कलाकार

एक्टर के हर एक्ट पर सवाल करती सियासत

सैफ अली खान एक अभिनेता हैं इसलिए उनकी हर गतिविधि क्या अभिनय होती है ? ये सवाल हमने-आपने नहीं बल्कि महाराष्ट्र के सियासतदानों ने उठाया है। सैफ पर हमला ही अब सियासी मुद्दा हो गया है। किसी को यकीन ही नहीं हो रहा कि जानलेवा हमले के बाद सैफ मात्र 3 दिन में तंदुरुस्त होकर अपने घर आ सकते हैं। क्योंकि आम आदमी तो कम से कम एक पखवाड़े तक पलंग नहीं छोड़ सकता। आम आदमी में किसी अभिनेता जितनी कूबत ही नहीं होती।मैं अक्सर कहता हूँ कि हमारे मुल्क में सियासत मुद्दों पर नहीं होती,सियासत बेसिर -पैर की होती है। और जब होती है तो होती ही चली जाती है। सियासत का ये चरित्र बदलना आसान नहीं है। ये कलिकाल की नहीं मोदी युग की देन है और इसके लिए किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। अभिनेता सैफ अली खान की अस्पताल से छुट्टी के बाद प्रदेश सरकार के एक मंत्री नितेश राणे ने सवाल उठाए हैं। उनका मानना है कि सैफ पर हमला संदिग्ध हो सकता है। राणे ने राजनीतिक नेताओं पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए हिंदू कलाकारों की उपेक्षा की बात कही और बढ़ते बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुद्दे पर चिंता जताई । अब ये राणे कौन से नेता हैं ,ये बताने की जरूरत नहीं है।
                  सैफ के ऊपर सवाल खड़े करने वाले राणे अकेले नहीं है। शिवसेना नेता संजय निरुपम ने एक बड़ा सवाल खड़ा किया है. उन्होंने हमले की घटना का जिक्र करते हुए इतनी जल्दी ठीक होने पर कहा कि सैफ को 16 जनवरी की घटना के बारे में बताना चाहिए। निरुपम भले ही दलबदलू किन्तु अनुभवी नेता हैं इसलिए उन्होंने अपना सवाल बड़ी ही नजाकत के साथ किया है। निरुपम ने कहा कि 16 जनवरी को सैफ अली खान के साथ जो कुछ भी हुआ, वह बेहद चिंताजनक है. हम परिवार के साथ हैं. सैफ को अस्पताल से छुट्टी मिल गई है और बाहर वह ऐसे दिखे हैं जैसे वह शूटिंग करने के लिए फिट हैं. यह देखना आश्चर्यजनक है. डॉक्टरों ने कहा था कि चाकू उनकी पीठ में 2.5 इंच तक घुस गया था, जिसके लिए छह घंटे का ऑपरेशन करना पड़ा. चिकित्सकीय रूप से इतनी जल्दी ठीक होना कैसे संभव है ?भाजपा पहले ही सैफ पर हमले को अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बना चुकी है ,क्योंकि महाराष्ट्र की पुलिस ने सैफ पर हमले के आरोप में जिस आरोपी को पकड़ा है वो संयोग से बांग्लादेशी है। भाजपा के लिए बांग्लादेशी घुसपैठिये चुनावी मुद्दा रहे हैं ,ये बात और है कि केंद्र में भाजपा की सरकार ने बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को बाकायदा सरकारी मेहमान बनाकर शरण दी हुई है। बांग्लादेश के लोग भी इससे हैरत में हैं और भारतीय जनता पार्टी के लोग भी,लेकिन भाजपा का कोई नेता अपने पंत प्रधान से हसीना के बारे में सवाल करे कैसे ? भाजपा में तो सवाल करना ही राष्ट्रद्रोह माना जाता है ,बल्कि यूं कहिये कि घोषित गैरजमानती अपराध है।नेशनल कांफ्रेंस के सदर और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ फारुख अब्दुल्ला ने सैफ के जल्द ठीक होने पर तो कोई बात नहीं की लेकिन उन्होंने सैफ के कथित हमलावर के बहाने पूरे बांग्लादेशियों को अपराधी माने जाने की निंदा की है। उनका कहना है कि किसी एक व्यक्ति की गलती का ठीकरा पूरे देश पर नहीं फोड़ा जा सकता। लेकिन डॉ अब्दुल्ला की नसीहत भाजपा वाले या शिव सेना वाले क्यों मानने लगे ? भाजपा और शिव सेना के नेता और कार्यकर्ता खुद अपने दिल की ही नहीं मानते। इन पार्टियों के नेताओं को न सैफ पर भरोसा है और न चिकित्सा विज्ञान पर। ये देह की जीवनशक्ति के बारे में भी कुछ नहीं जानते। ये लोग केवल और केवल हिन्दू और मुसलमान जानते हैं। इन सभी का काम इसी अल्प जानकारी से चल जाता है।
सैफ अली के माता-पिता से इस देश की आधी से अधिक आबादी का जुड़ाव है ,और ये जुड़ाव स्वाभाविक है ,इस जुड़ाव की वजह हिन्दू-मुसलमान नहीं है। सैफ के पिता नबाब पटौदी एक बेहतरीन क्रिकेट खिलाड़ी थे और सैफ की माँ शर्मिला टैगौर एक बेहतरीन अदाकारा। इस जोड़ी की अपनी-अपनी उपलब्धियां हैं ,इसमें किसी राजनीतिक दल का कोई योगदान नहीं है। हम जिस पीढ़ी से आते हैं उस पीढ़ी के लिए नबाब पटौदी और शर्मिला टैगौर देश के लिए गर्व का विषय रहे है। इस जोड़ी ने यदि मोदियुग में शादी की होती तो मरहूम नबाब साहब के खिलाफ लव जिहाद का मामला चल रहा होता। पटौदी और टैगौर की सनातन सैफ अली और उनकी पत्नी भी देश की एक पीढ़ी में लोकप्रिय अभिनेता रहे हैं ,इसलिए कम से कम आम आदमी तो सैफ की रिकवरी को लेकर कोई सवाल नहीं करना चाहेगा ,लेकिन नेतागण नहीं मानने वाले। कहते हैं न -कुछ तो लोग कहेंगे,लोगों का काम है कहना ‘
                           भाजपा और शिवसेना के लोग इस बात से भी खुश हैं की सैफ के दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं। सैफ के लिए एक और बुरी खबर और आई है। सैफ अली खान के पटौदी परिवार की 15,000 करोड़ रुपये की संपत्ति सरकार शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत अपने नियंत्रण में ले सकती है। बता दें कि ये संपत्ति मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित है। दरअसल, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला देते हुए 2015 में इन संपत्तियों पर लगाए गए रोक को हटा दिया है। कोर्ट के इस फैसले के बाद शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 के तहत इन संपत्तियों के अधिग्रहण का रास्ता खुल गया है। ध्यान रखिये की मप्र में भाजपा की सरकार है जो हिन्दू-मुसलमान करने में माहिर ह। जाहिर है की प्रदेश की भाजपा सरकार का दिल इस घटना से बल्लियों उछल रहा होगा। भाजपा का बस चले तो वो देश के तमाम मुसलमानों की सम्पत्ति को शत्रु सम्पत्ति घोषित कर जब्त कर ले। लेकिन खुदा गंजों को नाखून नहीं देता। हमारे नेताओं को भगवान सद्बुद्धि दे।बहरहाल हम सियासत के लिए किसी के स्वास्थ्य को हथियार बनाये जाने के खिलाफ है। इस मामले में आप अपने मन से पूछिए ,शायद सही जबाब मिल जाये। क्योंकि सच्चाई से साक्षात्कार कोई सियासी दल,कोई धर्म नहीं करा सकत। दिल ही सच का अहसास करा सकता है। खुदा हाफिज।
@ राकेश अचल
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