यों जुमला सात जिद्दी हिंदुस्तानियों का बनता है। उद्धव ठाकरे, नीतिश कुमार, केसीआर चंद्रशेखर राव, अरविंद केजरीवाल. हेमंत सोरेन, ममता बनर्जी और राहुल गांधी। ये सात हिंदुस्तानी चेहरे अब नरेंद्र मोदी की दिन-रात की चिंता है। हां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिल-दिमाग में अब चुनाव के अलावा कुछ नहीं है। कैसे भी हो उन्हे 2024 का लोकसभा चुनाव जीतना है। उन्हे दशहरे के दिन मुंबई में उद्धव ठाकरे और हैदराबाद में चंद्रशेखर राव के हुंकारे समझ आए होंगे। मुझे उम्मीद नहीं थी लेकिन मुंबई के शिवाजी पार्क में जैसी भीड जमा हुई और जिस धारा प्रवाह अंदाज में उद्धव ठाकरे ने भाषण किया और एनसीपी-कांग्रेस के साथ अपनी हिंदू राजनीति के खुलासे की हिम्मत दिखाई वह गजब था। सोचे इसके मायने? नोट रखे महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटों पर सन् 2024 में उद्धव ठाकरे और उनका एलायंस दमदारी से चुनाव लड़ेगा।
एक महिने पहले ऐसे ही बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर नीतिश-लालू यादव और कांग्रेस का साझा बिगुल बजा। बगल के झारखंड में हेमंत सोरेन और कांग्रेस के विधायक अभी तक भाजपा की खरीद मंडी में बिकने को तैयार होते नहीं लगते है। तो उससे सटे हुए पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों पर घायल मगर मौन ममता बनर्जी चुपचाप वक्त और मौके का इंतजार कर रही है। इन सबसे ज्यादा जिंद्दी, खूंखार और संसाधनों में भरपूर जिद्दी नेता तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव है। इन पांच नेताओं के बाद फिर दिल्ली और पंजाब की 21 लोकसभा सीटों के जिद्दी नेता अरविंद केजरीवाल का नंबर आता है। और नोट करें कि इन छह नेताओं के वजूद और सियासी एलायंस की लोकसभा सीटों की संख्या है कोई 182 ! अनुमान लगाएं कि एकनाथ शिंदे और देवेद्र फडनवीज की बेमेल सरकार की अगले दो सालों में क्या चमक बचेगी? लोकसभा चुनाव आएगा तब यह दलबदलू सरकार मोदी-शाह के लिए लायबिलिटी होगी या मुनाफे वाली! दशहरे के दिन जिसने भी एकनाथ शिंदे बनाम उद्धव ठाकरे के भाषण और शो को देखा और सुना है उससे यह सभी के जहन में सवाल बना होगा कि मोदी-शाह को वहा और कोई सीएम बनाने लायक नहीं मिला!
उद्धव ठाकरे ने सियासी समझदारी का भाषण दिया। इसका प्रभाव मराठा, दलित, मुस्लिम, सेकुलर और सभी तरह के भाजपा व मोदी विरोधियों पर चुनाव तक रहेगा। मोदी सरकार चाहे जितने नेताओं को ईडी, सीबीआई से जेल में डलवाएं, उन्हे डराएं, उन्हे खरीदे मगर उद्धव ठाकरे-शरद पवार- कांग्रेस का त्रिभुज अब महाराष्ट्र में भाजपा की 2019 जैसी एकतरफा जीत नहीं होने देगा।
यही पते की बात है। नरेंद्र मोदी सन् 2014 व 2019 जैसी आंधी यदि छह जिद्दी नेताओं के प्रदेशों में पैदा नहीं कर पाएं तो अपने आप उनकी गणित बिगडनी है। उद्धव ठाकरे की सेहत पर कोई असर नहीं होगा कि मुंबई महानगरपालिका के चुनाव में उनकी पार्टी जीतती है या नहीं? उनकी पार्टी चुनाव चिन्ह जप्त हो जाए तब भी फर्क नहीं पडना है। उलटे मराठा मानुष में गांठ गहरी बनेगी। इसलिए क्योंकि बाल ठाकरे के वे ही असली सियासी उत्तराधिकारी है, इसका ठप्पा शिवाजी पार्क में दशहरे के दिन लग गया है। इसके साथ ही प्रदेश की 48 लोकसभा सीटो पर मोदी-भाजपा विरोधी वोटों की पूरी गोलबंदी भी बन गई!
ऐसी ही तेलंगाना, बिहार, झारखंड में गोलबंदी बनी है तो पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में ममता बनर्जी और उनका वोट समीकरण एक-एक सीट पर भाजपा को घेरेगा। पंजाब में मोदी-शाह बादल, अमरेंद्रसिंह आदि के साथ चाहे जो करें, मगर अरविंद केजरीवाल लोकसभा चुनाव तक चक्रव्यूह में फंस कर दम नहीं तोड़ने वाले है। सही है कि दिल्ली की सात सीटों में जब लोकसभा चुनाव होंगे तो नरेंद्र मोदी के भक्त उमडे हुए होंगे। बावजूद इस सबके केजरीवाल अपने प्रभाव की 21 सीटों में भाजपा को कितनी सीटों पर जीतने देंगे? इसलिए ठाकरे, चंद्रशेखर राव, नीतिश कुमार, हेमंत, केजरीवाल और ममता बनर्जी की मेहनत और धुन से आगे बहुत कुछ दिलचस्प होना है!
आलेख श्री हरिशंकर व्यास जी, वरिष्ठ पत्रकार ,नई दिल्ली।
साभार राष्ट्रीय दैनिक नया इंडिया समाचार पत्र ।
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