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मेरी शर्म ,मेरा ग्वालियर

आज देश के सर्वाधिक गर्म अडाणी मुद्दे को छोड़कर मै अपने शहर ग्वालियर को लेकर लिख रहा हूँ. ऐतिहासिक शहर ग्वालियर में स्मार्टसिटी परियोजना और नगर निगम ने मिलजुलकर जगह-जगह ‘ मेरा गौरव,मेरा ग्वालियर ‘ के बोर्ड लगाए हैं लेकिन हकीकत में शहर की दुर्दशा देखकर ‘मेरा ग्वालियर’मेरी शर्म’ में तब्दील हो चुका है . ग्वालियर में इस समय गर्व करने लायक एक भी चिन्ह नहीं है .पूरा शहर एक कूड़ेदान की तरह नजर आ रहा है. ग्वालियर की मौजूदा दशा को देखकर शायद ही कोई यकीन करे की इस शहर से माननीय नरेंद्र मोदी जी के मंत्रिमंडल में ग्वालियर से दो सदस्य हैं .विकास की दौड़ में पिछड़े ग्वालियर में प्रवेश करते ही आपको लगेगा की आप किसी बड़े गांव में आ गए हैं .ग्वालियर धूल-धूसरित और अराजक हो चुका है .
ग्वालियर शहर को गर्व करने लायक बनाने का दायित्व नगर निगम,ग्वालियर विकास प्राधिकरण और स्मार्ट सिटी परियोजना का है ,लेकिन ये तीनों संस्थाएं अपना काम करने में नाकाम रहीं हैं. तींनों के बीच न कोई समन्वय है और न संवाद .सब सपनी-अपनी ढपली बजा रहे हैं .नगर निगम शहर को साफ़-सुथरा रखने में नाकाम रहा है. आजतक शहर में प्रभावी कचरा संग्रहण व्यवस्था नहीं है. शहर के प्रमुख बाजारों तक में कचरे के ढेर लगे हैं ,गली-मोहल्लों की तो हालात अकल्पनीय रूप से खराब है .
शहर के बीच कथित विकास कार्यों के लिए की गयी खुदाई के कारण चलना दूभर है. सड़कों पर रेत,मिटटी,और मलबे के ढेर इतनी बड़ी तादाद में हैं की सांस लेना मुश्किल है .अगर आप ग्वालियर की हवा की जाँच रिपोर्ट पढ़ लें तो आपके होश फाख्ता हो जायेंगे .ग्वालियर में रहकर अगर आप सांस ले पा रहे हैं तो ऊपर वाले की मेहरबानी है अन्यथा वायु प्रदूषण इतना है की श्वसन तंत्र की तमाम बीमारियां आपकी मेहमान बन ही जाती हैं .
                                इस ऐतिहासिक शहर की सबसे बड़ी समस्या यदि वायु प्रदूषण है तो ,अराजक यातायात व्यवस्था भी कम दमघोंटू नहीं है .एक भी स्वचलित सिग्नल वैज्ञानिक तरिके से काम नहीं करता .इंजीनियरिंग के हिसाब से सिग्नल पर रुकने और आगे बढ़ने के समय में को तालमेल नहीं है फलस्वरूप पूरे शहर में जाम की स्थितियां बनी हुई हैं .यदि यातायात सिग्नल आपको 60 सेकेंड रोकता है तो 25 सेकेण्ड में निकलने के लिए कहता है ,इसलिए कभी भी ,किसी भी दिशा का यातायात निर्बाध नहीं हो पाता.लेकिन आप शिकायत करने कहाँ जाएँ ? कोई सुनने वाला ही नहीं है .शहर के सभी स्थानीय निकायों ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के महल और सरकारी बंगले तक की व्यवस्था को ही चाक-चौबंद कर समझ लिया है की पूरा शहर मजे में है .यातायात पुलिस केवल चालान वसूल करने के लिए है. शहर की सभी आम सड़कों पर दो पहिया और छोटे चार पहिया वाहनों की तो छोड़िये यात्री और स्कूल बसों की पार्किंग आम है,कोई रोकने वाला नहीं,कोई टोकने वाला नहीं .प्रशासन ने पूरे शहर को भगवान भरोसे छोड़ दिया है .ग्वालीऔर शहर स्मारकों का शहर है लेकिन ग्वालियर शहर के स्मारकों की दशा अत्यंत सोचनीय है. शहर के सारे बाग़-बागीचे उजाड़ पड़े हैं. शहर में डिवाइडरों पर बिना सोचे समझे पौधे लगा दिए गए हैं जो शहर की सुंदरता में चार चाँद लगाने के बजाय उसे और कुरूप कर रहे हैं .शहर का एक भी चौराहा निर्बाध ,प्रदूषणमुक्त नहीं है. शहर में प्रवेश करते ही उबकाई आने लगती है .शहर का एक भी फुटपाथ अतिक्रमण से मुक्त नहीं है. यहां तक की शहर के हृदय स्थल महाराज बाड़ा पर भी फुटपाथ का अतापता नहीं है .फुटपाथों में न एक रूपता है और न समानता .कहीं ये चार फीट चौड़ा है तो कहीं एक फीट चौड़ा .
                               ग्वालियर के जन प्रतिनिधियों के निकम्मेपन की वजह से शहर में आज तक सिटी बीएस सेवा शुरू नहीं हो सकी.सरकार ने तमाम सरकारी दफ्तरों को शहर के बाहर स्थानांतरित कर दिया लेकिन वहां तक आवागमन का स्थाई इंतजाम नहीं किया .सिटी बसों के बिना सैकड़ों स्टापेज बना दिए अब वहां कचराघर बन गए हैं,क्योंकि बसें तो आती ही नहीं .स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत बनाये गए साइकल स्टेण्ड वीरान पड़े हैं,साइकलों का आता -पता नहीं है .
ग्वालियर के ऐतिहासिक दुर्ग पर जाने के लिए रोपवे बनाने की परियोजना राजहठ की वजह से बीते तीन दशक से फाइलों में बंद पड़ी है ,पर्यटक चाहकर भी दुर्ग पर नहीं जा सकता .इस परियोजना के लिए नगर निगम अनेक कोशिशें कर चुकी है किन्तु स्थानीय महाराज और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया इस रोपवे को बनने ही नहीं दे रहे क्योंकि जिस जगह रोपवे का स्टेशन बनाया जाना है वो जगह सिंधिया स्कूल के हिस्से में आती है.सवाल है कि शहर के लिए त्याग कौन करे ?
शहर के एक भी सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थान के पास पार्किंग की समुचित व्यवस्था नहीं है .आप शहर के किसी बाजार में अपना वाहन लेकर जा नहीं सकते और चले जाएँ तो पार्किंग के लिए कहीं कोई जगह नहीं है.शहर के विकास का न कोई मास्टर प्लान है और न नागरिक सुविधाएं. आप जहां चाहें वहां आवासीय बस्तियां बना लीजिये ,सीवर ,सड़क, टेलीफोन,रसोई गैस की सुविधाएं वहां रो-धोकर बाद में कर ही दी जाएँगी .प्रकृतिकपहड़ियों का शहर ग्वालियर इन पहाड़ियों कि वजह से खूबसूरत होने के बजाय और बाद सूरत हो गया है क्योंकि इन पर घनघोर तरीके से अतिक्रमण कर लिया गया है,या करा दिया गया है जबकि यदि प्रशासन कोई दूरगामी योजना बनाकर इन पहाड़ियों पर ही आवासीय बस्तियां बसाती तो ये शहर अमेरिका या योरोप के किसी भी पुराने शहर से मुकाबला का सकता था .शहर को पहचान देने वाले पुरानी स्थापत्य कला की प्रतिनिधि इमारतें एक-एककर तोड़ी जा चुकी हैं,स्थानीय निकाय किसी को भी तोड़ने से नहीं बचा सका ,क्योंकि न स्थानीय निकाय के पास इन्हें रोकने के अधिकार हैं और न इच्छाशक्ति .ग्वालियर की पहचान जिस ग्वालियर मेले से थी उसे हाट में तब्दील कर दिया गया है .मेले की जमीन पर विकास होने के बजाय वहां मैरिज गार्डन कुकुरमुत्तों की तरह उगा दिए गए हैं .नगर विकास में सौंदर्यबोध को तो स्थान दिया ही नहीं गया है .बहरहाल ग्वालियर गर्व का नहीं शर्म का शहर बन चुका है ,कोई माने तो ठीक और न माने तो भी ठीक .
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