झमाझम वर्षा के बीच बरसी बागेश्वर सरकार की अमृतवाणी
खुरई में बागेश्वर सरकार की कथा के पूर्व हुई इंद्रदेव की कृपा
खुरई। पूज्य बागेश्वरधाम सरकार की महिमा और खुरई वासियों के पुण्य प्रताप से 5 सितंबर को कथा आयोजन हेतु कलशयात्रा के पश्चात ही वर्षा प्रारंभ हो गई। पर्याप्त वर्षा से सूख रही खेती में फिर से रौनक लौट आई और किसानों के चेहरे खिल उठे। कथा आयोजक मंत्री श्री भूपेंद्र सिंह ने कल ही यह विश्वास प्रकट किया था कि महाराज जी की कथा प्रारम्भ होते ही वरुण देवता का आशीर्वाद वर्षा के रूप में प्राप्त होगा। इसी दृष्टि से 700 वाई 100 वर्गफुट के तीन वाटरप्रूफ पंडाल तथा इनमें बैठने के लिए नीचे प्लाई का फर्श बनाया गया है जिनपर फर्श और गद्दे बिछाए गये हैं। कथा श्रावकों के वर्षा से थोड़ी सी भी परेशानी नहीं हुई बल्कि मौसम और प्रकृति ने श्रावकों के अनुकूल वातावरण स्वतः ही निर्मित कर दिया।नगरीय विकास एवं आवास मंत्री श्री भूपेंद्र सिंह व श्रीमती सरोज सिंह ने व्यासपीठ पर आसीन पूज्य बागेश्वर सरकार की आरती की और उनका आशीर्वाद लिया। मंत्री श्री सिंह ने कथा संगत मंडली को दक्षिणा भेंट कर सभी से आशीर्वाद लिया। तत्पश्चात गगन से निरंतर वरुण देव के आशीर्वाद स्वरूप जल की अमृत वर्षा हुई और कथा पंडाल में बागेश्वर सरकार की अमृतवाणी बरसने लगी। श्री राम जयराम जय जय राम के संकीर्तन से आरंभ कर गुरुवंदना की।बागेश्वर सरकार ने कहा कि वे आज अपनी कथा का केंद्र सुंदर काण्ड की एक चौपाई को बना रहे हैं। यह चौपाई उन्हें खुरई आने के पूर्व सागर के बटालियन स्थित पंचमुखी हनुमान जी मंदिर में दर्शन करते हुए स्मरण हो गई थी। उन्होंने कहा कि इस चौपाई पर उनका प्रवचन खुरई के पुराने हनुमान जी बब्बा को समर्पित है। उन्होंने कहा यह चौपाई है
सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई !! चौपाई की व्याख्या समझाते हुए पं श्री धीरेन्द्रकृष्ण शास्त्री जी ने कहा कि हनुमान जी से सीखिए कि छोटा सा बन कर बड़े बड़े काम किए। और हम लोग हैं कि छोटे से काम करके बड़ा बनना चाहते हैं। हनुमान जी इतना बल, बुद्धि, विवेक,यश प्रताप पाकर भी पूछने पर कहते हैं कि मुझमें कोई शक्ति नहीं यह सब प्रभु श्री राम का प्रताप है। इतनी सरलता हनुमान जी में है जिससे समझ सकते हैं कि भगवान को पाना कठिन नहीं है, सरल है यदि हम सरल हो जाएं तो।
बागेश्वर सरकार ने कहा कि हमें अभिमान में नहीं स्वाभिमान में जीना चाहिए। अभिमान में जिए तो पतन हो जाएगा जैसा कि रावण का पतन हो गया। लोग अहम और वहम दो तरह का जीवन जीते हैं। हनुमान जी भगवान से भरे हैं, उन्होंने अपने सिद्धांत भी प्रभु श्री राम को समर्पित कर दिया। उन्होंने चीन के प्रसिद्ध दार्शनिक लाओत्से का उद्धरण दिया। लाओत्से ने अपने शिष्यों से कहा मुझे दुनिया में कोई हरा नहीं सकता। शिष्यों ने कहा क्यों नहीं हरा सकता, आपका शरीर तो साधारण ही है। लाओत्से ने कहा कि मैं हारा ही हुआ हूं जो लड़ने आएगा उससे कहूंगा कि हम हारे ही हुए हैं! हम यदि स्वयं को प्रभु के चरणों में समर्पित कर दें तो फिर दुनिया में कौन हरा पाएगा। बागेश्वर सरकार ने कहा कि घमंड और पेट जब दोनों बढ़ते हैं तो हम किसी को गले नहीं लगा सकते। भगवान की मीठी मीठी कथा जब हमारे कानों में पड़ती है तो हमारा मन भगवान से भर जाता है। मन के विकार नष्ट हो जाते हैं और मन प्रभु के प्रति प्रीति से भर जाता है।पं श्री धीरेन्द्रकृष्ण जी महाराज ने कहा कि देह का सौंदर्य अर्थवान नहीं है चरित्र का सौदर्य ही श्रेष्ठ है। जिनके जीवन में गुरु और परमात्मा को सिर पर स्थान मिला है उनका पृथ्वी पर अधिक समय तक वास रहता है।
खुरई को नाम दिया “अन्नपूर्णा नगरी“
पूज्य बागेश्वरधाम पीठाधीश्वर ने प्रथम दिवस कहा कि मंत्री भूपेंद्र सिंह बागेश्वर धाम के बड़े लाडले हैं, धाम पर लगातार आते रहते हैं। उनके अनुरोध पर हम खुरई दौड़े चले आए। उन्होंने कहा कि खुरई सामान्य नगरी नहीं है, यहां का गेहूं संपूर्ण राष्ट्र और विश्व को भोजन कराता है और नगर के नाम से पहचाना जाता है। इस नगरी को मैं अन्नपूर्णा नगरी कहता हूं। बागेश्वर सरकार ने कहा कि अब यह अन्नपूर्णा नगरी अगले तीन दिनों तक अयोध्या की तरह प्रतीत होगी क्योंकि तीन दिनों तक श्री बाला जी हनुमंत लला का चरित्र यहां कथा से प्रवाहित होगा। उन्होंने कहा कि धन्य है खुरई के लोगों की भक्ति और श्रद्धा कि हनुमंत जी की कथा के पहले ही जल वर्षा होने लगी। इंद्रदेव कथा स्थल पर पहले ही पधार गए, धरती माता बहुत दिनों से सूखी पड़ी थी। आज देखिए कि बाहर इंद्र देवता बरस रहे हैं और भीतर बाला जी बागेश्वर बरस रहे हैं। अब प्रकृति वर्षा से हरी हो जाएगी और कथा से यहां की संस्कृति हरी हो जाएगी।
बागेश्वर सरकार ने सभी जयकारों के साथ भारत राष्ट्र और सत्य सनातन धर्म के जयकारे भी पंडाल में लगवाए।
खुरई की पावन भूमि पर बागेश्वरधाम पीठाधीश्वर पं श्री धीरेन्द्रकृष्ण शास्त्री जी महाराज ने व्यासपीठ का पूजन किया और समस्त चर अचर देवी-देवताओं का सुमिरन नमन करते हुए प्रथम दिवस की श्री हनुमंत कथा का वाचन आरंभ किया। उन्होंने प्रभु श्री राम के परमभक्त श्री हनुमान जी की अष्टसिद्धियों और नवनिधियों से पवनसुत की महिमा का गौरवगान किया। पूज्य बागेश्वरधाम सरकार ने बताया कि सभी भक्तगण तीन सूत्रों को हृदय में धारण कर लें। प्रथम यह कि प्रभुश्री राम को अपने मस्तक पर विराजमान कर लो, भगवान राम रहेंगे ऊपर और आप रहेंगे भू पर। द्वितीय यह कि अपने माता-पिता और गुरु के समक्ष छोटे बन जाओ। तीसरा यह कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने हमें यह मनुष्य शरीर हरि भजन करने दिया है,तो अपना समय और मन हरि कथा सुनने में लगाओ ताकि जीवन रंग और आनंद से भरा रहे। उन्होंने हनुमान जी की अष्टसिद्धियों का उल्लेख करते हुए बताया कि पवनसुत अरिमा, गरिमा, महिमा, लघिमा, प्राप्ति, पराक्रम, ईशत्व और सत्व के दाता हैं। अरिमा सिद्धि से हनुमान जी अपनी देह का परमाणु से भी सूक्ष्म रूप धारण कर लेते हैं। आज भी ऐसे संत धरा पर विराजमान हैं जिनको यह सिद्धि मिलती है वे आज भी अपना रूप छोटा कर सकते हैं। इस सिद्धि का उपयोग हनुमान जी ने रावण की लंका में प्रवेश के लिए किया था। गरिमा सिद्धि में श्री हनुमान अपने रूप को पर्वत जितना विशाल कर लेते हैं जिसका उपयोग उन्होंने चार प्रसंगों में किया। पहली बार माता सीता की खोज में जाते हुए जामवंत के कहने पर, दूसरी बार सुरसा राक्षसनी के सामने, तीसरी बार मां जानकी के समक्ष और चौथी बार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के सामने हनुमान जी गरिमा सिद्धि से वृहदाकार में आए। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से पूजा हेतु पुष्प मंगाए जिन्हें तोड़ने अर्जुन उस अंजनीवन में गये जहां हनुमान जी प्रभु रामनाम में ध्यानस्थ होकर बैठे थे। उन्हें बाधा पहुंची तो पूछा कि अनुमति लेकर फूल तोड़ना चाहिए। दोनों के मध्य वार्तालाप हुआ और अर्जुन ने तीरों से बांध बना दिया। हनुमान जी ने गरिमा सिद्धि से अपना रूप पर्वत से ऊंचा बना लिया और बांध को पार कर गये।
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