कलाकार

स्मृति शेष:असली स्वर कोकिला थी तबस्सुम

उपमाएं देने में गलतियां भी होती हैं और पक्षपात भी, किन्तु इससे हकीकत नहीं बदलती। संगीत की दुनिया में स्वर कोकिला स्वर्गीय लता मंगेशकर हैं, लेकिन स्वर में कोयल की जो असल कूक थी 78 साल की बेबी तबस्सुम में। मेरे संज्ञान में स्वर की चाशनी को जीवन पर्यन्त बनाए रखने वाली तबस्सुम अकेली थी। तबस्सुम मुझसे 12 साल बड़ी थी।यानि बड़ी बहन की तरह।एक जमाने में ये फर्क मां -बेटे की उम्र में भी होता था।इस लिहाज से वे मां भी थीं। लेकिन वे सबसे ज्यादा लोकप्रिय बच्चों के बीच थीं। हम जैसे बच्चों के लिए वे आज भी चहकती,कुहकती, शरारती बेबी तबस्सुम थीं। तबस्सुम का होना एक नियामत थी,अब वे नहीं हैं और उन जैसा भी दूसरा कोई नहीं। तबस्सुम तब हर दिल अजीज हो चुकी थी जब आज के शहंशाह का फिल्मी दुनिया में कोई मुकाम नहीं था। तबस्सुम ने कोई दो दर्जन फिल्मों में काम किया और संयोग से उनकी लगभग हर फिल्म मैंने देखी।वे जितनी भी देर पर्दे पर रहती थीं, किसी दूसरे चेहरे पर नजर नहीं टिकती थी।वे अति की खूबसूरत नहीं थी, किंतु उनके स्वर में जो चाशनी थी उसका कोई जोड़ नहीं था। देश में जब टीवी नहीं था तब लोग आवाज से पहचाने जाते थे। तबस्सुम उसी दौर की अभिनेत्री और एंकर थीं।आप अंधेरे में भी तबस्सुम की आवाज सुनकर बता सकते थे कि रेडियो में कौन बोल रहा है।

जब टीवी आया तो तबस्सुम भी उस छोटे पर्दे पर आते ही छा गई। उन्होंने छोटे पर्दे पर अपनी आवाज के जादू से वो खुल खिलाए कि हर हिंदुस्तानी उनका मुरीद हो गया। अपनी हर भूमिका में तबस्सुम सौ फीसदी खरी उतरीं।जया भादुड़ी का गुड्डी लुक शायद तबस्सुम से ही उधार लिया गया होगा। अपने नाम को सार्थक करने वाले लोग कम ही होते हैं। तबस्सुम उनमें से एक थीं। तबस्सुम ताउम्र विवादों से दूर रहीं, हालांकि फिल्मी दुनिया किसी को छोड़ती नहीं है। तबस्सुम का अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों समृद्ध रहा।वे किसी का मोहरा नहीं बनीं। राजनीति उन्हें ठग नहीं सकी। अपने व्यावसायिक जीवन में उन्हें कभी, किसी का मोहताज नहीं होना पड़ा। उन्होंने समाज को,देश को जो दिया उसका कभी मूल्यांकन नहीं गया।इसकी जरुरत भी नहीं समझी गई। खुद तबस्सुम ने ऐसी कोई कोशिश अपनी ओर से नहीं की। एक अंतर्जातीय परिवार से आई तबस्सुम अभिनय की दुनिया के आदर्श राम की भाभी थीं। लेकिन उनके व्यक्तित्व पर कोई मुलम्मा नहीं चढ़ा। 1947 में फिल्म ‘नरगिस’ से बेबी तबस्सुम ने अपने करियर की शुरुआत की थी. इस बाद उन्हें मेरा सुहाग, मंझधार, बड़ी बहन, सरगम, छोटी भाभी और दीदार संग ढेरों फिल्मों में देखा गया. फिल्म ‘बैजु बावरा’ में उन्होंने मीना कुमारी के बचपन का रोल निभाया था. फिल्मों से कुछ सालों का ब्रेक लेने के बाद तबस्सुम ने वापसी की थी. 1960 में उन्हें फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ में देखा गया. तबस्सुम के अनेक अर्थ होते हैं।मृदुहास, स्मित, मंदहास, मुस्कान, मंद हँसी, मुस्कराहट, मधुर तथा हलकी हँसी, ऐसी हंसी जिस में होंट न खुलें, ऐसी हंसी जिस में आवाज़ न हो कलियों का खिलना का अर्थ भी तबस्सुम ही है। आपको जो अर्थ पसंद हो चुन लीजिए। तबस्सुम तो तबस्सुम ही रहेंगी। तबस्सुम से मिलने का कोई मौका हाथ नहीं आया फिर भी लगता है कि तबस्सुम घर की ही सदस्य लगती रहीं।उनका अचानक जाना दिल दुखा गया।अब कलरव करती उनकी आवाज हमारी थाती है। विनम्र श्रद्धांजलि **

व्यक्तिगत विचार-आलेख-

श्री राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार , मध्यप्रदेश  । 

 

Share this...
bharatbhvh

Recent Posts

बहनें लाड़ली हैं तो भाई लाडले क्यों नहीं ?

मध्यप्रदेश में शुरू हुई लाड़ली बहना योजना और उससे मिलती जुलती महतारी योजनाओं ने भाजपा…

2 hours ago

राहुल तुम केवल गुंडे हो नेता नहीं

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को पहचानने में भाजपा भूल कर गई ।…

2 days ago

मानव अधिकार उल्लंघन के ”11 मामलों में” संज्ञान

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के माननीय अध्यक्ष श्री मनोहर ममतानी ने विगत दिवसों के विभिन्न…

4 days ago

कभी टोले से डरती है ,कभी झोले से डरती है

आजकल जैसे संसद में मुद्दों पर काम नहीं हो रहा उसी तरह मुझे भी लिखने…

5 days ago

सीएमसीएलडीपी के छात्रों ने सागर नगर की प्रतिष्ठित संस्था सीताराम रसोई का भ्रमण किया

सागर /मप्र जन अभियान परिषद् सागर विकासखंड द्वारा संचालित मुख्यमंत्री नेतृत्व क्षमता विकास पाठ्यक्रम के…

1 week ago

धमकियों से तो नहीं चल सकती संसद

संसद का शीत सत्र धमकियों से ठिठुरता नजर आ रहा है। इस सात्र के पास…

1 week ago