इस बार राज्यसभा में ऐसे दो निजी विधेयक पेश किए गए हैं, जो पता नहीं कानून बन पाएंगे या नहीं लेकिन उन पर यदि खुलकर बहस हो गई तो वह भी देश के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होगी। पहला विधेयक, सबके लिए समान निजी कानून बनाने के बारे में है और दूसरा है, इलाज में लूट-पाट रोकने के लिए। निजी कानून याने शादी-ब्याह, तलाक, दहेज, उत्तराधिकार संबंधी कानून। इस बारे में मेरी विनम्र राय है कि सारे भारतीय लोगों को एक ही तरह का निजी कानून मानने में ज्यादा फायदा है। हजारों वर्ष पुराने हिंदू कानून, ईसाई और यहूदी कानून और इस्लामी कानूनों से चिपके रहने की बजाय नई परिस्थितियों के मुताबिक आधुनिक कानून मानने के कारण बहुत-सी परेशानियों से भारत के लोगों को मुक्त होने का मौका सहज ही मिल जाएगा। इसी तरह से अपने देश में लोगों को समुचित इलाज और इंसाफ पाने में बहुत दिक्कत होती है। अस्पताल और अदालत लोगों को लूट डालते हैं। इसीलिए अस्पतालों, डाॅक्टरों की फीस, दवाइयों और जांच की कीमतों पर नियंत्रण लगाना बहुत जरुरी हो गया है।
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मेरी राय में तो चिकित्सा और शिक्षा या यों कहें कि इलाज और इंसाफ, हर नागरिक को मुफ्त मिलना चाहिए। इसीलिए राज्यसभा के वर्तमान सत्र में यह जो विधेयक इलाज की कीमतों पर नियंत्रण के लिए लाया गया है, इसे सर्वानुमति से पारित करके लोकसभा को भेजा जाना चाहिए। इस विधेयक में शायद यह मांग नहीं की गई है कि गैर-सरकारी अस्पतालों में शल्य-चिकित्सा और कमरों की फीसों में मच रही लूट-पाट को रोका जाए। या तो निजी अस्पताल एकदम खत्म ही कर दिए जाएं और यदि उनको रहने दिया जाए तो उन्हें पांच नहीं, सात सितारा होटलें बनने से रोका जाए। आजकल स्वास्थ्य-बीमा मध्यम और उच्च वर्ग के रोगियों को कुछ राहत जरुर पहुंचाता है लेकिन वह निजी अस्पतालों की लूट-पाट का नया हथियार बन गया है। निजी अस्पतालों की मोटी फीस और सरकारी अस्पतालों की लापरवाही उनमें भर्ती हुए कई मरीज़ों को पहले से भी ज्यादा बीमार कर देती है। जिस दवा का लागत मूल्य 2 रु. है, वह 100 रु. में बिकती है और जो परीक्षण 50 रु. में हो सकता है, उसके लिए 500 रु. ठग लिए जाते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 2021 में इलाज़ की मंहगाई 14 प्रतिशत बढ़ गई थी। उसके कारण देश के साढ़े पांच करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गए थे। भारत में इलाज पर हमारे नागरिकों को अपने जेब खर्च का 63 प्रतिशत पैसा खर्च करना होता है। भारतीय नागरिकों का स्वास्थ्य बढ़िया रखने के लिए कई अन्य कदम भी जरूरी हैं लेकिन उनके इलाज़ को सस्ता करने में संसद को कोई झिझक क्यों होनी चाहिए?
आलेख श्री वेद प्रताप वैदिक जी, वरिष्ठ पत्रकार ,नई दिल्ली।
साभार राष्ट्रीय दैनिक नया इंडिया समाचार पत्र ।
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