लोकसभा चुनाव से पहले देश में विकास की ऐसी बरसात हो रही है कि पिछड़ापन लगता है कहीं बचेगा ही नहीं। हम कल की ही बात करें तो एक ही दिन में सरकार ने 6 नए हवाई अड्डे ,छह नए टर्मिनल का लोकार्पण करने के साथ ही हजारों करोड़ रूपये की नयी योजनाओं की आधारशिलाएं रख दीं। देश में ये विकास राजनीति के पश्चिमी विक्षोभ का नतीजा है। न चुनाव होते और न देश में विकास की झड़ी लगती । लगता है कि सरकार विकास की मेघमाला को चुनावों के लिए ही रोककर रखती है। इस हवा-हवाई विकास की हकीकत क्या है ये समझना जरूरी है।चुनावों से पहले देश में विकास की बरसात हमेशा से होती आई है किन्तु भाजपा की सिंगल और डबल इंजन की सरकारों ने 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के लिए 370 और एनडीए गठबंधन के लिए 400 सीटें जीतने के आसमानी लक्ष्य को पाने के लिए विकास की बरसातों के सभी पुराने कीर्तिमान भंग कर दिए हैं। मौजूदा सरकार को कीर्तिमान भंग करने में महारत हासिल है । सरजू तट पर दीपक जलाने से लेकर ,सरकारें खरीदने,गिराने और विकास की बरसातें करने तक के सभी पुराने कीर्तिमान हमारी इसी लोकप्रिय सरकार ने भंग किये हैं। कांग्रेस की अव्वल तो सरकारें कम हैं और जो भी हैं वे भी नए कीर्तिमान गढ़ने में भाजपा से कोसों पीछे हैं।देश की जनता को हैरानी होती है की 74 साल के प्रधानमंत्री में इतनी ऊर्जा कहाँ से आती है जो वे उत्तर -पूर्व से लेकर पूरे देश में चुनावी दौरे ऐसे कर रहे हैं जैसे की कोई तूफ़ान खड़ा करना कहते हों। प्रधानमंत्री ने 10 मार्च को ही 15 हवाई इंफ़्रा स्ट्रक्चर का लोकार्पण किया। इनमें छह नए हवाई अड्डे शामिल हैं। प्रधानमंत्री जी भले ही मणिपुर नहीं गए हों लेकिन वे उन सभी हिस्सों में गए जहाँ से सीटें मिल सकती है। वे बिहार गए,बंगाल गए,यूपी तो जाते ही रहते हैं। एमपी गए ,महाराष्ट्र गए और जहाँ नहीं जा पाए वहां उन्होंने अपनी आभासी उपस्थिति [वर्चुअल ] से लोगों को नवाजा। अतीत में ये क्षमता सुर और असुर दोनों पक्षों के पास थी। अब कलिकाल में ये मायावी शक्ति केवल सत्ता पक्ष के पास बची है।
दो-दो इंजन लगाकर सरकारें चलाने वाली भाजपा ने जान और मान लिया है कि जुमलेबाजी में विकास का छोंक लगाए बिना बात बनने वाली नहीं है । देश को आप चाहे हिन्दू राष्ट्र बनाइये , चाहे अहिन्दू राष्ट्र बिना विकास के बात बनने वाली नहीं है। किसी भी देश में विकास पहली जरूरत होती है । जहाँ विकास को तरजीह नहीं दी जाती वहां बारूद ही बारूद बिछी दिखाई देती है। आसपास नजरें उठाकर देख लीजिये ,हकीकत समझ में आ जाएगी। राष्ट्र को राष्ट्र बनाये रखने के लिए सबसे पहले खुद को उदार बनाना जरूरी है। आप जुमलों से खुद को बिजूका बनाकर लक्ष्य हासिल नहीं कर सकते। और यदि कर रहे हैं तो ये आपका सौभाग्य है।देश का विपक्ष और एक बड़ा वर्ग प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को खलनायक मानता है ,किन्तु मै ऐसा नहीं मानता,क्योंकि खुद मोदी जी ऐसा नहीं मानते । वे भले ही देश की 31 फीसदी जनता द्वारा चुनी गयी भाजपा के नेता हैं लेकिन हैं तो देश के प्रधानमंत्री ,इसलिए मै उन्हें खलनायक नहीं मान सकता भले ही वे खलनायकों की तरह व्यवहार करते नजर आते हों। खलनायक के भीतर भी तो एक नायक छिपा है। नायक,खलनायक और अधिनायक में जो गैर जरूरी शब्द हैं उन्हें यदि अलग कर दिया जाये तो शेष नायक ही बचता है। देश पर विकास की बरसात आखिर मोदी जी से ,भाजपा से कोई अंतर्निहित नायक ही करा रहा है।समस्या ये है कि हम या हमारी राजनीति कभी ये सवाल नहीं करती कि सरकारें विकास को एक सतत प्रक्रिया बनाये रखने के बजाय उसका इस्तेमाल एक चारे के रूप में क्यों करतीं है। सरकारों को विकास की याद ऍन चुनावों के समय ही क्यों आती है ? क्या वे चुनावों के लिए विकास को अवरुद्ध करने का अपराध नहीं करतीं ? विकास को एक जरूरत के बजाय राजनीतिक हथियार क्यों बना दिया गया है ? क्या इससे मुक्ति आवश्यक नहीं है ,या सभी राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे पर कोई दुरभि संधि कर ली है ?परिश्रमी,दृढ प्रतिज्ञ और तपोनिष्ठ प्रधानमंत्री जी का दुर्भाग्य ये है कि अब उनके द्वारा एक दशक में बनाये गए हवामहल की ईंटे खिसकने लगीं है। अभी तक उनके द्वारा खोले गए शरणार्थी शिविरों में कांग्रेस और दीगर दलों के शरणार्थी नेता शरण ले रहे थे किन्तु अब उनकी पार्टी से भी लोग पलायन कर उनकी प्रतिद्वंदी कांग्रेस के शरणार्थी शिविरों में जाते दिखाई देने लगे है। हरियाणा से पहले मध्यप्रदेश में इसकी शुरुवात हुई थी । अब पूरे देश के अलग-अलग हिस्सों से प्रधानमंत्री के अधिनायकत्व से खिन्न लोग भाग रहे है। या बगावत कर रहे हैं। चूंकि क़ानून होने के बाद भी अब दल-बदल कोई अपराध या अनैतिक कृत्य नहीं है इसलिए सभी के लिए ये क्षम्य है। भाजपा में जिस तरह से कांग्रेस का काठ-कबाड़ भरा गया है उससे भाजपा के आम कार्यकर्ता में भारी असंतोष है ,जो विकास की बेमौसम बरसात पर भारी पड़ सकता है।
चूंकि हम भाजपा के भाग्यविधाताओं की मजबूरी को समझते हैं इसलिए हमारी उनके प्रति सहानुभूति है। हमारी सहानुभूति को आप अन्यथा मत लीजिये। देश को तोड़ना और जोड़ना दो अलगअलग काम हैं जो राजनीतिक दल अपनी-अपनी समझ और सामर्थ्य से कर रहे हैं जनता धर्म के नशे में है लेकिन धीरे-धीरे धर्म का नशा उतर रहा है। उम्मीद की जाना चाहिए कि नशामुक्त अवाम अपने भविष्य का फैसला समझदारी से करेगी और नहीं करेगी तो खुद ही भुगतेगी। इसमने हमारा आपका कोई कसूर नहीं होगा। हम और आप मिलाकर अपनी क्षमता से नशे की गिरफ्त में आयु अवाम को झकझोरने का यत्न,प्रयत्न लगातार कर रहे हैं। ये जोखिम का काम है फिर भी हमने इसे छोड़ा नहीं है । कहते हैं कि जब कोई खलनायक अपनी खलवृत्ति को नहीं छोड़ता तो किसी सज्जन व्यक्ति को भी अपनी सज्जनता का त्याग नहीं करना चाहिए।कुल जमा बात ये है कि आप विकास की बेमौसम बरसात के आनंद लीजिये लेकिन ठीक वैसे ही जैसे एक पर्यटक लेता है । हकीकत समझिये कि ये विकास बरसाती ही है ,टिकाऊ नहीं। ये एक चारा है जो मतदाता नाम की मछली को फ़साने के लिए कांटेनुमा वंशी के नुकीले सिरे पर लगाईं जाती है। चारे के लालच में यदि आपने बरसाती विकास के लिए अपना मुंह खोला तो आपका शिकार होना बहुत स्वाभाविक है। बरसाती विकास उस मांजे की तरह है जो किसी भी मछली के लिए घातक होता है।
@ राकेश अचल
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