प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस 15 अगस्त को नारी-सम्मान में जैसे अदभुत शब्द कहे, वैसे किसी अन्य प्रधानमंत्री ने कभी कहे हों, ऐसा मुझे याद नहीं पड़ता लेकिन देखिए कि उसके दूसरे दिन ही क्या हुआ और वह भी कहां हुआ गुजरात में। 2002 के दंगों में सैकड़ों निरपराध लोग मारे गए लेकिन जो एक मुस्लिम महिला बिल्किस बानो के साथ हुआ, उसके कारण सारा भारत शर्मिंदा हुआ था। न सिर्फ बिल्किस बानो के साथ लगभग दर्जन भर लोगों ने बलात्कार किया, बल्कि उसकी तीन साल की बेटी की हत्या कर दी गई।
उसके साथ-साथ उसी गांव के अन्य 13 मुसलमानों की भी हत्या कर दी गई। इस जघन्य अपराध के लिए 11 लोगों को सीबीआई अदालत ने 2008 में आजीवन कारावास की सजा सुनवाई थी। इस मुकदमे में सैकड़ों लोग गवाह थे। जजों ने पूरी सावधानी बरती और फैसला सुनाया था लेकिन इन हत्यारों की ओर से बराबर दया की याचिकाएं लगाई जा रही थीं। किसी एक याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस याचिका पर विचार करने का अधिकार गुजरात सरकार को है।
बस, फिर क्या था? गुजरात में भाजपा की सरकार है और उसने सारे हत्यारों को रिहा कर दिया। गुजरात सरकार ने अपने ही नेता नरेंद्र मोदी के कथन को शीर्षासन करवा दिया। क्या यही नारी का सम्मान है? क्या यही ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवताः’ श्लोक को चरितार्थ करना है। क्या यही नारी की पूजा है? किसी परस्त्री के साथ बलात्कार करके हम क्या हिंदुत्व का झंडा ऊँचा कर रहे हैं? इन हत्यारों को आजन्म कारावास भी मेरी राय में बहुत कम था।
ऐसे बलात्कारी हत्यारे किसी भी संप्रदाय, जाति या कुल के हों, उन्हें मृत्युदंड दिया जाना चाहिए। इतना ही नहीं, उनको सरे-आम फांसी लगाई जानी चाहिए और उनकी लाशों को कुत्तों से घसिटवा कर नदियों में फिंकवाना चाहिए ताकि भावी बलात्कारियों को सांप सूंघ जाए। गुजरात सरकार ने यह कौटलीय न्याय करने की बजाय एक घिसे-पिटे और रद्द हुए कानूनी नियम का सहारा लेकर सारे हत्यारों को मुक्त करवा दिया।
हत्यारे और उनके समर्थक उन्हें निर्दोष घोषित कर रहे हैं और उनका सार्वजनिक अभिनंदन भी कर रहे हैं। गुजरात सरकार ने 1992 के एक नियम के आधार पर उन्हें रिहा कर दिया लेकिन उसने ही 2014 में जो नियम जारी किया था, उसका यह सरासर उल्लंघन है। इस ताजा नियम के मुताबिक ऐसे कैदियों की दया-याचिका पर सरकार विचार नहीं करेगी, ‘‘जो हत्या और सामूहिक बलात्कार के अपराधी हों।’’
सर्वोच्च न्यायालय ने 2019 में बिल्किस बानो को 50 लाख रु. हर्जाने के तौर पर दिलवाए थे। अब गुजरात सरकार ने इस मामले में केंद्र सरकार की राय भी नहीं ली। उसने क्या यह काम आसन्न चुनाव जीतने और थोक वोटों को दृष्टि में रखकर किया है? यदि ऐसा है तो यह बहुत गर्हित कार्य है।
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