वैसे तो राजनीति में जिम्मेदारी देने या पद देने में अपना पराया देखा जाता है लेकिन जब बात चुनाव जीतने की आ जाती है तब फिर केवल जनाधार वालों को और चुनावी राजनीति के विशेषज्ञों को महत्व दिया जाता है। ऐसा ही कुछ मध्यप्रदेश की राजनीति में हो रहा है क्योंकि प्रदेश के दोनों ही दलों भाजपा और कांग्रेस को इस समय 2023 का विधानसभा का चुनाव जीतना सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। दरअसल, प्रदेश में समय से पहले ही विधानसभावार चुनावी तैयारियां तेज हो गई है। इसके लिए संगठन स्तर पर जमावट तेज हो गई है और अब उन चेहरों को महत्त्व मिलना शुरू हो गया है। जिनकी पहचान ही काम करने वालों से हैं। मसलन, विपक्षी दल कांग्रेस में प्रदेश सेवादल के अध्यक्ष पद से रजनी सिंह को हटाकर योगेश यादव को कमान सौंपी गई है। योगेश यादव की पहचान सेवादल के पर्यायवाची जैसी हो गई थी लेकिन 2019 में 10 साल काम करने के बाद हटा दिया गया था और उसके बाद सत्येंद्र यादव को बनाया गया और फिर रजनीश सिंह को लेकिन सेवादल की वह पहचान गुम होने लगी थी जिसके लिए जाना जाता है संगठन। यही कारण है कि चुनावी वर्ष में एक बार फिर अनुभवी योगेश यादव को सेवादल के मुख्य संगठन के रूप में कमान सौंपी गई है। योगेश यादव का कहना है की पार्टी जब जब जो जिम्मेदारी देती है उसी पूरी निष्ठा के साथ निभाता हूं। करीब 10 साल के सेवादल के प्रदेश अध्यक्ष के कार्यकाल में विधानसभा क्षेत्रों में सेवादल के प्रशिक्षण शिविर लगाए जिसके सकारात्मक परिणाम भी रहे और जिन क्षेत्रों में सिविल लगे थे उन क्षेत्रों में कांग्रेस में 2018 के चुनाव में विजय भी प्राप्त की। पार्टी ने एक बार फिर मुझ पर भरोषा जताया है में फिर से प्रशिक्षण शिविर लगाऊंगा और कांग्रेस की प्रदेश में सरकार बनाने के लिए सेवादल की महत्वपूर्ण भूमिका तय करूंगा।
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बहरहाल, सत्ताधारी दल भाजपा में में चुनावी दृष्टि से सत्ता और संगठन में जमावट जमाने की अटकलें लगातार चल रही है और सूर्य नारायण के उत्तरण होते ही जो भी नियुक्तियां प्रतीक्षारत है उनमें निर्णय लेने शुरू हो जाएंगे। हालांकि भाजपा जिस तरह से लगातार बड़े-बड़े आयोजन कर रही है। प्रधानमंत्री केंद्रीय मंत्रियों के दौरे बढ़ गए हैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा लगातार सक्रियता बनाए हुए हैं। इसके अलावा क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिव प्रकाश प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव लगातार जमीनी जमावट को बेहतर बनाने में जुटे हैं। उसे समझा जा सकता है की 2023 के लिए किसी भी दल की राह आसान नहीं है। इसके अलावा अन्य दल और उपेक्षित नेता भी 2023 में अपने अस्तित्व का भान कराने के लिए बेताब है। इस कारण नित नए समीकरण प्रदेश की राजनीति में बनते बिगड़ते रहेंगे। कुल मिलाकर चुनावी जंग जीतने के लिए जिस तरह से दोनों दल जमीनी जमावट करने में जुटे हैं। उसमें एक बार फिर सक्रिय कर्मठ और जनाधार वालों का जलवा बनने वाला है जोड़-तोड़ और संबंधों के आधार पर पद जिम्मेवारी अब मिलना मुश्किल दिखाई देता है।
व्यक्तिगत विचार-आलेख-
श्री देवदत्त दुबे जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश ।
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