नये निज़ाम में दिग्विजय सिंह के चहेते अधिकारियों ने भी खूब मनमानी की। बजट सत्र के दौरान एक दिन अचानक 1992 के भोपाल-उज्जैन दंगों की न्यायिक जांच की रिपोर्ट विधानसभा में रख दी गई। इस रिपोर्ट पर सदन में हंगामा हुआ। मुख्यमंत्री और सरकार को समझ में नहीं आया कि किस तरह से बचाव किया जाये। हुआ यह था कि रिपोर्ट बिना सरकार को बताये प्रमुख सचिव गृह एवं सामान्य प्रशासन विभाग ने अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी समझते हुए विधानसभा में रख दी थी। उमा भारती को जब पता चला तो उन्होंने दोनों प्रमुख सचिवों को नोटिस दिया।
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हालांकि इसके पहले यह रिपोर्ट अगस्त 2003 में कैबिनेट में रखी जा चुकी थी और कमीशन आफ इन्क्वारी एक्ट के मुताबिक छह महीने में इसे विधानसभा में रखा जाना जरूरी होता है।” इस घटना के बाद उमा भारती ने अधिकारियों की नकेल कसना शुरु कर दिया। इसका प्रभाव यह पड़ा कि अधिकारी मुख्यमंत्री के सामने आने में डरने लगे । आरंभ में उमा भारती को नौकरशाही पर बहुत अविश्वास था। जब सरकार के कुछ निर्णय घोषित होने के पहले ही लीक होने लगे तब उमा भारती ने एक दिन कैबिनेट बैठक से सभी अफसरों को बाहर कर दिया। उसके बाद निर्णय हुआ कि कैबिनेट बैठक में अधिकारी नहीं रहेंगे।
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