मुद्दा विहीन लोकसभा चुनाव में मजा ही नहीं आ रहा था,लेकिन राजद के तेजस्वी की मछली ने भाजपा को बीन बजाने पर मजबूर कर दिया। भाजपा भी अपने असल मुद्दों से भटककर तेजस्वी की मछली के भभके में आ गयी है। अब साफ़ हो गया है कि भाजपा का चुनावी एजेंडा विकास नहीं बल्कि आपका खान-पान और वेश-भूषा भी है। भाजपा आपके खाने के मेन्यू तय करना चाहती है लेकिन तेजस्वी ने इसे नकार दिया है। तेजस्वी ने मछली खाते हुए अपनी एक तस्वीर पोस्ट कर भाजपा को चिढ़ाया और भाजपा चिढ भी गयी।अठारहवीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनाव पहले के तमाम चुनावों से भिन्न हैं। भिन्न इस मायने में कि इस चुनाव में देश की जनता के सरोकारों से जुड़ा कोई मुद्दा विमर्श में नहीं है । सत्तारूढ़ दल बार-बार इस आम चुनाव को भी घुमा-फिरकर राम मंदिर और धर्म पर केंद्रित करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन बिहार के युवा नेता ने भाजपा के एजेंडे को मोड़ दिया है। भाजपा अपने तरकस के तमाम तीर विपक्ष पर चला चुकी है अब उसके पास केवल तुक्के बच्चे हैं ,और ये तुक्के भी अब ज्यादा असर नहीं दिखा पा रहे हैं।आपको याद होगा कि अब तक भाजपा विपक्ष को अपने पाले में लेकर खेलने के लिए विवश करती रही है ,किन्तु अब स्थिति उलट है। भाजपा को विपक्ष के पाले में आकर खेलना पड़ रहा है। अपनी याददास्त पर जोर डालिये तो आप पाएंगे कि पिछले महीनों में राहुल गांधी सावन में मटन बनाते नजर आए थे तो इसके फोटो-वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए थे। अब नवरात्रि के पहले दिन तेजस्वी यादव मछली खाने का वीडियो डालकर चुनाव को मुगलई बना दिया। प्रधानमंत्री जम्मू के उधमपुर से सावन और नवरात्रि में मटन-मछली के वीडियो से मुगल सोच के तहत चिढ़ाने का आरोप परोक्ष रूप से लालू परिवार और राहुल गांधी पर लगा दिया। जबकि ये चुनाव का मुद्दा है ही नहीं।
सब जानते हैं कि भारत एक हिंदू बहुसंख्यक देश है और भारत में शाकाहार के मुकाबले मांसाहार करने वाले भी बहुसंख्यक हैं। यानी नॉनवेज खाने वालों की संख्या ज्यादा है। 140 करोड़ की आबादी वाले भारत में 57 प्रतिशत पुरुष और 45 फीसदी महिलाएं नॉनवेज खाते हैं. ऐसे में सवाल उठाते हैं कि क्या किसी का मछली खाना राजनीतिक मुद्दा हो सकता है ? क्या मोदी राज में खाने की आदत से धर्म और इंसान पहचाना जाएगा ? क्या हिंदू सिर्फ शाकाहारी होते हैं और जो नॉनवेज खा लेते हैं वो विधर्मी हो जाते हैं ? अगर सावन या नवरात्रि में कोई नॉनवेज खाता है तो क्या गलत है ? क्या सावन या नवरात्रि में नॉनवेज खाकर वीडियो बनाने या करने से दूसरों की भावना को चोट पहुंचती है और क्या सावन-नवरात्र में किसी के नॉनवेज खाने का वीडियो डालने से अल्पसंख्यक वोटर वोट दे देते हैं?प्रधानमंत्री जी और उनकी टीम शायद भारत की विविधता से वाकिफ नहीं है। उसे मानव विकास के इतिहास का भी पर्यापर ज्ञान नहीं है। वे जिस संस्कृति के लिए लड़ रहे हैं उस सनातन को भी शायद भली-भांति जानते नहीं है। भारत में एक बड़े हिस्से में मांसाहार का धर्म से कोई लेना देना नहीं है। बिहार ही क्यों बंगाल ,ओडिशा,केरल ,तमिलनाडु जैसे अनेक राज्यों में मांसाहार हिन्दू भी करते हैं और गैर हिन्दू भी। लेकिन अब खान-पान भी एक चुनावी मुद्दा है। खुद भाजपा कि कंगना हिमाचल में अपने खानपान को लेकर विवादों में घिरी हुई है। कांग्रेसियों ने उसे गौ मांस खाने वाला बताकर वोट मांगने की घ्रणित कोशिश की है।लोकसभा चुनाव में इस तरह के आरोप -प्रत्यारोप को लेकर केंचुआ कानों में रुई डालकर बैठा है । केंचुए की हिम्मत नहीं कि वो देश केप्रधानमंत्री को भी वैसी ही एडवाइजरी जारी करे जैसी कि उसने चुनावों से पहले राहुल गांधी के लिए जारी की थी। जबकि यही मौक़ा है जब केंचुआ अपने भूमिनाग होने को दर्शा सकता है। केंचुआ चाहे तो चुनावों को आदर्श बना दे और न चाहे तो चुनावों को दूषित भी करा दे। अभी केंचुआ एक कठपुतली की तरह काम कर रहा है। खास तौर पर ताजा मछली काण्ड को लेकर। किसी के खान-पान की निंदा करना ,उसे धर्म से जोड़ना कदाचरण नहीं तो और क्या है। केंचए को तेजस्वी के साथ ही कंगना की भी मदद करना चाहिए।
मजे की बात ये है कि खान-पान से मोदी जी की तुलना भी की जा रही है । राजस्थान के बाड़मेर-जैसलमेर से भाजपा प्रत्याशी ममता विश्नोई ने एक नया नारा दिया है। वे कहती हैं -दाल-बाटी चूरमा,मोदी देश के सूरमा । कहने को ये एक तुकबंदी है ,लेकिन गंदी है । कोई हमारे देश के भाग्य विधाता को दाल-बाटी और चूरमा कैसे कह सकता है ,लेकिन ममता ने कहा और मोदी जी इसे सुनकर अभिभूत भी हुए। मोदी जी ने जिस तरह से ममता की भाटगीरी को सहजता से लिया उसी तरह यदि वे तेजस्वी की मछली को भी सहजता से लेते तो उनका गांभीर्य और बढ़ जाता ,लेकिन अधजल गगरी को तो छलकना ही है ,सो वो छलकी। मोदी जी अपने आपको बोलने से नहीं रोक सके। मोदी जी की टीप से बिहार में भाजपा का उद्धार होने वाला नहीं है। देश की राजनीति लोकसभा चुनाव का सातवां चरण शुरू होते-होते कितने रंग बदलेगी ,कहना कठिन है ,फिर भी अच्छी बात ये है कि राजनीति का रंग बदल रहा है। एक तरफ चुनाव मैदान में रथी हैं तो दूसरी तरफ बिरथी भी हैं। इस चुनाव में अपने मूल दल को छोड़कर भाजपा में शामिल हुए बिभीषन अधीर हैं ,अधीर रंजन चौधरी से ज्यादा। सबको ऊँट की करवट की फिक्र है।
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