्रेस के कट्टर विरोधी नवाब मुस्लिम लीग और ज्यादा नजदीक थे लॉर्ड माउंटबेटन ने पहले भोपाल नवाब के साथ गोल्फ खेला करते थे और वे उनके हिंदुस्तान मैं दूसरे सबसे अच्छे मित्र थे पहले अच्छे मित्र जवाहरलाल नेहरू थे बड़ी मुश्किल से भोपाल नवाब ने भारत में विलय को स्वीकृति दी पर खुद यहां नहीं रहे
भोपाल नवाब इसके बाद इंग्लैंड चले गए और बड़ी बेटी पाकिस्तान। उनकी पुत्री “बड़ी भैया” को पाकिस्तान जाने के बाद वहां की सरकार ने ब्राजील का राजदूत बना दिया बड़ी भैया की कुरवाई के नवाब से शादी हुई थी नवाब की छोटी बेटी हरियाणा के पटौदी रियासत के नवाब से ब्याही गई उन्हीं के पुत्र नवाब मंसूर अली खान थे जो प्रसिद्ध खिलाड़ी के रूप में विख्यात इनकी शादी बॉलीवुड कलाकार शर्मिला टैगोर से हुई सैफ अली खान उनके पुत्र हैं इन्ही रिश्तों के चलते टाइगर पटौदी ने भोपाल से एक बार लोकसभा का चुनाव 1991 में लड़ा था।
जबलपुर की राजधानी का एक कारण यह भी माना गया कि वहां के कुछ समाचार पत्रों में खबर प्रकाशित की सेठ गोविंददास के परिवार ने जबलपुर नागपुर रोड पर सैकड़ों एकड़ जमीन खरीद ली है अखबारों ने छपा कि सेठ परिवार ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि जब जबलपुर राजधानी बनेगी जमीनों का मुआवजा मिलेगा जब पंडित नेहरू को पता चली तो भोपाल का दवा और मजबूत हो गया भोपाल को राजधानी बनाने का एक और कारण था प्रदेश के समाजवादी आंदोलन को कमजोर करना है यदि जबलपुर रानी बन जाता तो महाकौशल के साथ में भी राजनीति का केंद्र जबलपुर में ढेर सारे कर्मचारियों तथा कार्यालय को उपलब्ध नहीं है मौलाना आजाद ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थापित करने के भावनात्मक पक्ष में थे भोपाल के मुख्यमंत्री डॉ शंकर दयाल शर्मा भी यह समझाने में सफल हो गए कि भोपाल में बहुत सारी सरकारी इमारतें हैं वह जमीन खाली है और यहां आवास तथा कार्यालय की इमारत बनाने में जमीन खरीदने की कोई आवश्यकता नहीं होगी।
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