अकेले कमल की संपत्ति ‘शून्य से शिखर’ पर नहीं
– प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल इस समय खासे चर्चित हैं। अपने काम की स्टाइल एवं सक्रियता के कारण वे हमेशा चर्चा में रहते हैं लेकिन इस बार वजह बना है उन्हें लेकर वायरल एक वीडियो। इसमें बताया गया है कि कमल पटेल आर्थिक स्थिति के मसले पर पहले कैसे थे और विधायक, मंत्री बनने के बाद उनकी संपत्ति में कैसे ‘दिन दूनी रात चौगुनी’ गति से इजाफा हुआ और वे ‘शून्य से शिखर’ पर पहुंच गए। वायरल वीडियो में किसी राजनेता का इस तरह महिमा मंडन कोई नई बात नहीं है। वैसे भी संपत्ति कमाने के कई रास्ते हैं, कुछ कठिन तो कुछ बेहद आसान। आसान तरीकों में एक है राजनेता बनकर कोई भी चुनाव जीत लेना। कई राजनेता पार्षद और सरपंच का ही चुनाव जीत ले, देखते ही देखते साइकल, स्कूटी और बाइक छोड़कर सफारी जैसी महंगी और लक्जरी गाड़ी में दिखेगा। कमल पटेल तो कई बार के विधायक और बड़े विभाग के मंत्री हैं। एक ही चुनाव लड़ने पर विरोधी तीन पीढ़ियों की जानकारी बाहर ला देते हैं। कमल पटेल का तब भी लंबे समय बाद ऐसा वीडियो वायरल हुआ है। यह लोगों के बीच आग की तरह फैला है। ट्रेन तक में लोग इसकी चर्चा करते सुनाई पड़ गए। अलबत्ता, राय अलग-अलग थी, कोई कमल की तारीफ कर रहा था, कोई आलोचना। राजनीति में यह चलता है, कमल भी ये जानते होंगे।
दलबदल में भाजपा के नहले पर कांग्रेस का दहला.
– चुनावी साल में ‘आया राम गया राम’ अर्थात दलबदल नई बात नहीं है। साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर मध्य प्रदेश में भी इसकी शुरूआत हो चुकी है। भाजपा इस काम में माहिर है लेकिन कांग्रेस ने भी भाजपा को झटके देना शुरू कर दिए हैं। इसमें मुख्य भूमिका निभा रहे हैं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के भोपाल प्रवास के दौरान पार्टी से निष्कासित प्रीतम लोधी, बसपा की पूर्व विधायक ऊषा चौधरी और राजगढ़ से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुकीं मोना सुस्तानी को पार्टी में लेकर भाजपा ने बढ़त बनाई थी, लेकिन पहले गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में भाजपा के कद्दावर नेता रहे राव देशराज सिंह के बेटे राव यादवेंद्र सिंह यादव और इसके बाद खरगोन से 2009 में भाजपा सांसद रहे माखन सिंह सोलंकी को पार्टी में लेकर कांग्रेस ने भाजपा के ‘नहले पर दहला’ जड़ दिया। खास यह है कि माखन सिंह पार्टी न छोड़ें, इसके लिए भाजपा की ओर से जमकर मान मनौव्वल हुई लेकिन वे नहीं माने। साफ है कि राव यादवेंद्र और माखन सिंह के कांग्रेस में जाने से भाजपा मुश्किल में है। दिग्विजय को भाजपा नेता भले अपने लिए अनुकूल माने लेकिन वे यह भी जानते हैं कि यदि वे प्रदेश में सक्रिय रहे तो वे और मुश्किलें पैदा कर सकते हैं।
इन विधायकों पर लटकी सदस्यता समाप्ति की तलवार
– राहुल गांधी जैसा बर्ताव मप्र में नहीं हुआ लेकिन प्रदेश के चार विधायकों पर सदस्यता समाप्ति की तलवार यहां भी लटकी है। प्रहलाद लोधी ही ऐसे हैं, जिनकी सदस्यता तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति द्वारा समाप्त की गई थी। एक अपराधिक मामले में कोर्ट ने प्रहलाद को दो साल की सजा सुनाई थी। इस आधार पर उनकी सदस्यता विधानसभा सचिवालय द्वारा समाप्त कर दी गई थी। भाजपा ने इसे तत्कालीन कमलनाथ सरकार की घटिया हरकत कहा था। स्पीकर की कार्रवाई को असंवैधानिक ठहराया था। कांग्रेस विधायक अजब सिंह कुशवाह को सरकारी जमीन बेचने के आरोप में दो साल की सजा हुई थी। मगर विधानसभा अध्यक्ष ने तत्काल उनकी सदस्यता खत्म करने का फैसला नहीं लिया और कुशवाह ऊपरी अदालत से स्टे ले आए। उमा भारती के भतीजे भाजपा विधायक राहुल लोधी पर कांग्रेस प्रत्याशी चंदारानी द्वारा नामांकन पत्र में जानकारी छिपाने का आरोप लगाया था। अदालत ने उन्हें विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित करने का फैसला सुनाया था। उनका मामला ऊपरी अदालत में लंबित है। तीसरे मामले में चुनाव आयोग ने नरोत्तम मिश्रा को तीन साल के लिए अयोग्य करार दिया था। हाईकोर्ट से होता हुआ यह मामला सुप्रीम कोर्ट में अंतिम चरण में है। कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र भारती ने पेड न्यूज मामले में उन्हें उलझा रखा है।
अरुण के खास चंद्रिका पर कमलनाथ का भरोसा
– जैसी तनातनी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ एवं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के बीच लंबे समय से देखने को मिली है, कोई उम्मीद कर सकता था कि अरुण के सबसे खास रहे चंद्रिका प्रसाद द्विवेदी कमलनाथ का भरोसा जीत लेंगे, लेकिन यह चमत्कार हो गया। चंद्रिका आज कमलनाथ के भरोसे के पदाधिकारी और उनके कोर ग्रुप के सदस्य हैं। अरुण यादव के प्रदेश अध्यक्ष रहते चंद्रिका प्रदेश कांग्रेस में संगठन के प्रभारी महामंत्री थे। इस समय भी महामंत्री के साथ कमलनाथ के निर्देश पर पार्टी के राजनीति से जुड़े मामले देख रहे हैं। इतना ही नहीं वे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की टीम में भी मुख्य भूमिका में थे और हाथ जोड़ो अभियान में भी। संभवत: इसकी वजह यह है कि गुटबाजी से अलग हटकर वे सौंपे गए दायित्व का निर्वाह ईमानदारी से कर रहे हैं। उन्होंने अपने काम से खुद को सिद्ध किया है और कमलनाथ के भरोसे पर खरे उतरे हैं। काम का अनुभव उनके पास था ही। शायद इसीलिए कमलनाथ ने उन्हें अपनी खास टीम में जगह दी है। सवाल है कि क्या पार्टी का हर नेता व्यक्तिगत राग-द्वेश भूलकर इसी तरह संगठन को सर्वोपरि मान काम नहीं कर सकता? यदि ऐसा हो जाए तो पार्टी के अंदर गुटबाजी स्वत: खत्म हो जाएगी और कांग्रेस हमेशा भाजपा के साथ दो-दो हाथ करने के लिए तैयार दिखेगी।
व्यक्ति की बजाय संगठन के महत्व का उदाहरण
– भाजपा में भले नेताओं के अपने समर्थक हैं और सभी के अपने-अपने गुट, बावजूद इसके हर नेता कहता यही है कि पार्टी में व्यक्ति नहीं संगठन को महत्व मिलता है। अर्थात व्यक्ति की बजाय जो पार्टी को सर्वोपरि मानकर चलेगा, वह लंबी दौड़ का घोड़ा साबित होगा। सागर को ही ले लीजिए यहां के तीन असरदार नेता प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। इनमें भूपेंद्र सिंह मुख्यमंत्री शिवराज के कोटे से हैं और गोविंद सिंह राजपूत केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खेमे से। तीसरे मंत्री गोपाल भार्गव का नाम किसी नेता के साथ नहीं जुड़ा है। यहां मंत्रियों के बीच आपसी मनमुटाव के चर्चे सुखियां बने रहते थे, इस समय तारीफ की गूंज है। गढ़ाकोटा के सामूहिक विवाह कार्यक्रम में भूपेंद्र ने कहा था कि गोपाल भार्गव ने इतना पुण्य कमा लिया है कि वे किसी को आशीर्वाद देंगे तो उसका भी भला हो जाएगा। इधर रानगिर की सभा में गोविंद सिंह राजपूत ने भी भार्गव की तारीफ करते हुए कहा कि प्रदेश की जनता चाहती है कि रहली जैसा विकास हर क्षेत्र में हो। अर्थात शिवराज के खास भूपेंद्र और महाराज के खास गोविंद दोनों गोपाल की तारीफ करते नजर आ रहे हैं। इसकी वजह यह तो नहीं कि भार्गव का नाम किसी नेता के साथ नहीं जुड़ा है और इन तारीफों का संदेश है कि व्यक्ति की बजाय संगठन को महत्व देने वाला ही सबसे ऊपर होगा?
व्यक्तिगत विचार आलेख
श्री दिनेश निगम त्यागी जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश ।
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