राजनीतिनामा

संतों और नेताओं की मिलीभगत ?

भाजपा के अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा के बयान पर हमारे अखबारों और टीवी चैनलों ने कोई ध्यान नहीं दिया। नड्डा सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष हैं और जिस मुद्दे पर उन्होंने भाजपा को संबोधित किया है, वह मुद्दा उन सब मुद्दों से ज्यादा महत्वपूर्ण है, जो देश के अन्य नेतागण उठा रहे हैं। वह मुद्दा है- हिंदू राष्ट्र, हिंदू-मुस्लिम, हिंदू धर्मगुरूओं जैसे मुद्दों पर बयान आदि का!कई अन्य मुद्दे जैसे अडानी, बीबीसी, शिवसेना, त्रिपुरा का चुनाव आदि पर भी आजकल जमकर तू-तू–मैं-मैं का दौर चल रहा है लेकिन ये सब तात्कालिक मुद्दे हैं लेकिन जिन मुद्दों की तरफ भाजपा अध्यक्ष नड्डा ने इशारा किया है, उनका भारत के वर्तमान से ही नहीं, भविष्य से भी गहरा संबंध है। यदि भारत में सांप्रदायिक विद्वेष फैल गया तो 1947 में इसके सिर्फ दो टुकड़े हुए थे, अब इसके सौ टुकड़े हो जाएंगे। इसके शहर-शहर, गांव-गांव और मोहल्ले-मोहल्ले टूटे हुए दिखाई पड़ेंगे।हमारे कुछ युवा लोग, जो कि पर्याप्त पढ़े-लिखे नहीं हैं और जिन्हें इतिहास का ज्ञान भी नहीं है, वे लाखों लोगों को अपना ज्ञान बांटने पर उतारू हैं। लोगों ने उन्हें ‘बाबा’ बना दिया है। उन्हें खुद पता नहीं है कि वे अपने भक्तों से जो कुछ कह रहे हैं, उसका अर्थ क्या है? यह हो सकता है कि वे किसी का भी बुरा न चाहते हों लेकिन उनके कथन से जो ध्वनि निकलती है, वह देश में संकीर्ण सांप्रदायिकता की आग फैला सकती है। जो भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का दावा करते हैं, उन बाबाओं से आप पूछें कि आपको ‘हिंदू’ शब्द की उत्पत्ति और अर्थ का भी कुछ ज्ञान है तो आप उन्हें शून्य का अंक दे देंगे।

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हमारे नेताओं का भी यही हाल है। आजकल हमारे साधु और नेता लोग इतने अधिक नौटंकीप्रिय हो गए हैं कि वे एक-दूसरे की शरण में सहज भाव से समर्पित हो जाते हैं। इसे ही संस्कृत में ‘अहो रूपम्, अहो ध्वनि’ का भाव कहते हैं याने गधा ऊँट से कहता है कि वाह! क्या सुंदर रूप है, तेरा? और ऊँट गधे से कहता है कि ‘क्या मधुर है, तेरी वाणी? इसी घालमेल के विरूद्ध नड्डा ने अपने सांसदों को चेताया है।अपने आप को परम पूज्य, महामहिम और महर्षि कहलवाने वाले भगवाधारियों को मैंने कई भ्रष्ट नेताओं के चरण-चुंबन करते हुए देखा है और ऐसे संत जो बलात्कार, व्यभिचार, ठगी, हत्या आदि कुकर्मों के कारण आजकल जेलों में सड़ रहे हैं, उन संतों के आगे दुम हिलाते हुए नेताओं को किसने नहीं देखा हे? संत और नेता, दोनों ही अपनी दुकानें चलाने के लिए अघोषित गठजोड़ में बंधे रहते हैं।यही गठजोड़ जरूरत पड़ने पर सांप्रदायिकता, भविष्यवाणियों, चमत्कारों का जाल बिछाता है और साधारण लोग इस जाल में फंस जाते हैं। भाजपा के अध्यक्ष ने अपने सांसदों को जो सबक दिया है, वह सभी पार्टियों के नेताओं पर भी लागू होता है। आजकल बेसिर-पैर की बात करनेवाले बाबाओं की खुशामद में किस पार्टी के नेता शीर्षासन करते हुए दिखाई नहीं पड़ रहे हैं? चुनावों का दौर शुरु हो गया है। इसीलिए थोक वोट पाने के लिए जो भी तिकड़म मुफीद हो, नेता लोग उसे आजमाने लगते हैं। भाजपा अध्यक्ष ने अपने सांसदों को जो चेतावनी इस दौर में दी है, उसके लिए वे सराहना के पात्र हैं।

आलेख श्री वेद प्रताप वैदिक जी, वरिष्ठ पत्रकार ,नई दिल्ली।

साभार राष्ट्रीय दैनिक ” नया इंडिया ” समाचार पत्र  ।

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