रावण और विभीषण भारतीय राजनीति के लिए नयी उपमाएं नहीं हैं।हर राजनीतिक दल इन उपमाओं का इस्तेमाल करता है। दुस्साहसी लोग सूर्पनखा का भी इस्तेमाल करने से नहीं हिचकते।इसी तरह शतरंज के खेल के पात्र भी सियासत के काम आते हैं। खासतौर पर ‘प्यादा’ और ‘ फर्जी ‘। मप्र में आजकल सत्ता की शतरंज में प्यादे से फर्जी बने मंत्रियों और विधायकों को ‘फर्जी’ कहा जाता है। संयोग से तमाम फर्जी इस समय केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खेमे से है।खबर है कि सिंधिया के तमाम फर्जी आजकल टेढ़े-टेढ़े चल रहे हैं।फर्जियों की चाल में ये तब्दीली उस समय आई है जबकि विधानसभा चुनाव में केवल एक साल बाकी है। खबर है कि फर्जियों की वजह से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को मंत्रिमंडल की बैठक तक निरस्त करना पड़ी।बार-बार के बुलावे के बाद भी मंत्रियों का बैठक में न आना दो बातों को इंगित करता है, पहली ये कि मुख्यमंत्री का इकबाल कमजोर पड़ गया है और दसरा ये कि मुख्यमंत्री को ब्लैकमेल किया जा रहा है। मप्र में मौजूदा समय में दोनों सूरतें हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का इकबाल भी कमजोर हुआ है और उन्हें ‘ब्लैकमेल’भी किया जा रहा है।
मप्र भाजपा में ढाई साल पहले जब कांग्रेस की मिलावट को स्वीकार किया गया, तभी से इस बीमारी के बीज पड़ गये थे।अब ये न सिर्फ अंकुरित हो चुके हैं बल्कि जड़ें भी पकड़ चुके हैं। सिंधिया समर्थकों का ये पुराना तरीका -ए-वारदात रहा है। कमलनाथ की सरकार में भी सिंधिया समर्थक मंत्रियों ने इसी तरह की हरकतें की थीं, लेकिन कमलनाथ इनके सामने झुके नहीं, यहां तक कि उन्हें अपनी चलती हुई सरकार की बलि भी देना पड़ी थी। कमलनाथ सरकार को ब्लैकमेल करने में नाकाम रहे सिंधिया समर्थकों ने अपनी कीमत वसूल कर भाजपा में जगह तो हासिल कर ली किंतु लंबे अरसे बाद भी अधिकांश सिंधिया समर्थक भाजपाई नहीं हो पाए हैं।न भाजपा मन से उन्हें अपना सके और न सिंधिया समर्थकों ने अपनी चाल -ढाल बदली। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हिकमत अमली से अब तक ‘केर-बेर’का साथ निभाते आ रहे हैं। चौहान जो आज भुगत रहे हैं वो सब कमलनाथ के अलावा दिग्विजयसिंह, मोतीलाल वोरा और अर्जुन सिंह भी भुगत चुके हैं। आपको याद होगा कि भाजपा की एक महत्वपूर्ण बैठक से सिंधिया भी बिना वजह निकल आए थे, क्योंकि उनके गृह नगर में भाजपा का जिला अध्यक्ष उनकी मर्जी के बिना बदल दिया गया। सिंधिया समर्थकों की ‘टेढ़ी चाल’ का खमियाजा ग्वालियर को भुगतना पड़ रहा है। ग्वालियर मेला प्राधिकरण,बिशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण, ग्वालियर विकास प्राधिकरण जैसी संस्थाओं में अब तक राजनीतिक नियुक्तियां नहीं हो सकीं। सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद से ही केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और सिंधिया के बीच अस्तित्व को लेकर तलवारें खिंची हैं। इनके टकराने की आवाजें भी सुनाई पड़ने लगी हैं।अब सिंधिया समर्थक मंत्रियों की हरकत इस संघर्ष का चरमोत्कर्ष है।अब भी मप्र में 2018 की ही तरह महाराज बनाम शिवराज ही चल रहा है। पहले ये लड़ाई कांग्रेस और भाजपा की थी, और अब ये लड़ाई भाजपा की अपनी लड़ाई है हाल ही में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने इन्ही तमाम कारणों से मप्र पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। भाजपा अपनी लाख कोशिशों के बाद भी मप्र की तरह छग और राजस्थान को हासिल नहीं कर सकी। भाजपा हाईकमान नहीं चाहता कि मप्र में भाजपा के कांग्रेसीकरण के बाद कोई तूफान खड़ा नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री की उज्जैन यात्रा के दौरान सिंधिया का अपमान भी इस कलह की एक वजह मानी जा रही है।
व्यक्तिगत विचार-आलेख-
श्री राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार , मध्यप्रदेश ।
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