यूं तो भाजपा को राष्ट्रीय संघ की राजनैतिक शाखा ही माना जाता है लेकिन पिछले एक दशक में जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली है तब से संघ और भाजपा के रिश्तों में वो मिठास या समन्वय नहीं दिखाई देता बल्कि एसा जरूर लगता है कि जो भाजपा कभी संघ के इशारों पर चलती थी अब संघ को अपने इशारों पर चलाने लगी है । लोकसभा चुनाव 2024 के मध्य में जिस प्रकार भाजपा अध्यक्ष जेपी नडडा ने भाजपा की सक्षमता और संघ की अनावश्यकता को उजागर किया वह चौकाने वाला रहा है । हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जिस प्रकार मणिपुर हिंसा को लेकर सवाल खड़े किये है वह भी चौंकाते है लेकिन सवाल यही है कि क्या यह सवाल सिर्फ भाजपा को आईना दिखाने के लिये या वाकई संघ मणिपुर की घटना को लेकर गंभीर है और यदि गंभीर है तो एक साल के बाद उसे मणिपुर की याद क्यों आई । संघ प्रमुख ने लोकसभा चुनाव 2024 में हुई बयानबाजी पर भी अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि चुनाव लड़ने की एक मर्यादा होती है उस मर्यादा का पालन नहीं हुआ । राजनैतिक गलियारों में तो चर्चा यहां तक है कि संघ मोदी को तीसरा कार्यकाल देने का इच्छुक नहीं था संघ की ओर से गड़करी का नाम आगे आया था लेकिन पीएम मोदी द्धारा भाजपा के नव निर्वाचित सांसदो की बैठक में नेता का चुनाव कराने के बजाय नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस की साझा बैठक बुलाकर अपने नाम को तय कर लिया गया और संघ को नजरअंदाज किया गया । बहरहाल मोदी के तीसरे कार्यकाल में संघ और भाजपा के रिश्तो की क्या परिणिति होगी यह तो वक्त बतायेगा लेकिन अब तक तो संघ की साख को बटटा ही लगा है।
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