मध्य प्रदेश में विलीनीकरण के समय विंध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री विद्या चरण शुक्ला साहित्यकार के अलावा पत्रकार भी थे। मुख्यमंत्री रहते हुए वे रीवा से एक साप्ताहिक समाचार पत्र “भास्कर” भी प्रकाशित करते थे। सन 1956 के बाद जब वे मध्यप्रदेश में मंत्री बने तब उन्होंने यह टाइटल द्वारका प्रसाद अग्रवाल को दे दिया आज यह टाइटल दैनिक भास्कर के रूप में पूरे देश में हिंदी पत्रकारिता का पुरोधा बन नाम कमा रहा है। शुक्ल नितांत शांत और धीर गंभीर व्यक्ति थे वे जब भोपाल आए तो उन्हें यहां का पानी रास ना आया लिहाजा उनके लिए पीने का पानी हर 2 दिन में नर्मदा नदी से लाया जाता था नर्मदा मैया संभवत उनके उत्तर को स्वस्थ एवं संरक्षित रखी थी ऐसा उनका विश्वास था। शुक्ल जब विंध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब उनकी विधानसभा में प्रदेश के नव निर्माण की चर्चा के दौरान अगस्त 1956 को एक दुर्भाग्य घटना हुई जो संभवत भारतीय संसदीय इतिहास की इस तरह की घटनाओं की शुरुआत थी।
उस समय विंध्यप्रदेश में समाजवादी आंदोलन जोरों पर था शिक्षा मंत्री महेंद्र मानव राज्य विलीनीकरण पर वक्तव्य दे रहे थे तो उन पर एक विधायक ने जूतों से हमला कर दिया इसके बाद कुछ लोगों की भीड़ विधानसभा में घुस गई और महेंद्र मानव की पिटाई करने लगी कहते हैं कि लोग इस बात से नाराज थे कि मानव ने शिक्षा मंत्री होते हुए स्कूल के प्राचार्य को पर उनकी फोटो खरीद कर प्रिंसिपल ऑफिस में लगाने का दबाव डाला था जब इस बात की खबर नेहरू तक पहुंची तो वह बहुत नाराज हुए विंध्य में उन दिनों समाजवादी आंदोलन जोरों पर था और कई नेताओं की जासूसी पुलिस करती थी। नए मध्यप्रेश में शंभूनाथ शुक्ला को वित्त मंत्री बनाया गया 1967 तक रविशंकर शुक्ल से लेकर कैलाश नाथ काटजू ,भगवन राव मंडलोई, द्वारका प्रसाद मिश्र, ,मंत्रिमंडल में रहे। कैबिनेट में उनका स्थान हमेशा तीसरे कर्म पर बना रहा । उन्हें प्रदेश की राजनीति से बाहर करने के लिए लोकसभा का टिकट दिल्ली भेज दिया। नए राज्य में विलय के पूर्व भोपाल के प्रधानमंत्री डॉ शंकर दयाल शर्मा थे उन दिनों में मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री कहा जाता था। शर्मा समकालीन राजनीति में सबसे ज्यादा पढ़े लिखे थे लखनऊ विश्वविद्यालय से रीडर के पद से इस्तीफा देकर जब भोपाल के प्रधानमंत्री बने तब उनकी उम्र मात्र 34 वर्ष थी। हिंदी ,अंग्रेजी में पोस्टग्रेजुएट ,वकालत में एल एल एम् , इंग्लैंड से पिएचडी उनके नाम से जुड़े थे
लखनऊ में आचार्य नरेंद्र देव नेताओं के संपर्क में आने के बाद वे जवाहरलाल नेहरू की नजर में आए भोपाल से लोकसभा में लाने की तैयारी की गई 1952 के आम चुनावों के दौरान भोपाल से 30 विधायक और एक लोकसभा सदस्य चुने जाते थे कांग्रेसी आलाकमान ने लोकसभा के लिए डॉ शर्मा का नाम तय क्र दिया था और भोपाल विधानसभा में नेतृत्व के लिए मास्टर लाल सिंह का नाम था लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था मास्टर लाल से जब चुनाव प्रचार से लौट रहे थे तो उनकी जीत लालघाटी पर दुर्घटनाग्रस्त हो गई जिसमें उनका निधन हो गया कांग्रेसी उम्मीदवारों की सूची बदल दी गयी तथा डॉ शर्मा को मास्टर लाल सिंह के स्थान पर भोपाल की बागडोर थमा दी गयी ।
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