आज की भारतीय राजनीति का सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधित्व यदि कोई कर सकता है तो वह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीशकुमार ही हैं। आज की राजनीति क्या है? वह क्या किसी विचारधारा या सिद्धांत या नीति पर चल रही है? डाॅ. राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण के बाद भारत में जो राजनीति चल रही है, उसमें सिर्फ सत्ता और पत्ता का खेल ही सबसे बड़ा निर्णायक तत्व है। क्या आज देश में एक भी नेता या पार्टी ऐसी है, जो यह दावा कर सके कि उसने अपने विरोधियों से हाथ नहीं मिलाया है? सत्ता का सुख भोगने के लिए सभी पार्टियों ने अपने सिद्धांत, विचारधारा और नीति को दरी के नीचे सरका दिया है।
नीतीशकुमार पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि वे जिन नेताओं और पार्टियों की भद्द पीटा करते थे, उन्हीं के साथ वे अब गलबहियां डाले हुए हैं। ऐसा वे पहली बार नहीं, कई बार कर चुके हैं। इसीलिए उन्हें कोई पल्टूराम और कोई बहुरूपिया भी कह रहे हैं। लेकिन इन लोगों को मैं संस्कृत की एक पंक्ति बताता हूं। ‘क्षणे-क्षणे यन्नावतामुपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः’ याने जो रूप हर क्षण बदलता रहता है, वही रमणीय होता है। इसीलिए नीतीशकुमार हमारे सारे नेताओं में सबसे विलक्षण और सर्वप्रिय हैं।
यदि ऐसा नहीं होता तो क्या वे आठवीं बार मुख्यमंत्री बन सकते थे? क्या आप देश में नीतीश के अलावा किसी ऐसा नेता को जानते हैं, जो आठ बार मुख्यमंत्री बना हो? लालू और नीतीश 4-5 दशक से बिहार की राजनीति के सिरमौर हैं लेकिन आज भी वह देश का सबसे पिछड़ा हुआ प्रांत है। फिर भी भाजपा से कोई पूछे कि नीतीश से डेढ़-दो गुना सीटें जीतने के बाद भी उसने उन्हें मुख्यमंत्री का पद क्यों लेने दिया? गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पटना में दरकिनार करनेवाले नीतीश को आपने मुख्यमंत्री क्यों मान लिया?
नीतीश के अप्रिय आर सी पी सिंह को केंद्रीय मंत्री बनाना और उसको नीतीश से तोड़ना क्या ठीक था? इसके पहले कि भाजपा नीतीश को गिरा देती, नीतीश ने भाजपा के नेहले पर दहला मार दिया। नीतीश और भाजपा की यह टूट हर दृष्टि से बेहतर है। नीतीश जातीय जनगणना कराने पर उतारु हैं और भाजपा उसकी विरोधी है। इस समय नीतीश की सरकार के साथ पहले से भी ज्यादा विधायक हैं। भाजपा के अलावा बिहार की लगभग सभी पार्टियों का समर्थन उसको प्राप्त है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि अगले विधानसभा चुनाव में इस नए गठबंधन को बहुमत मिल ही जाएगा।
नीतीश फिर से मुख्यमंत्री बन पाएंगे, यह तो निश्चित नहीं है लेकिन 2024 के आम चुनाव में समस्त विरोधी दलों को जोड़ने में सक्रिय भूमिका निभा सकते है। उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने के लिए विरोधी दल तैयार हो या न हों लेकिन उनका लचीला व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा है कि वे राम और रावण दोनों के हमजोली हो सकते हैं।
आलेख , वरिष्ठ पत्रकार – श्री वेद प्रताप वैदिक, नई दिल्ली ।
साभार- राष्ट्रीय हिंदी दैनिक “नया इंडिया” समाचार पत्र ।
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