सिनेमा

अब देश में फिल्मवाद भी एक चुनौती !

हिंदुस्तान अब पहले वाला हिंदुस्तान नहीं रहा। पिछले 75 में हिंदुस्तान के जो मूल्य नहीं बदले थे, वे आठ साल में बदल गये हैं। जीवन का ऐसा कोई पहलू नहीं बचा जो इस परिवर्तन की जद में न आए हों। मौजूदा दशक के मूल्य शास्वत मूल्यों की चमक फीकी करना चाहते हैं,जो कदाचित असंभव है। पिछले आठ सालों से हम देख रहे हैं कि भारतीय समाज को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला माध्यम एक तो सुनियोजित तरीके से मंहगा कर दिया गया।‘ टाकीज ‘ नाम की संस्था की हत्या ठीक उसी तरीके से की गई, जैसे अखबारों में संपादक की।टाकीजे बिक गयी ।टाकीजो की जगह या तो माल बन गये या रिहायशी इमारतें।टाकीजो की जगह ले ली ‘मल्टीप्लैक्स’ ने। अभियान यहीं नहीं रूका।अब कोशिश की जा रही है कि फिल्में भी वैसी ही बनाईं जाएं जो नये तरीके के इल्म को दिखाती/समझाती हों।हिंदू -मुसलमान करती हों। अगले महीने रिलीज होने वाली शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण की फिल्म ‘ पठान’अब इस नये तालिबानी इल्म का शिकार बनने जा रही है। फिल्म के पोस्टर देखकर संस्कृति के ठेकेदार तिलमिला उठे हैं।वे ‘पठान’को भी दूसरी तमाम फिल्मों की तरह बेमौत मार देना चाहते हैं। उन्हें फिल्म के अनेक दृश्यों पर ही नहीं बल्कि अभिनेत्री के कपड़ों के रंग पर भी आपत्ति है।

कृपया यह भी पढ़ें – 

आपको याद होगा कि इन्ही आठ साल में एक फिल्म का विरोध करने के लिए एक करणी सेना भी बनी थी। सेना फिल्म को नहीं मार सकी और खुद फोत हो गई। संस्कृति और सभ्यता के नये ठेकेदार लाल सिंह चड्ढा का कुछ नहीं बिगाड़ सके। अमेरिका में मेरे पांच साल के पौत्र ने लालसिंह चढ्ढा को देसियों बार देखा। पठान का भी कुछ बिगड़ेगा नहीं। शाहरुख भी बेफिक्र रहें और दीपिका पादुकोण भी। फिल्म में ऐसा बिल्कुल नहीं है जो समाज के लिए एकदम नया हो।अब ये तो हो नहीं सकता कि फिल्म निर्माता/निर्देशक फिल्म की कास्ट्यूम का रंग भी सेंसर बोर्ड से पास कराने जाएं। पठान के पोस्टर मैंने भी देखें हैं।आप भी देख सकते है और सवाल कर सकते हैं कि रंग का मजहब से क्या लेना देना?लाल रंग के जिस कपड़े में रामचरित मानस और श्रीमद्भागवत की पोथी बांधी जाती है उसी रंग और कपड़े के लंगोट भी बनते हैं। हमारे संवेदनशील संस्कृति के ठेकेदार कल पैदा हुए हैं, उन्होंने इसी देश में बनी दस्तक फिल्म नहीं देखी।वे खजुराहो के मंदिरों को देखने का वक्त भी नहीं निकाल सके, यदि वे ऐसा कर पाते तो पठान के पीछे हाथ धोकर नहीं पड़ते। कभी -कभी लगता है कि ‘पठान’ विरोधी फौज श्रंगी ऋषि के पुत्र काय यज्ञ से जनित है।यानि सब खीर से जन्मे हैं। किसी ने नारी का देहदर्शन किया ही नहीं है। बात व्यंग्य विनोद की है।असल बात तो ये है कि बिना विवाद के सरकार, सरकारी पार्टी और उनके मातृ संगठन का गुज़ारा नहीं है। रोजगार हो तो किसे फुर्सत है बेसिर -पैर के विवादों में पड़ने की। मेरा बार- बार कहना रहा है कि कला, संस्कृति, साहित्य, भाषा,वेश को विवादों से परे रखना चाहिए। क्योंकि ये सब सदियों से तमाम झंझावातों के सुरक्षित हैं।इनकी सुरक्षा के लिए न पहले कोई बजरंग दल और विहिप था और न आज इसकी जरूरत है। यकीन न हो तो जरा कुएं से बाहर निकल कर देख लीजिए। क्योंकि देश में अब ये नया फिल्मवाद भी किसी चुनौती से कम नहीं है।

व्यक्तिगत विचार-आलेख-

श्री राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार , मध्यप्रदेश  । 

https://www.youtube.com/c/BharatbhvhTV

वीडियो समाचारों से जुड़ने के लिए  कृपया हमारे चैनल को सबस्क्राईब करें और हमारे लघु प्रयास को अपना विराट सहयोग प्रदान करें , धन्यवाद।

Share this...
bharatbhvh

Recent Posts

राहुल तुम केवल गुंडे हो नेता नहीं

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को पहचानने में भाजपा भूल कर गई ।…

2 days ago

मानव अधिकार उल्लंघन के ”11 मामलों में” संज्ञान

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के माननीय अध्यक्ष श्री मनोहर ममतानी ने विगत दिवसों के विभिन्न…

4 days ago

कभी टोले से डरती है ,कभी झोले से डरती है

आजकल जैसे संसद में मुद्दों पर काम नहीं हो रहा उसी तरह मुझे भी लिखने…

5 days ago

सीएमसीएलडीपी के छात्रों ने सागर नगर की प्रतिष्ठित संस्था सीताराम रसोई का भ्रमण किया

सागर /मप्र जन अभियान परिषद् सागर विकासखंड द्वारा संचालित मुख्यमंत्री नेतृत्व क्षमता विकास पाठ्यक्रम के…

7 days ago

धमकियों से तो नहीं चल सकती संसद

संसद का शीत सत्र धमकियों से ठिठुरता नजर आ रहा है। इस सात्र के पास…

1 week ago

लोकसभा में पहली बार क्या बोलीं प्रियंका गांधी ?

आज कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने लोकसभा में अपना पहला उदबोधन दिया लगभग आधा घंटे…

1 week ago