राजनीतिनामा

संघम ,शरणम गच्छामि

और आखिर भाजपा को संघ की शरण में जाना ही पड़ा ,हालाँकि भाजपा के बहुमुखी प्रतिभा के धनी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्ढा पूर्व में कह चुके थे कि अब भाजपा को संघ की जरूरत नहीं है। भाजपा की अपंग सरकार ने गत दिवस केंद्रीय कर्मचारियों को संघ की शाखाओं में जाने पर लगी रोक हटाकर संघ की शरण में जाना स्वीकार कर लिया। ये रोक आजकल से नहीं बल्कि पिछले 58 साल से लगी हुयी थी । इन 58 सालों में पांच साल अटल बिहारी बाजपेयी और दस साल माननीय नरेंद्र दामोदर दास मोदीप्रधानमंत्री रहे लेकिन किसी ने भी इस प्रतिबंध को नहीं हटाया था। अभी भी संघ ने इस पाबंदी को हटाने के लिए कोई औपचारिक याचना नहीं की थी।संघ की शाखाओं में केंद्रीय कर्मचारी जाएँ या राज्य के इससे हमें कोई लेना देना नहीं हैं,क्योंकि जिन्हें जाना है वे प्रतिबंध के बावजूद शाखाओं में जाकर प्रशिक्षण लेते ही है। प्रचारक बनते ही हैं। देश के पूर्व प्रधानमंत्री हों या वर्तमान प्रधानमंत्री संघ के प्रिय शाखामृग हैं। उन्हें किसी ने जब नहीं रोका तो कागजी पाबन्दी होने या न होने का कोई अर्थ नहीं रह जाता। बात का बतंगड़ तो इसलिए बन रहा है क्योंकि जिस संघ को भाजपा ने नकार दिया था अब उसी संघ की भाजपा को चिरोरियाँ करना पड़ रहीं हैं। भाजपा यदि 2024 के लोकसभा चुनाव में यदि अपने बूते 370 और गठबंधन के बूते 400 पार कर जाती तो उसे संघ की शरण में जाने की जरूरत ही न पड़ती।कायदे से भाजपा को पहले बुद्ध की शरण में जाना चाहिए था । फिर धर्म की शरण में ,संघ की शरण सबसे बाद में ली जाती है ,क्योंकि ये सूत्र ही कहता है कि –
बुद्धं शरणं गच्छामि।
धर्मं शरणं गच्छामि।
संघं शरणं गच्छामि।
भाजपा ने 400 पार करने के लिए अनौपचारिक रूप से हालाँकि पहले बुद्ध कोई शरण ली । संविधान की धज्जियां भले उड़ाऍं हों किन्तु डॉ भीमराव अम्बेडकर को खूब सिर पर उठाकर देश के दलितों और बौद्धों को भरमाने की कोशिश की। बुद्ध के बाद भाजपा धर्म की शरण में भी गयी । अयोध्या में भव्य राममंदिर बनवाकर वहां दिव्य रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा भी कराई ,लेकिन अयोध्या में ही उसे प्रतिष्ठा नहीं मिली। अयोध्यावासियों ने समाजवादी पार्टी को प्रतिष्ठित किया। और तो और बद्रीनाथ में भी भाजपा की प्राण-प्रतिष्ठा नहीं हो पायी। हारकर भाजपा को संघ की शरण में ही आना पड़ा। भाजपा के नेता जानते हैं कि पूत तो कपूत हो सकता है किन्तु माता, कुमाता नहीं होसकती। संघ भाजपा की जननी है।भाजपा अब अपनी मां के आँचल में वापस लौट आयी है।संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर लगी पाबंदी हटने से क्या संघ की कोई लाभ होगा या भाजपा लाभान्वित होगी ? ये जानने के लिए हमें और आपको कुछ समय और प्रतीक्षा करना होगी। आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 10 सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव और बाद में तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में साफ़ हो जाएगा कि केंद्रीय कर्मचारियों ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है या नहीं। इस फैसले से मै न खुश हूँ और न दुखी । क्योंकि इस फैसले से आम जनता के जीवन पर कोई फर्क पड़ने नहीं जा रहा है। ये फैसला लगातार सुविधाभोगी और तनखीन [क्षीण ] हो रहे संघ की सेहत को सुधारने के लिए है । पिछले दस साल में भाजपा की संघ पर निर्भरता कम हुई जबकि संघ की निर्भरता भाजपा पर बढ़ी है । संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत केन्दीय मंत्रियों की तरह ब्लैक कैट कमांडों की छत्र-छाया में चलने के आदी हो गए हैं। संघ की शाखाओं और गतिविधियों में घनघोर कामी आई है। भाजपा ने संघ की अनसुनी करना शुरू कर दी है। 2024 के आम चुनावों में भाजपा की सीटों की संख्या कम होने का एक बड़ा कारण बीमार संघ भी रहा।राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर देश में दो मर्तबा पाबंदी लगाईं गयी । क्यों लगाईं गयी ये बताने की जरूरत नहीं है। देश जानता है संघ के चरित्र को। जो संघ पिछले दिनों देश के प्र्धानमंत्री को मणिपुर न जाने के लिए कोस रहा था ,जो भाजपा के नेताओं को अहंकार से मुक्त होने की बात कर रहा था उसी संघ ने न मणिपुर में हिंसा रोकने के लिए कुछ किया और न खुद को अहंकार की चपेट में आने से रोका। अन्यथा एक जमाना था जब संघ के घुटन्ना पहनने वाले स्वयं सेवक दिखावे के लिए ही सही लेकिन आपदा के समय जनता के बीच दिखाई देते थे। अब तो चाहे ट्रेन हादसा हो या हाथरस की भगदड़ संघी भाई कहीं नजर ही नहीं आते। वे जनता की सेवा करना जैसे भूल ही गए हैं।
संघ के दो दर्जन के लगभग अनुसांगिक संगठन हैं जो अलग -अलग क्षेत्रों में काम करते हैं ,लेकिन सबका मकसद एक ही है ,और वो है हिंदुत्व के लिए जमीन बनाना । संघ के कार्यकर्ता सभी धर्मों का सम्मान करना न जानते हैं और न उन्हें इसका प्रशिक्षण दिया जाता ह। चूंकि इस समय देश के केंद्र में और अनेक राज्यों में भाजपा की अपनी और दोस्तों की सरकारें हैं इसलिए संघ अपना असली काम कर नहीं पा रहा । संघ को किस काम में महारत हासिल है ये बताना मै आवश्यक नहीं समझता । देश की जनता और मेरे पाठक समझदार हैं। अनेक तो ऐसे हैं जो संघ के बारे में मुझसे ज्यादा जानते हैं। संघ भी देश के इतिहास में एक पुराना संगठन है ,कांग्रेस से कुछ छोटा ,लेकिन कांग्रेस के बराबर नहीं। संघ की वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए मुझे संघ की फ़िक्र रहती है कि आने वाले दिनों में संघ का हाल भी कहीं कांग्रेस जैसा तो नहीं होने जा रहा।
                भगवान करे कि केंद्र सरकार के फैसले के बाद संघ की ताकत बढ़े । सरकार चाहे तो संघों के लिए केंद्र कि नौकरियों में दो-चार फीसदी का आरक्षण भी दे दे ,कोई कुछ करने वाला नहीं है। सरकार समर्थ है सब कुछ करने में ,उसे उसकी बैशाखियाँ भी नहीं रोक पाएंगी। आईएनडीआईए के विरोध कि सरकार को फ़िक्र नहीं करना चाहिए। सरकार देश कि जनता की सेवा के लिए नही, बल्कि संघ की सेवा के लिए बनी है । संघ की सेवा ही राष्ट्र की सेवा है। संघ ही राष्ट्र है। संघ नहीं तो राष्ट्र भी कैसे हो सकता है ? मौक़ा है जब सरकार और भाजपा ही नहीं बल्कि जितने भी राष्ट्रद्रोही हैं वे संघ की शरण में चले जाएँ। देश का ,देश की जनता का परित्राण संघ की शरण में जाने से होगा शायद। संघ के प्रति मेरी पूरी सहानुभूति है । आप इसे अन्यथा न लें। मै कोई नीतीश बाबू की तरह अपना रंग नहीं बदल रहा। ये मेरा दयाभाव है दीन -दुर्बल संघ के प्रति।

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@ राकेश अचल
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