अगले आम चुनाव के चार सौ दिन पहले से तैयारी में बढ़त हासिल कर चुकी भाजपा का मुकाबला करने के लिए इस बिहार की हिंदी पट्टी के साथ -साथ दक्षिण में भी मलखंभ रोपे जा चुके हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव इस बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए खुद को प्रस्तुत किया है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने खुद को बीजेपी को चैलेंज देने वाली एक राष्ट्रीय शक्ति के तौर पर पेश करने के लिए रैली का आयोजन किया ।मगर विपक्ष पशोपेश में है । एक तरफ राहुल गांधी बीजेपी को हराने के लिए भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर केसीआर कई विपक्षी दलों को एक मंच पर लाकर रैली की । जिसमें हिंदी में नारों गूंज जमकर सुनाई दी. केसीआर का इरादा बता रहा है कि वो तीसरे मोर्चे की नींव रख रहे हैं, देश के मौजूदा परिदृश्य में कांग्रेस अकेले भाजपा के मुकाबले में नहीं है । इससे पहले बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तीसरे मोर्चे के लिए तैयार नजर आए थे। नीतीश कुमार ने तो पिछले दिनों कहा भी था कि इस बार थर्ड फ्रंट नहीं , फाइनल फ्रंट बनाया जाएगा। तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर पहले भी मोदी जी को खुली चुनौती दे चुके हैं। ममता बनर्जी और नीतीश कुमार फिलहाल खामोश हैं। सवाल ये है कि क्या समूचा विपक्ष केसीआर का नेतृत्व स्वीकार कर लेगा ? दक्षिण से पहले भी दिल्ली को चुनौती देने की कोशिशें की गई किन्तु कामयाबी किसी को भी नहीं मिली। दक्षिण के तमाम तिलस्मी नेता भी दिल्ली की सल्तनत को हासिल नहीं कर सके। आजादी के 75 साल में दक्षिण के हिस्से में अब तक के 17 प्रधानमंत्रियों में से केवल एच डी देवगौड़ा और पीवी नरसिम्हा राव के हिस्से में प्रधानमंत्री पद संयोग से आया था।इन दोनो की अगुवाई में कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा गया।राव साहब भी श्रीमती सोनिया गांधी के कथित त्याग की वजह से प्रधानमंत्री बने। गुजरात, दिल्ली, पंजाब से भी प्रधानमंत्री बने, लेकिन सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री उप्र से बने।
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मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के लिए उप्र की शरण लेना पड़ी। भारत के संघीय स्वरूप में मै इसे विसंगति मानता हूं। मुझे लगता है कि हिन्दी पट्टी से लगातार प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार संयोग से नहीं बल्कि योजनाबद्ध तरीके से बनते आए हैं। अन्यथा क्या दक्षिण में देश का नेतृत्व करने लायक नेता पैदा ही नहीं होते ? केसीआर ने खम्मम रैली में में समान सोच रखने वाले दलों के चुनिंदा नेताओं को बुलाया था। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के अलावा सीपीआई के डी राजा उनके बुलावे पर हैदराबाद पहुंचे लेकिन बाकी के विपक्षी दल नदारद रहे। इसलिए अभी अंदेशों का अंत नहीं हुआ। आपको बता दें कि केसीआर दक्षिण के ऐसे नेता हैं जो अपनी मातृभाषा के अलावा हिंदी भी मस्त बोलते हैं।केसीआर ने रैली आयोजित करने से पहले अपने आपको हिंदू नेता प्रमाणित करने के लिए यदाद्री मंदिर का कायाकल्प किया और मंदिर पर. 1200 करोड़ रुपए खर्च कर डाले । केसीआर ने अपने क्षेत्रीय दल टीआरएस यानी तेलंगाना राष्ट्र समिति का नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति कर दिया। यानी बीआरएस किए जाने के बाद पहली रैली थी। केसीआर एक महात्वाकांक्षी राजनेता हैं।केसीआर का पूरा नाम कल्वाकुंतला चंद्रशेखर राव है। 68 साल के केसीआर तेलंगाना के वर्तमान मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति के प्रमुख हैं।वे पृथक तेलंगाना राष्ट्र आंदोलन के प्रमुख नेता रहे हैं वे तेलंगाना के दूसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं और 8 साल से उनका एक छत्र राज है। केसीआर इसके पूर्व वे सिद्धिपेट से विधायक तथा महबूबनगर और करीमनगर से सांसद रह चुके हैं। वे केंद्र में श्रम और नियोजन मंत्री रह चुके हैं। तीसरे मोर्चे का नेतृत्व करने को उतावले केसीआर ने घाट -घाट का पानी पिया है। कांग्रेस के पुराने साथी रहे हैं, लेकिन बीच में कांग्रेस से दूर हो गये थे। लेकिन केसीआर शायद नहीं जानते कि कांग्रेस के बिना आज भी देश में कोई नया मोर्चा या गठबंधन नहीं बन सकता। केसीआर वंशवादी राजनीति में यकीन रखते हैं। उनके अपने मंत्रिमंडल में एक दर्जन रिश्तेदार भरे पड़े हैं। अगले चार सौ दिनों यानि एक साल में राजनीति न जाने कितनी करवटें लेगी।सितारा केसीआर का बुलंद होता है या फिर दक्षिण के आसमान में छोड़े गए गुब्बारे की हवा समय से पहले निकल जाएगी।इस देश ने कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु को स्वीकार नहीं किया इसलिए केसीआर तो राजनीति के कच्चे खिलाड़ी हैं।
व्यक्तिगत विचार-आलेख-
श्री राकेश अचल जी जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश ।
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