राजनीतिनामा

नया मध्यप्रदेश – न फिर शिवराज, न जय जय कमलनाथ

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 के पहले और बाद में जो भी राजनैतिक निर्णय लिये गये है उसमें राजनीति की एक नई ईबारत दिखाई देती है जो पार्टी विशेष के निजी आंकलन के लिये नफा नुकसान वाले हो सकते है लकिन लोकतंत्र के लिये शुभ संकेत है । 3 दिसंबर को आये चुनावी परिणाम ने जहां राजनैतिक पंडितो के गणित को नकारकर जमीनी मतदाताओं के सशक्तीकरण का एहसास कराया तो चुनाव परिणाम के बाद नई पीढी को आगे बढाने की जिस पुरानी परंपरा पर धूल चढी हुई थी भाजपा ने उसे एक फटके में अलग कर दिया और तमाम कयासो और दिग्गजो की भीड़ में तीसरी बार के विधायक मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर नये नेतृत्व का संदेश दिया और अब आगे मंत्रीमंडल में भी इसी प्रकार की नीति को रखने की पूरी संभावना है मध्यप्रदेश में पिछले दो दशको में खासकर उपचुनाव के बाद भाजपा जिस तरह गटो में बटी हुई थी उसमें बड़े नेताओं और मंत्रियो पर ही नहीं कार्यकर्ताओं और पार्टी पदाधिकारियों पर भी किसी नेता के वरदहस्त का ठप्पा चस्पा हुआ दिखाई देता था और इस चक्रव्यहू के आगे भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व और पितृसंगठन आरएसएस भी बेबस नजर आता था। मध्यप्रदेश में वरिष्ठ मंत्रियो की कार्यशैली और आपसी मतभेद कई बार प्रदेश में सुर्खिया बनकर उभरी तो संगठन स्तर के पदाधिकारियों की नियुक्ति में क्षेत्रीय विधायक मंत्रियो की हठधर्मिता ने कार्यकर्ताओं में विचारधारा से अधिक व्यक्ति सम्मत होने की भावना को बढावा दिया ।

लेकिन भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने एक के बाद एक सख्त निर्णय लेकर न केवल सत्ता के ढर्रे को बदला है बल्कि संगठन में भी युवा और जमीनी कार्यकर्ताओं में नये जोश और आशा का संचार किया है जो पुराने धुरंधरों के लिये एक सबक तो है ही साथ ही नयी ताजपोशी कराने वाले नेतओ को भी संकेत होगा कि आज के युग में जनप्रतिनिधि की प्रत्येक गतिविधि का रिर्पाेट कार्ड दिल्ली में तैयार है । एसा माना जा रहा है कि सत्ता के रूपांतरण के बाद भाजपा प्रदेश में संगठन स्तर पर भी नये और बिना ठप्पे वाले कार्यकर्ताओं को अहम जिम्मेवारी सौंपेगी । भाजपा के नये नेतृत्व के आगे प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने भी बिना किसी संकोच के चौकाने वाला निर्णय लेते हुए मध्यप्रदेश में पिछले चार दशकों से वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के आसपास चक्कर लगाती कांग्रेस की राजनीति को बदलने का साहस दिखाया और युवा चेहरों को मध्यप्रदेश के प्रमुख पदो की जिम्मेवारी दी गई जिसमें पूर्व विधायक और तेज तर्रार राजनीति करने वाले जीतू पटवारी को कांग्रेस अध्यक्ष और खुलकर अपनी बात रखने वाले उमंग सिंघार को नेता प्रतिपक्ष बनाने का फरमान जारी हुआ और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस भी नये नेत्त्व और उर्जा के साथ चुनावी मैदान में होगी। मध्यप्रदेश में सत्ता परिर्वतन भले ही न हुआ हो लेकिन राजनीतिक परिर्वतन पूरी तरह से हो चुका है और पिछले दो दशकों से चाहे सत्ताधारी दल हो या प्रमुख विपक्षी दल हो दोनो में एक ढर्रे पर चलने वाली राजनीति और पुराने राजनीतिक धुरंधर चेहरो से इतर अब मध्यप्रदेश में एक नये राजनैतिक युग की शुरूवात हो चुकी है मध्यप्रदेश की राजनीति में नया नेतृत्व कितना प्रभावित करता है यह समीक्षा का विषय होगा।

अभिषेक तिवारी

संपादक भारतभवः

 

Share this...
bharatbhvh

Recent Posts

खुरई ने सर्वाधिक प्रकरणों का निराकरण कर जिले में प्राप्त किया प्रथम स्थान

राजस्व महा अभियान 2.0  के तहत सागर जिले की खुरई तहसील ने सर्वाधिक प्रकरणों का…

4 hours ago

सागर – शहर के 25 किलोमीटर की परिधि में बसों का संचालन होगा शुरू

बसों में लगे सीसीटीव्ही कैमरा एवं जीपीएस को आईसीसीसी से जोड़ने एवं आमजन की सुविधा…

4 hours ago

चुनौतीपूर्ण समय में शिक्षकों को अपनी भूमिका का विस्तार करना होगा-कुलगुरु प्रो. नीलिमा गुप्ता

अध्यापक के धर्म, कर्म और मर्म को भारत ने ही विश्व में स्थापित किया है-…

4 hours ago

तानाशाह की सनक 30 अधिकारियों को फासी पर टांगा

अपनी तानाशाही के लिये पूरी दुनिया में कुख्यात उत्तर कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जोंग…

11 hours ago

जातिगत जनगणना पर संघ के मन की बात

जातिगत जनगणना का मुददा भारत में इन दिनो लगातार चर्चाओं में है कांग्रेस नेता राहुल…

1 day ago

सत्ता का गुलाम आखिर कौन ?

बहुत दिनों बाद एक ढंग का विषय मिला है । इसके लिए धन्यवाद उत्तरप्रदेश के…

3 days ago