केंचुआ बिना रीढ़ का जीव होता है. केंचुए में रीढ़ की हड्डी विकसित होने की कल्पना करना ही बेकार है .केंचुआ वक्र चलता है,गुलाटें खाता है ,और हमेशा दबाया,कुचला जाता है लेकिन नर्तन करता है अदृश्य इशारों पर .केंचुआ यानि केंद्रीय चुनाव आयोग ने शिवसेना के बारे में ताजा फैसला देकर यही प्रमाणित किया है ,कि वो केंद्र के इशारों पर नाच रहा है. शिवसेना का मामला देश की सर्वोच्च अदालत के सामने लंबित है और उसपर शीघ्र सुनवाई होना है ,ऐसे में केंचुआ को इस मामले में फैसला सुनाने की कोई जरूरत नहीं थी,विचाराधीन मामलों में प्रतीक्षा ही एकमात्र विकल्प होता है ,किन्तु इन्तजार कौन करे ? भाजपा के साथ सत्ता तक पहुंचे एकनाथ शिंदे को शिवसेना का असली मालिक बनाने की जल्दी शिंदे से ज्यादा भाजपा को थी ,और उससे ज्यादा जल्दी शायद केंचुआ को थी . भाजपा ने एक जमाने में हिंदुत्व के नाम पर शिवसेना की बांह पकड़कर महाराष्ट्र में सियासत शुरू की थी .उसी भाजपा ने सत्ता में बने रहने के लिए शिवसेना को दो फाड़ कर दिया क्योंकि असली शिवसेना के उद्धव ठाकरे भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस,एनसीपी के साथ चले गए थे .भाजपा खुद विश्वासघात कर सकती है किन्तु किसी और का विश्वासघात उससे बर्दास्त नहीं होता .इसलिए भाजपा ने बाल ठाकरे की शिवसेना में जामुन डालकर उसे दोफाड़ कर दिया .भाजपा ने एनसीपी को भी दोफाड़ करने की नाकाम कोशिश की थी ,लेकिन कामयाब नहीं हो पायी. ऐंसी नेता शरद पंवार ने अपने भतीजे अजित को बिभीषण बनने से समय रहते रोक लिया था . भाजपा बिभीषणों की खोज में सिद्धहस्त है .मध्यप्रदेश समेत अनेक राज्यों में भाजपा में बिभीषण खोजे और उनके सहारे सत्ता तक पहुँचने का रास्ता बनाया .महाराष्ट्र में ये भूमिका एकनाथ शिंदे ने निभाई. मध्यप्रदेश में ये काम ज्योतिरादित्य सिंधिया कर चुके हैं .भाजपा के पास बिभीषणों की लम्बी फ़ौज है .बहरहाल बात थी केंचुआ की भूमिका थी .केंचुआ को शिवसेना के असली-नकली का फैसला करना था सो उसने कर दिया. अब बड़ी अदालत इस फैसले को अपनी स्वीकृति देती है या नहीं ये अलग बात है ,किन्तु तकनीकी तौर से केंचुआ का फैसला पूरी तरह से गलत और एकतरफा है ,किन्तु केंचुआ को अपनी प्रतिष्ठा की कोई चिंता नहीं है .केंचुआ अब क़ानून के इशारे पर नहीं सत्ता के इशारे पर काम करता नजर आता है. केंचुआ के फैसले से एकनाथ शिंदे से ज्यादा भाजपा खुश है।
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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एकनाथ शिंदे गुट को ‘शिवसेना’ नाम और ‘धनुष और तीर’ चिन्ह दिए जाने के चुनाव आयोग के फैसले की सराहना की. शाह ने कहा कि-‘ चुनाव आयोग ने दूध का दूध, पानी का पानी कर दिया.’ भारत के चुनाव आयोग ने शुक्रवार को आदेश दिया कि पार्टी का नाम ‘शिवसेना’ और पार्टी का प्रतीक ‘धनुष और तीर’ एकनाथ शिंदे गुट को दिया जाएगा. बिना तीर-कमान के एकनाथ शिंदे भाजपा के किसी काम के नहीं थे,इसलिए उनको ये दोनों चीजें दिलवाना भाजपा की मजबूरी थी .भाजपा ने ये कर दिखाया .अब भाजपा शिंदे और फडणवीस को साथ लेकर विधानसभा में उत्तर सकती है .केंचुआ का फैसला शिंदे को शिवसेना की कोई 350 करोड़ की सम्पत्ति का मालिक भी बनाता है .लोगों को आशंका है कि सबसे बड़ी अदालत का फैसला भी भाजपा के मनमाफिक आ सकता है ,लेकिन मै ऐसा नहीं मानता.मुझे लगता है कि सबसे बड़ी अदालत में हर कोई अब्दुल एस नजीर नहीं है .सचमुच के मीलार्ड भी हैं . दरअसल इस समय भाजपा घबड़ाई हुई है .अदाणी प्रकरण उसके पीछे भूत की तरह लगा हुआ है. संसद में भाजपा इस मामले में बगलें झांकती नजर आयी ऐसे में उसके लिए आने वाले चुनाव से पहले अपनी जमीन को मजबूत करना बहुत जरूरी हो गया है .कोई माने या न माने लेकिन पिछले कुछ दिनों में देश में मोदी-शाह की जुगल जोड़ी का तिलिस्म भी कम हुआ है .कांग्रेस की जड़ों में हर किस्म का मठ्ठा डालने के बावजूद भाजपा कांग्रेस को नेस्तनाबूद नहीं कर पायी है ,उलटे सड़क पर चलकर भाजपा ने अपने खोये हुए जनाधार को बढ़ाने की एक नाकाम सी कोशिश जरूर की है . महाराष्ट्र में शिवसेना के शिंदे गुट को तीर-कमान से लैस करने वाली भाजपा के लिए विपक्षी एकता कि खबरें भी परेशान किये हुए हैं .कभी केसीआर सामने नजर आते हैं तो कभी सुशासन बाबू यानि नीतीश कुमार .विपक्ष परस्पर एकता के लिए भार और महाराष्ट्र मॉडल पर संभावनाएं जुटाने में लगा है .संकट के समय जहाज में एक-दूसरे के दुश्मनों के एक साथ सवारी करने की लोककथा आपको याद ही होगी .आज स्थितियां ठीक वैसी ही हैं . शिवसेना के असली-नकली का फैसला न केंचुआ आकर सकता है और न देश की सबसे बड़ी अदालत,ये फैसला जनता की अदालत में ही मुमकिन है. कानूनी फैसलों से तो कांग्रेस भी अपना चुनाव चिन्ह अतीत में खो चुकी है लेकिन जब जनता ने अपना फैसला सिनाया तब वो कांग्रेस के हक में था .मुमकिन है कि महाराष्ट्र में जब चुनाव हों तो जनता का फैसला कुछ और हो ?महाराष्ट्र में भाजपा को शिवसेना की जरूरत उतनी ही है जितनी कि दाल में नमक की होती है .शिंदे साहब ये समझने में गलती कर रहे हैं ,लेकिन सत्ता का लालच ऐसी गलतियां करा ही लेता है . केंचुए के फैसले से दूध का दूध और पानी का पानी हुआ है या नहीं ये कहना जल्दबाजी है. मै माननीय केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की तरह की कोई धारणा इस बारे में नहीं रखता. मेरा स्पष्ट मानना है कि केंचुआ ने ऐतिहासिक गलती की है. केंचुआ को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इन्तजार करना चाहिए था।
श्री राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश ।
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