राजनीतिनामा

राहुल पर टिप्पणी कर फंस तो नहीं गए ‘महाराज’

राहुल पर टिप्पणी कर फंस तो नहीं गए ‘महाराज’
महाराज अर्थात केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, पहली बार कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ बोले। स्वेच्छा से बोले या मजबूर किए गए, इसे लेकर कयासों का दौर जारी हैं। उन पर जिस तरह हमले हो रहे हैं, इससे लगता है कि ‘आ बैल मुझे मार की तर्ज’ पर महाराज फंस गए। वे किस जोशीले अंदाज में अपनी बात रखते हैं, हर कोई जानता है। किसी विरोधी के खिलाफ बोलना हो, तो सुनने वालोंं तक में जोश आ जाता है। राहुल के खिलाफ वे बोले तो यह जोश नदारद था। जिसने भी उनकी बॉडी लैन्ग्वेज देखी, यही सवाल उठा, महराज दिल से नहीं मजबूरी में बोल रहे हैं। इसकी वजह भी है। कांग्रेस में रहते महाराज राहुल के ही सबसे नजदीक थे। उन्होंने कांग्रेस छोड़ी तो राहुल ने सिर्फ इतना कहा था, ज्योतिरादित्य के लिए मेरे दरवाजे हमेशा खुले थे। मुझसे मिलने के लिए उन्हें किसी की अनुमति की जरूरत नहीं थी। इसके बाद से अब तक राहुल ने सिंधिया के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की। ज्योतिरादित्य भी हमेशा राहुल के खिलाफ टिप्पणी से बचते नजर आते थे। पहली बार उन्होंने मीडिया के सामने आकर राहुल के खिलाफ कड़ी भाषा का प्रयोग किया। इस पर जयराम रमेश, दिग्विजय सिंह और अधीर रंजन जैसे नेताओं ने सिंधिया को घेर लिया। उन्हें गद्दार तक कह दिया। यह विवाद आगे बढ़ता दिख रहा है। अब तो राहुल गांधी की भी प्रतिक्रिया आ गई है।
नरोत्तम के खिलाफ भाजपाई पर ही दांव की तैयारी
कांग्रेस के लिए कठिन विधानसभा सीटों में दतिया भी है। इसका प्रतिनिधित्व प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा करते हैं। उनके कारण भी यह सीट पार्टी के निशाने पर है। नरोत्तम की तोड़ ढूंढ़ी जा रही है। यह जवाबदारी भी वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के पास है। लोहा से लोहा काटने की तर्ज पर कांग्रेस नरोत्तम के खिलाफ किसी भाजपाई पर ही दांव लगाने की तैयारी में है। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के खास रहे एक नेता पर पार्टी की नजर है। ये दो बार विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। एक बार इनका मुकाबला नरोत्तम से भी हो चुका है। ये दतिया के स्थानीय हैं और यहां से ही विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे थे। अचानक नरोत्तम की परंपरागत सीट डबरा अजा के लिए आरक्षित हो गई और वे दतिया आ गए। नरोत्तम के प्रयास से इन्हें हालांकि भाजपा सरकार लालबत्ती भी दे चुकी है लेकिन विधायक न बन पाने की कसक इनके अंदर अब भी है। खबर है कि दिग्विजय एवं कमलनाथ से इनकी बात हो चुकी है। भाजपा ने यदि इन्हें किसी सीट से एडजस्ट न किया तो अगला चुनाव ये नरोत्तम के खिलाफ लड़ सकते हैं। दतिया में हार-जीत का अंतर ज्यादा नहीं रहता, इसलिए नरोत्तम ने भी क्षेत्र में फोकस बढ़ा दिया है। कांग्रेस नेताओं पर हमेशा तंज कसने वाले नरोत्तम को पार्टी कितना घेर पाती है, यह समय बताएगा।
भूपेंद्र-गोविंद की ‘काट’ ढूंढ़ पाएंगे दिग्विजय
– कांग्रेस के लिए कठिन मानी जाने वाली सीटों की श्रंखला में वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह अब बुंदेलखंड पहुंच रहे हैं। अंचल के पांच जिलों की कई सीटों में भाजपा मजबूत है। फिर भी कांग्रेस की नजर सागर जिले में ज्यादा है। इसकी दो वजह हैं। एक, ये प्रदेश का एक मात्र ऐसा जिला है, जहां से प्रदेश की भाजपा सरकार में तीन कद्दावर नेता गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह और गोविंद सिंह राजपूत मंत्री हैं। दूसरी वजह केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास सिपहसलार गोविंद सिंह राजपूत हैं। गोविंद भी सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए थे। उनकी सीट सुरखी सागर जिले में है, इसलिए कांग्रेस के निशाने पर। पहले चरण में दिग्विजय अपने बेटे जयवर्धन सिंह के साथ खुरई क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के खास मंत्री भूपेंद्र सिंह यहां से विधायक हैं। दिग्विजय अब तीन दिन के लिए सागर में डेरा जमाने वाले हैं। उनका फोकस गोविंद राजपूत की सीट सुरखी पर ज्यादा रहेगा। वे जानने की कोशिश करेंगे कि कौन गोविंद को शिकस्त अथवा टक्कर दे सकता है। इसके बाद वे दूसरी सीटों पर ध्यान देंगे। गोपाल भार्गव की सीट पर कांग्रेस को ज्यादा कुछ हासिल होने वाला नहीं है। इसलिए दिग्विजय दूसरे क्रम पर भाजपा के प्रदीप लारिया और शैलेंद्र जैन की सीटों पर फोकस रख सकते हैं। पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या दिग्विजय सागर में भूपेद्र-गोविंद की काट ढूंढ़ पाएंगे?
दिग्विजय के जवाब में मोर्चे पर भाजपा के दिग्गज
– ग्वालियर अंचल में कद्दावर नेता रहे राव देशराज सिंह यादव के बेटे और निमाड़ में एक पूर्व सांसद के दिग्विजय सिंह के प्रयास से कांग्रेस में शामिल होने के बाद भाजपा का प्रदेश नेतृत्व चौकन्ना हो गया है। उसे लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दौरों से भाजपा मजबूत हो रही है लेकिन निचले स्तर तक नाराजगी कम न हुई तो गड़बड़ हो सकती है। संभवत: इसीलिए भाजपा के रूठे नेताओं को मनाने की कमान पार्टी के बड़े नेताओं को सौंपी गई है। इनकी कोशिश दिग्विजय के प्रयासों को नाकाम करना होगी। ये नेता समय-समय पर अपनी दक्षता सिद्ध कर चुके हैं। इनमें तीन पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर, प्रभात झा और राकेश सिंह हैं तो बुंदेलखंड, मालवा, चंबल के धाकड़ नेता गोपाल भार्गव, कैलाश विजयवर्गीय और जयभान सिंह पवैया भी। माखन सिंह, कृष्ण मुरारी मोघे, सत्यनारायण जटिया, फग्गन सिंह कुलस्ते, माया सिंह, लाल सिंह आर्य और सुधीर गुप्ता जैसे नेताओं को भी जवाबदारी सौंपी गई है। इन्हें तीन-तीन जिलों का प्रभार सौंपा गया है। ये अपने प्रभार के जिलों में जाकर रूठे कार्यकतार्ओं को मनाएंगे और सामंजस्य, समन्वय बनाकर अपनी रिपोर्ट पार्टी नेतृत्व को सौंपेंगे। यह निर्णय कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की सक्रियता को ध्यान में रखकर लिया गया है।
व्यक्तिगत टिप्पणियों से मजाक का पात्र बनते प्रवक्ता
– राजनीति में गिरावट के मामले में भाजपा-कांग्रेस के कुछ बड़े नेता भी मर्यादाएं लांघ रहे हैं। मप्र भाजपा और कांग्रेस के कुछ प्रवक्ता तो इस मसले पर सारी हदें पार करते नजर आ रहे हैं। किसी की किसी नेता के प्रति व्यक्तिगत खुन्नस या नाराजगी हो सकती है। उनके विरोध में वे पागल जैसे होकर ट्वीट करने लगें तो लोगों के बीच मजाक का पात्र बनना स्वाभाविक है। प्रदेश भाजपा और कांग्रेस के कुछ प्रवक्ताओं के बीच ऐसा अभियान चरम पर है। कोई कमलनाथ के प्रति व्यक्तिगत खुन्नस निकालने भाजपा के बैनर का उपयोग कर रहा है तो कोई शिवराज सिंह चौहान एवं ज्योतिरादित्य सिंधिया पर हमले के लिए कांग्रेस का। ये प्रवक्ता ऐसी-ऐसी हल्की और स्तरहीन टिप्पणियां करते हैं, जिनका ‘न कोई सिर होता, न पैर’। इन्हें पढ़ कर लोग हंसने के अलावा कुछ नहीं करते। मजेदार बात यह है कि भाजपा और कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व भी इन पर अंकुश नहीं लगाता। इसके विपरीत कुछ बड़े नेता तक इनकी जसी हरकतें करते नजर आ जाते हैं। अच्छा होता यदि प्रवक्ता मुद्दों और विचारधारा के आधार पर कांग्रेस अथवा भाजपा को कटघरे में खड़ा करते। ऐसे ट्वीट करते जो लोगों के दिल और दिमाग में उतरते और वे कोई धारणा बनाते लेकिन यहां तो प्रवक्ताओं के बीच इस बात की होड़ लगी है कि कौन सबसे ज्यादा मजाक का पात्र बनता है?

व्यक्तिगत विचार आलेख

श्री दिनेश निगम त्यागी जी  ,वरिष्ठ पत्रकार  एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश  ।

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