भोपाल। प्रदेश में कांग्रेस डेढ़ साल को छोड़कर 18 वर्षों से विपक्ष में है इसके बावजूद पार्टी के नेता किसी भी प्रकार की नरमी नहीं बरत रहे हैं। जिस तरह से कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और प्रदेश प्रभारी जे.पी. अग्रवाल पार्टी बैठकों में पार्टी के नेताओं को दो टूक शब्दों में नसीहत दे रहे हैं। उससे एक तरफ जहां इन नेताओं का आत्मविश्वास दिखाई दे रहा है, वहीं दूसरी ओर ढुलमुल नेताओं के लिए पार्टी में संभावनाएं नजर नहीं आ रही है।
दरअसल, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ इस बात के लिए जाने पहचाने लगे हैं कि वह कम बोलते हैं दो टूक बोलते हैं चाहे कितना भी नुकसान हो जाए। रविवार को प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में कमलनाथ ने दो टूक कहा कि किसी के कांग्रेसी छोड़कर जाने से पार्टी खत्म नहीं हो जाएगी। कोई जाना चाहता है तो हम उसे रुकेंगे नहीं जो लोग बीजेपी में भविष्य देख कर जाना चाहते हैं तो जाएं मैं उन्हें अपनी कार दूंगा कि जाइए। उन्होंने कहा कि मैं किसी की खुशामद में विश्वास नहीं करता जो लोग कांग्रेस में काम कर रहे हैं पार्टी के प्रति निष्ठा से काम कर रहे हैं कमलनाथ के इस बयान पर कुछ लोगों को जहां वह बयान याद आ गया जब उन्होंने मुख्यमंत्री रहते ज्योतिरादित्य सिंधिया से कहा था कि उतर जाए सिंधिया सड़क पर और तब से यह भी माना जाता रहा कि इसी बयान के कारण कांग्रेस की सरकार प्रदेश में गिर गई लेकिन तब से ही कमलनाथ प्रतिशोध की ज्वाला में मानो जल रहे हैं और वे 2023 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
बहरहाल, कांग्रेश प्रदेश में लगातार विपक्ष में है केवल 2018 में डेढ़ वर्ष के लिए सरकार में आई थी पार्टी और उसके बाद फिर से संघर्ष शुरू हुआ जो अभी जारी है। अमूमन यह माना जाता है कि जब कोई पार्टी के नेता संघर्ष के दौर में होता है तो वह मना कर या की खुशामदी करके पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को सक्रिय करता है पार्टी से जोड़ता है लेकिन पंचायती राज और नगरीय निकाय के चुनाव के बाद कमलनाथ के तेवर बदल गए हैं। बताया जा रहा है इन चुनाव के पहले कमलनाथ ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की बैठकों में सभी से बार-बार आग्रह किया था कि वे इन चुनाव को पूरी गंभीरता से लें एवं भाजपा का डटकर मुकाबला करें लेकिन उनके पास जिस तरह का फीडबैक पहुंचा उसमें पार्टी के जिम्मेदार नेताओं ने कुछ जगह जहां भाजपा नेताओं के सामने समर्पण कर दिया या फिर अंदर ही अंदर समझौते किए पार्टी के साथ भितरघात किया। कोई लोग लालच में और कोई दबाव प्रभाव में आ गया। इन सूचनाओं के बाद कमलनाथ ने अपनी रणनीति बदली और संजय गांधी युग के साथी जे.पी. अग्रवाल को प्रदेश प्रभारी बनवाने के बाद अब दोनों ही नेता पार्टी में कसावट लाने के लिए कड़क अंदाज में पेश आ रहे हैं कमलनाथ समर्थकों का मानना है कि जिस तरह से मैदानी फीडबैक उन्हें मिल रहा है उसमें उनको यह अंदाज है कि भविष्य में और लोग भी पार्टी छोड़ सकते हैं। जैसा कि हाल ही में खुरई के पूर्व विधायक अरुणोदय चौबे ने पार्टी छोड़ी है। इसके अलावा जिन विधायकों ने राष्ट्रपति चुनाव में क्रास वोट किया है और स्थानीय समीकरणों के हिसाब से जातीय गुणा-भाग उन्हें 2018 की तरह सरकार बनाने की संभावनाएं नजर आ रही है। यही कारण है कि वे अब ढुलमुल नेताओं को दो टूक नसीहत देकर सुरक्षात्मक स्टोख खेल रहे हैं कि ऐसे लोग समय रहते पार्टी छोड़ गए जिससे वे उन क्षेत्रों में वैकल्पिक नेतृत्व तैयार कर सके या फिर ढुलमुल रवैया छोड़कर पार्टी के लिए कमर कस कर मैदान में आ जाएं। कमलनाथ की इस रणनीति पर नवनियुक्त प्रदेश प्रभारी जे.पी. अग्रवाल भी कदमताल कर रहे हैं और 2 दिन से बैठकों में लगातार पार्टी नेताओं को नसीहतो का डोज दे रहे हैं।
कुल मिलाकर बिखरी और निष्क्रिय कांग्रेस में जान डालने के लिए कमलनाथ और जे.पी. अग्रवाल की कड़क जोड़ी मैदान में सक्रिय हो गई है। अब यह वक्त बताएगा कहीं यह अंदाज सिंधिया की तरह पार्टी को नुकसान ना दे जाए या फिर पार्टी को सक्रिय और आत्मविश्वास से लवरेज बना जाए, क्योंकि दोनों ही नेता अनुभवी हैं और चुनावी राजनीति के जानकार हैं। वे दोनों ही तरह के नेताओं की सूची बना रहे हैं। एक वे जो लगातार पार्टी के लिए काम कर रहे हैं और एक वे नेता जो केवल चुनाव के समय सक्रिय हो जाते हैं और 5 साल ना तो पार्टी के लिए काम करते हैं और ना ही जनता के सुख – दुख में भागीदारी करते हैं। चुनाव के समय की जाने वाली नौटंकी जनता भी समझती है और पार्टी के नेता भी समझते हैं। अब ऐसे नेताओं के दिन कांग्रेस में अच्छे नहीं रहने वाले हैं। शायद यही संदेश यह जोड़ी 2 दिन से पार्टी बैठकों में नेताओं को दे रही है।
देवदत्त दुबे ,भोपाल
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