भोपालI देश और प्रदेश में इस समय आदिवासियों के प्रति प्रेम जिस तरह से उमड़ा है उससे बरबस आदिवासियों का राजनीतिक रूप से महत्त्व सामने आ रहा है। प्रदेश में पिछले 4 विधानसभा के आम चुनाव के परिणाम स्पष्ट बता रहे हैं कि जिधर आदिवासी उधर सरकार। इस समय हर दिल अजीज आदिवासी कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
दरअसल, यदि प्रदेश में विधानसभा के आम चुनाव के परिणामों को देखा जाए तो 2003 से 2018 तक स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि जहां आदिवासियों का झुकाव हुआ वहां की सरकार बनी और जब प्रदेश में 2023 के लिए भाजपा और कांग्रेस ‘करो या मरो’ की स्थिति में तैयारी कर रहे हैं तब 22% आदिवासी आबादी को लुभाने के हर जतन दोनों दलों की ओर से किए जा रहे हैं। प्रदेश स्तर पर होने वाले आयोजन मैं राष्ट्रीय नेतृत्व की सहभागिता रहती है। खासकर सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी ने आदिवासियों के सम्मेलन और कार्यक्रम जबलपुर, भोपाल में बड़े पैमाने पर किए हैं। जबलपुर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और राजधानी भोपाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं ना केवल शिरकत कर चुके हैं। वरन हर बार आदिवासियों के हित में महत्वपूर्ण घोषणाएं भी हुई और अब तो भाजपा छोटे – छोटे ग्रामों में भी आदिवासी हुंकार भरने लगी है जैसा कि बुंदेलखंड की रहली विधानसभा के ग्राम कडता में विश्व आदिवासी दिवस पर आदिवासी समाज के जनप्रतिनिधियों और मेधावी विद्यार्थियों का सम्मान समारोह आयोजित किया गया जिसमें आदिवासी समाज द्वारा रैली भी निकाली गई और रैली के दौरान हाथ में तिरंगा झंडा और राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू के चित्र लिए नारे लगाते हुए चल रहे थे। कार्यक्रम में रहली क्षेत्र के पंच सरपंच जनपद सदस्य और पार्षदों को मेधावी छात्र छात्राओं को सम्मानित किया गया।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए युवा भाजपा नेता अभिषेक भार्गव ने कहा करता में विशाल आदिवासी समाज का महासम्मेलन आयोजित किया जाएगा। महारानी वीरांगना दुर्गावती की जिले में केवल करता में ही सबसे बड़ी मूर्ति स्थापित है और कड़ता में आदिवासी समाज का संग्रहालय भी बनाया जाएगा। आदिवासी समाज की धरोहर के रूप में उसकी पहचान रहेगी।
बहरहाल, प्रदेश में 47 विधानसभा की सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं और करीब 35 सीटें और ऐसी है जहां आदिवासी मतदाताओं की संख्या 50000 से ऊपर निर्णायक रूप में है। इस तरह लगभग 82 सीटों पर आदिवासी मतदाता निर्णायक रूप में हैं। इसी कारण स्वर्ग पर गांव प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के राजनैतिक रणनीति कारों की नजर है भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बना कर आदिवासी क्षेत्रों में प्रचारित किया और अब प्रदेश में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस वर्ग की हित की योजनाओं की घोषणा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। संगठन भी अपनी तरफ से इस वर्ग को जोड़ने की पूरी कोशिश कर रहा है।
दूसरी तरफ प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेसी भी लगातार आदिवासी वर्ग को अपनी ओर वापस करने में जुटी है। 2018 के विधानसभा के आम चुनाव में किसी वर्ग की दम पर कांग्रेस में 15 वर्षों के बाद प्रदेश में सरकार बनाई थी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ पिछले 40 वर्षों से छिंदवाड़ा सीट से चुनाव लड़ते हैं वह आदिवासी बाहुल्य इलाका है। इस कारण भी वे आदिवासियों की ताकत हो भली भांति जानते हैं और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और जयस के माध्यम से इस वर्ग में सेंध लगाते आ रहे हैं। डेढ़ वर्ष के कार्यकाल में आदिवासी दिवस पर प्रदेश में अवकाश की घोषणा करके कमलनाथ ने अपनी प्राथमिकता बता दी थी। अभी भी प्रदेश स्तर पर उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से आदिवासियों के बीच जाने और उनसे संबंध स्थापित करने की बार-बार बात कही है। स्थानीय स्तर पर भले ही कांग्रेसी इस वर्ग का विश्वास हासिल नहीं कर पा रहे हो लेकिन कमलनाथ का इस वर्ग पर दखल पिछले कुछ वर्षों से कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है और उसी की दम पर वे 2023 में एक बार फिर सरकार बनाने का सपना संजोए हुए हैं।
कुल मिलाकर प्रदेश की राजनीति में आदिवासी आगाज चारों तरफ से हो चुका है। 2023 में इसका अंजाम क्या होगा यह तो परिणाम बताएंगे लेकिन अभी एक डेढ़ साल इसी वर्ग को फोकस करते हुए राजनैतिक दल अपनी रणनीति बनाएंगे और जो जमीनी नेता है इस वर्ग में बहुत पहले से जमावट जमाए हुए हैं।
देवदत्त दुबे -भोपाल, मध्यप्रदेश
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