समझ में नहीं आता इस प्रश्न की प्रासंगिकता सनातनी परंपरा में आज के युग से पहले कितनी बार रही होगी या 21 वीं सदी में भी यह प्रश्न प्रासंगिक है जो 100 करोड़ की आबादी को एक साथ एक ही पाले में खड़ा कर दे और वह भी उस समाज को जहां से ज्ञान, विज्ञान ,कला, राजनीति, शास्त्र, शस्त्र और मानवीय जीवन की आदर्श जीवनशैली का उद्भव जनक कई हजार सालों से माना जाता रहा है। क्या आज के युग में भी कहीं कुछ ऐंसा घटित हो रहा है जहाँ से हमें अपने पुरोधाओं के गौरवशाली इतिहास और ज्ञान पर संशय हो या सनातनी समाज के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर संदेह हो ! तब वर्तमान युग में ऐंसा कौन सा क्षेत्र है जो हिंदुओं को आज भी मानसिक रूप से गुलाम और तार्किक अपंगता लिये हुए समझता है ज्ञान, विज्ञान ,समाज ,संस्कृति , धर्म , अर्थ, काम इन सभी आयामों में हिंदू समाज ने समय के साथ परिर्वतन को स्वीकार किया है ।
लेकिन राजनीति एक एंसा क्षेत्र है जहां आज भी हिंदू आबादी को मूर्ख ही समझा जाता है और दुख की बात यह है कि मूर्खता की श्रेणी में स्तर सबसे न्यूनतम रखा गया है । सोचिये समकालीन वैश्विक घटनाओ के बारे में जहाँ एक छोटा सा देश उक्रैन अपने नागरिको की सहायता से स्वाभिमान के साथ रूस जैसे देश को पिछले 6 महीनो से जंग लड़ रहा है, भारत समेत पूरी दुनिया पर राज करने वाला ब्रिटैन किसी दुषरे देश मूल के व्यक्ति की योग्यताओं पर भरोषा कर संकट के समय अपने देश की बागडोर सौंप रहा है , एक कट्टर इस्मालिक देश ईरान में स्कूल, कालेज की छत्राएं महिलाओं के साथ हिजाब के विरोध में अपनी स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ रही हैं और पूरा देश उनके साथ खड़ा हो गया है , पुरे देश की चेतना उनके साथ है और भारत में लोगो की भावनाओं के साथ क्रूर और भद्दा मजाक किया जा रहा है और पूरी दुनिया में उसे प्रचारित भी किया जा रहा है
तभी तो देश की सर्वश्रेष्ठ तकनीकि उच्च शिक्षा प्राप्त एक मुख्यमंत्री भारतीय अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिये भारतीय मुद्रा में मां लक्ष्मी और श्री गणेश की तस्वीर लगाने के लिये इस देश के प्रधानमंत्री को पत्र लिखने की बात करता है और समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी और विध्नों को हरने वाले श्री गणेश के भौतिक और आडंबरयुक्त शरणागति के उपदेश देता है यदि केजरीवाल ने हिंदुओं को निरामूर्ख न समझा होता तो शायद वह सनातनी संस्कृति में निहित अर्थशास्त्र और धन के सदउपयोग की दो चार संहिता सुना देते और सनातनी संस्कृति में निहित कर्मप्रधान बात कहकर हिंदुओं को प्रभावित करने का प्रयास करते ! लेकिन नहीं केजरीवाल और इस देश की राजनीति अब जान गयी है कि इस बड़ी आबादी का तार्किक स्तर क्या है ,तार्किक बात करने से बड़ी आबादी को मात्र एक छोटा सा हिस्सा ही प्रभावित होता और वह भी नारे लगाने वाला या गाली देने वाला नहीं होता तो बात एंसी अतार्किक और बिना सिर पैर वाली की जाये जिससे इस देश की जनता बस खुश हो जाये और बोले हां जब दूसरे देश हमारे देवी देवताओं की मूर्ति लगा सकते है तो हिंदुस्तान में भला क्या समस्या है ।
यही वह राजनीतिक पिच है जिस पर भाजपा बड़े आराम से अपनी राजनैतिक पारी खेल रही है और भाजपा के मास्टर ब्लास्टर नरेंद्र मोदी हिंदु स्वाभिमान और हिंदु तीर्थो के पुनःनिर्माण का दावा कर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष एक बड़ी आबादी को मंत्रमुग्ध किये हुएं है या कह सकते है कि चेतनाविहीन, बेसुध ,तर्कहीन बनाये हुए बस अपना हिंदुत्व का जादू दिखा रहे है। लेकिन भाजपा और मोदी भी हिंदुत्व की पिच पर एंसी आंखमूदकर बल्लेबाजी नहीं करते जैंसे केजरीवाल ने कर दी है वे भी बीच कीच में सबका विकाश विश्वास , मेड इन इंडिया , वोकल फॉर लोकल जैसी बातें कर स्ट्राइक बदलते रहते हैं । लेकिन केजरीवाल ने तो जनता को खुश करने के लिए मानो एक टांग से बल्लेबाजी करने का मन बना लिया हो , इसी के साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि हिुदू बुद्धि, चेतना, और तर्कविहीन विचारों को स्तर उससे भी नीचा हो सकता है जितना भाजपा माप रहीं है। इसीलिये आम आदमी पार्टी के सारे नेता पिछले चौबीस घंटो से सोशल मीडिया पर और टीवी चैनलों की बहस पर लगातार इस बात को बार बार उठा रहें है और पूंछ रहे है कि भाजपा बताये कि वह केजरीवाल की बात के सर्मथन में है या विरोध मे मतलब भाजपा बताये कि क्या वह हिंदु आबादी को सिर्फ मंदिर निर्माण, ज्योर्तिलिंग उद्धार या प्रधानमंत्री के माला जपने से ही समस्याओं के समाधान होने का विश्वास दिलाने में विश्वास रखती है या फिर वह नहीं जानती कि हिंदु आबादी इससे भी अतार्किक सोच रख सकता है।
इस देश में हिंदुओं का नेता बनना और हिंदु विरोधी नेता बनना यह दोनो ही बड़े आसान हो चले है यह सस्ता, सुन्दर और टिकाउ रास्ता है खासकर राजनीति के लिये यह वरदान है हिुदुत्व की राजनीति हो या हिंदु विरोधी पक्ष की राजनीति हो दोनो में भरपूर सर्मथन है और सफलता की गारंटी भी है क्योंकि यहाँ तर्क नहीं है बस एक सोच, एक विचार और एक समाचार वाली भीड़ है और पिछले एक दशक से राजनीति ने सनातनी आबादी का जितना फायदा उठाया है उतना किसी भी अन्य क्षेत्र ने नहीं उठाया होगा हां ज्ञान, विज्ञान , कला , साहित्य , मनोरंजन में भी हिंदू आबादी से अपने हिस्से का योगदान लिया होगा लेकिन वह विवेक के साथ तार्किकता के साथ बहुत कम मात्रा में महकता हुआ होगा । राजनीति की तरह थोकबंद और अंधविश्वास की सड़ांध से भरा हुआ नहीं होगा ।
अभिषेक तिवारी
संपादक – भारतभवः.कॉम ।
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