लोकतंत्र-मंत्र

छोटे अपराध,बड़ा सिरदर्द

भारत में कितने कानून हैं ? यदि आप ये सवाल करें तो हर कोई अचकचा जाएगा,क्योंकि हमारा संविधान इतने अधिक कानूनों का जनक है की बस गिनते रहए.22 भागों में विभाजित संविधान के 396 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ हैं .देश ने इतने छोटे- बड़े कानून बना रखे हैं कि उनका पालन करना,कराना आसान नहीं है .बहुत से कानून हैं तो छोटे अपराधों के लिए किन्तु उनका इस्तेमाल न होने से देश के लिए ढेरों समस्याएं पैदा होती रहती हैं. इतना ही नहीं देश की छवि भी धूमिल होती है .भारत में संविधान कसम खाने और दुहाई देने के लिए उसका पालन न देश की सरकारें करतीं है और न नागरिक .सबको क़ानून तोड़ने की आदत पड़ गयी है .क़ानून का पालन नगरिकों और सरकारों का स्वभाव नहीं बन पाया है. कानून का पालन करने वाले सोये हुए हैं,कानून तोड़ने पर कार्रवाई करने वाले बेसुध हैं .सबकी कोशिश है कि देश कानून के भरोसे नहीं राम जी के भरोसे चले,क्योंकि रामजी के राज में कौन सा लिखित क़ानून था ?देश की सबसे बड़ी समस्या है ध्वनि प्रदूषण .ये ध्वनि प्रदूषण फैलाता कौन है ? इसे फ़ैलाने से रोकने का काम किसका है ,और इस देश में ध्वनि प्रदूषण फैलाने के अपराध को कितनी गंभीरता से लिये जाता है ? ये ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर कोई नहीं देना चाहता .देश में जितने भी वाहन चालक हैं वे सबसे ज्यादा ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं .हमारे देश में हार्न बजाना एक बीमारी है ,जबकि दुसरे देशों में ये अपराध और सामाजिक बुराई .हमारे यहां इतने कर्कश हार्न हैं कि आपका सर भन्ना जाये .पिछले दिनों एक मोटर साइकल में अल्सेशियन कुत्ते की आवाज वाला हार्न सुनकर मै चौंक गया था .अमेरिका से आये मेरे दो छोटे पौत्र तो हार्न सुनकर उछल पड़ते हैं ,क्योंकि उन्होंने अमेरिका में हार्न सुने ही नहीं हैं . देश की दूसरी समस्या है ध्वनि विस्तारक यंत्रों की. राजनीति हो,धर्म हो ,समाज हो या व्यापार हो,सबको ध्वनि विस्तारक यंत्र चाहिए .नेता बिना माइक और लाउड स्पीकर के बोल नहीं सकता.मंदिरो,मस्जिदों,गिरजाघरों और गुरुद्वारों में भजन-कीर्तन तब तक नहीं हो सकते जब तक की माइक और लाऊड स्पीकर न हो. शादी,जन्मदिन में जब तक डीजे न बजे ये उत्सव मनाये ही नहीं जा सकते. और कारोबार में तो लाउडस्पीकर लगता ही है .देश में तीसरी समस्या है सार्वजनिक स्थलों पर गंदगी फैलाने की.हम भारतीय रास्ते चलते थूकना राष्ट्रधर्म समझते हैं.सड़क किनारे खड़े होकर मूत्र विसर्जन हमारा मौलिक अधिकार है. गांवों में आज भी महिलाएं और पुरुष ,बच्चे शौच के लिए खुले में ही जाते हैं .नेहरू जी से लेकर मोदी जी तक इस राष्ट्रीय स्वच्छंदता के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं लेकिन कामयाब नहीं हो पाए .घर के भीतर का कचरा घर के बाहर फेंकना हमारा नैसर्गिक अधिकार है. हम चाट खाएंगे तो दोना सड़क पर फेंक देंगे.पालीथीन हवा में उड़ा देंगे ,कूड़ा-करकट सड़क पर इकठ्ठा कर लेंगे.घूरा हमारी संस्कृति,और साहित्य का हिस्सा है .हम मानते हैं की घूरे के दिन भी एक दिन फिरते ही हैं।
                                                     इन तीन अपराधों की वजह से निरपराध भारत की छवि दुनिया में कितनी उज्ज्वल हुई है ये दुनिया के बाहर जाकर ही जाना और समझा जा सकता है .ये छोटे-छोटे अपराध करने वाले लोग देश से बाहर जाते ही नहीं इसलिए जानते ही नहीं कि वे क्या कर रहे हैं ? वे न ऊपर वाले से डरते हैं और न नीचे वाले से .हमारे सिस्टम में इन अपराधों के प्रति जन-जागरण के नाम पर करोड़ों रुपया खर्च किया जाता है लेकिन कभी किसी लघु अपराध के लिए अभियोजन की कार्रवाई नहीं की जाती. इन छोटे अपराधों के लिए न्यूनतम कारावास और जुर्माने का प्रावधान कर हमारी सरकारें खुश हैं. पहले से कामबाध की शिकार अदालतों तक ऐसे मामले ले जाने की कोई व्यवस्था नहीं है ,इसलिए किसी भी कानून की कोई औकात नहीं है.परीक्षा के दिनों में कलेक्टर ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर रोक का आदेश निकालकर फारिग हो जाता है. सार्वजनिक स्थानों पर थूकने और लघुशंकायें रोकने के लिए भगवान की तस्वीरें चस्पा कर दी जाती हैं किन्तु दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती .कार्रवाई करे भी तो कौन करे ? कार्रवाई करने वालों में भी तो अपराधी भरे पड़े हैं.हमारे यहां का कोई भी सार्वजनिक जन सुविधाकेंद्र पान-तम्बाखू की पीकों से सज्जित न हो ऐसा हो ही नहीं सकता .वे अपवाद हैं जहाँ ऐसा नहीं होता .लोग अपना काम करते हैं किन्तु क़ानून अपना काम नहीं करता .आदमी के सुखाधिकार का संरक्षक कोई नहीं है .भारत में ये तीन छोटे अपराध ही हजार समस्याओं की जड़ हैं .बीमारियां,दुर्घटनाएं इनसे ही फैलती है. देश और शहर की छवि के मर्दन की तो बात ही मत कीजिये .दिल्ली से लेकर देपालपुर तक एक जैसी स्थिति है. बाजार,बस अड्डे,रेलवे स्टेशन यहां तक कि हवाई अड्डे भी हमसे नहीं बचते .लगा लीजिये आप कैमरे .क्या फर्क पड़ता है क्योंकि इन अपराधों को हमारा समाज,हमारा सिस्टम अक्षम्य अपराध मानता ही नहीं है .सिस्टम कार्रवाई करने कि बजाय या तो इन अपराधों की और से आँखें बंद कर लेता है या फिर क्षमा कर देता है .क्षमा वीरों का आभूषण है ,इसलिए ये सबको प्रिय है.मुझे हैरानी होती है कि नेपाल जैसे छोटे से और गरीब देश में सार्वजनिक स्थलों पर थूकना और पेशाब करना असमाजिक कृत्य माना जाता है .लोग बाकायदा पैसा देकर जन सुविधाओं का इस्तेमाल करते हैं ,किन्तु विश्व गुरु बनने को उतावले एक विशाल और शक्तिशाली देश कि नागरिकों को अपना देश स्वच्छ और शांत रखने में शर्म आती है .हम दूसरों को ये अपराध करने से टोक नहीं सकते और खुद को रोक नहीं सकते .मुमकिन है कि किसी को सार्वजनिक स्थल पर थूकने,मूतने या कचरा फेंकने से रोकने-टोकने पर आपकी पिटाई हो जाये,जान चली जाये .रामराज की और बढ़ रहे इस देश में दूसरे अपराधों की रोकथाम तो कल्पना से परे है,क्योंकि हम इन छोटे-छोटे अपराधों को ही नहीं रोक पा रहे हैं ,हमारे कानून सिर्फ सजाने कि लिए हैं .ऐसे में सियासत में दल-बदल,सिस्टम में भ्र्ष्टाचार कोई कैसे रोका जा सकता है ?बेहतर हो कि हमारे संविधान से इन छोटे अपराधों कि लिए बनाये गए कानूनों को समाप्त कर हिन्द महासागर में डुबो दिया जाये .कम से कम कानून की किताबों और अदालतों का बोझ तो कम होगा ,क्योंकि -हम तो सुधरने वाले हैं नहीं .कोई कब तक हमारे पीछे कानून का दंड लिए घूमता फिरेगा ?

श्री राकेश अचल जी  ,वरिष्ठ पत्रकार  एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश  ।

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