अब सवाल ये है कि कमलनाथ अपने मसखरे स्वभाव से जिस तरह कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद भी राहुल गांधी को खुश किए हुए हैं, तो क्या वर्षांत में होने वाले विधानसभा चुनाव में मप्र की जनता का मन भी मोह सकेंगे? कांग्रेस के बीरबल यानि कमलनाथ की वजह से मप्र में भले ही कांग्रेस सरकार चली गई हो लेकिन कांग्रेस कहीं नहीं गईं। कांग्रेस आज भी 2018 की हैसियत में खड़ी है। यहां कमलनाथ के सामने राजस्थान के सचिन पायलट की तरह कोई बागी नहीं है। सिंधिया थे सो पलायन कर ही चुके हैं। कमलनाथ अपने विरोधियों को अशोक गहलोत की तरह कोविड नहीं कहते बल्कि उनका इलाज कर देते हैं। इस समय मप्र में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह उनके समकक्ष हैं किन्तु प्रतिस्पर्धी नहीं हैं।वे कमलनाथ की ही तरह मसखरी में सिद्ध हस्त हैं। दोनों की जोड़ी विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान के लिए मुश्किलें खड़ी करने में कोई कसर छोड़ने वाली नहीं है। कमलनाथ कहते हैं कि भाजपा के लोग मुझसे 15 महीने की सरकार का हिसाब मांगते हैं। मैं कहता हूं कि पहले शिवराज सिंह चौहान 18 साल के शासन काल का हिसाब दें। फिर मैं अपने 15 महीने के कार्यकाल का हिसाब दूंगा। शिवराज चाहें तो एक मंच पर खड़े होकर सवाल-जवाब कर सकते हैं।
कांग्रेस के इस बीरबल का साफ कहना है कि-‘ चुनाव होते रहते हैं, लेकिन इस बार के चुनाव महत्वपूर्ण हैं। इस इस बार हमें देश की संस्कृति और संविधान बचाने के लिए वोट करना होगा। विकास और बेरोजगारी की बात बाद में भी हो जाएगी, लेकिन इस बार संस्कृति और संविधान को बचाना जरूरी है। जातिगत आधार पर जनगणना के सवाल पर कहा कि
देश में जातिगत जनगणना जरूरी है। सरकार सच्चाई को क्यों छुपाना चाहती है। मेरा मानना है कि जातिगत जनगणना होना चाहिए।कमलनाथ से भाजपा का हर नेता आतंकित रहता है।अपना डर छिपाने के लिए बेचारे कुछ न कुछ बोलते रहते हैं। प्रदेश के गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा भी कमलनाथ की हाजिरजवाबी के सामने फीके पड़ जाते हैं।अब देखना ये है कि कांग्रेस के अकबर और बीरबल की ये जोड़ी दस महीने बाद अपनी झपटी गई सत्ता दोबारा हासिल कर पाती है या नहीं?
व्यक्तिगत विचार-आलेख- श्री राकेश अचल जी जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश ।
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