निरोगी-काया

भारतीय सर्जन की वैश्विक उपलब्धि बिना एंटीबॉयटिक्स जख्मों को ठीक करने की विधा खोजी

भारतीय सर्जन की अभूतपूर्व वैश्विक उपलब्धि बिना एंटीबीओटिक्स, सड़ेगले लाइलाज जख्मों को ठीक करने की विधा खोजी, बिना अस्पताल में भर्ती किये, और बिना एंटीबीओटिक्स दवाएं दिए, कैंसर और डायबिटिक फुट के जख्म पूरी तरह ठीक हुए पुरे विश्व में डॉ भुवनेश्वर गर्ग की इस उपलब्धि को न सिर्फ सराहा जा रहा है, बल्कि लाइलाज जख्मों, एमडीआर सेस्पीस के मरीजों के इलाज की इस तकनीक पर विश्व की सबसे बड़ी चिकित्सा संस्था, woundcon, डॉ गर्ग की आज रात (22nd march ) दस बजे वैश्विक परिचर्चा प्रसारित करने जा रही है, उल्लेखनीय है कि लाइलाज कैंसर जख्मों के मरीजों पर भी यह विधा बेहद कारगर साबित हुई है और कुछ समय पहले ही डॉ गर्ग को फोर्टिस विश्व कैंसर समिट में सम्मानित भी किया गया है। यह उपलब्धि इसलिए भी बेहद अहम् है क्योंकि अभी हाल ही में, WHO की पहली ग्लोबल सेप्सिस रिपोर्ट ने जो आंकड़े पेश किये हैं वे भारतीय परिवेश में बेहद चिंताजनक है, इसके अनुसार, एंटीबायोटिक्स के दुरूपयोग से हर साल एक करोड़ दस लाख से ज्यादा मौतें हो रही हैं और इसमें, ४९% से ज्यादा मल्टीड्रग रजिस्टेंस अस्पतालों से मरीजों को मिल रहा है। क्योंकि अव्वल तो देश में कोई कारगर दवा निति ही नहीं है, घर घर गाँव गाँव पुड़ियों में एंटीबीओटिक्स और अन्य जहरीली दवाइयों का मिश्रण सहजता से उपलब्ध है, यहाँ तक कि आटा दाले, सब्जियां चिकन फ़ूड में भी दोयम दवाइयां मिलाई जा रही हैं और स्पूरियस, कॉउंटरफिट दोयम नकली दवाइयों की भरमार है, मंहगी एंटीबीओटिक दवाइयों को लिखने के लिए अपनी पसंदीदा लैब्स से वांछित पास कल्चर रिपोर्ट्स लिखवाई जा रही हैं, यक़ीनन आने वाले समय में यह साइलेंट किलर बहुत जल्दी महामारी का रूप लेने वाला है। कोविड में महज चंद लाख मौतों से हलकान हो जाने वाला देश, इस मानवीय भूल या डॉक्टरों की व्यावसायिक लालसा के चलते कितना गंभीर संकट झेलने वाला है, यह सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सरकार को जल्द ही इस विषय पर कड़े कदम उठाने होंगे, फिलहाल तो डॉ गर्ग अकेले ही इस भीषण संकट में बागडोर थामे हुए हैं।

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